कुछ रचनायें सुधा राजे की
Sudha Raje
Sudha Raje
किशना पगली किशना
*******
तीन बेटियों में सबसे
बङी बिना भाई की किशना
नहीं सुनती माई की बात नहीं करती घर
के काम ।
दुत्कारी भी दुलारी भी
अंग अंग फूटी जवानी जिसे देख
बौरा गये तालाब बाग पेङ
नदी बाढ़ सी आयी गाँव में रिश्ते
के जीजा बह गये और रोती रह
गयी किशना
आम के पेङ के नीचे ।
वह
आयी क्यों माई ने
कितना रोका जीजा वीजा कुछ
नहीँ होता ।
लेकिन
चली आयी पक्के आम खाने घने बाग
में जंगल के बीच ।
चुपचाप घर आ पङी अकेली
किशना उदास है
दुखी है अँधेरी कोठरी में जी भर
रोती है पाठशाला भी नहीँ जाती ।
माई के जेहन में कीङे कुलबुला रहे हैं
कैसे पूछे क्या हुआ ।
काढ़े पीये
जा रही है किशना बिना कुछ पूछे
बुखार की दवा है माई ने कहा ।
पूछ पूछ हार गयी माई कुछ
नहीँ बोली किशना ।
अनुत्तीर्ण
हो गयी आठवीँ में । नहीं गाती ना आम
खाती है कभी । बस माई का हर काम
करती रहती चुपचाप ।
आम पर फिर
फल आये हैं सारी बहिनें जा रही हैं
माई बाऊजी भी जा रहे हैं
फुआ आई है ।नहीँ जा रही किशना ।
कोई
नही है घर में और आया है
वही रिश्ते का जीजा साल भर
बाद फिर बेशरमाई से
मुसकुरा रहा है । किशना बर्तन
माँज रही है और पाँच
किलो की लोहे ही कढ़ाही राख
रेत और निरमा से रगङते हाथ कब
उठे पता नहीँ कढ़ाही जीजा के
माथे पर जा लगी भीषण चिघ्घाङ के
साथ।
खून बह चला एक
सिर फटी लाश पङी है आँगन में
दौङती जा रही है बाल बिखेरे
राख के हाथ भरे चीखती बदहवास
आँधी की तरह आम के
बागों की तरफ किशना "माई हम
राक्षस के मार डरलीं "
कचहरी में घोषणा होती है
नाबालिग किशना पागल है ।
बाऊ रो रहे हैं माई चुप देख
रही है किशना लगातार आम
खा रही है
फूआ बुक्का फाङकर चीख रहीँ है "ऐ
वंश बुझौवनी अब तुहार बिआह कैसे
होई ।
किशना हँस रही है सारे कपङे मुँह
हाथ आम के रस से सराबोर ।
माई देख रही है एक साल बाद
काली माई की हँसी उसे
लगा किशना के चेहरे पर रक्त है
बुदबुदा उठी "ऐ माई नज़र न होखे
"पगली किशना अब जोर जोर से
गा रही है।
©®¶©®¶
Sudha Raje
Dta//Bjnr
सत्यकथा
Mar 25
Sudha Raje
Sudha Raje
Sudha Raje
दिल की बस्ती लूट रहा ये कारोबार
रूपैये का
लोकतंत्र या साम्यवाद हो
है सरकार रुपैये का
बहिना बेटी बुआ खटकती क्यों है
रुपिया लगता है
भैया पैदा रो ले 'हँस मत साझीदार रूपैये
का
प्यार खरा बेबस रोता है
मेंहदी जली गरीबी की
उधर अमीरं ले गया डोली सच्चा प्यार
रुपैये का
क्यों गरीब
का प्रतिभाशाली बच्चा ओहदे पाये
सखी!!!
अलग अलग विद्यालय
किस्मत है ललकार रुपैये का
वचनपत्र पर लगी मुहर है
अंकसूचिका पहचानो
काग़ज असली नकली चलता यूँ दमदार
रूपैया का
रूपिया है तो ननदी खुश है ननदोई देवर
सासू
बीस लाख का तिलक पाँच का भात बज़ार
रूपैये का
कोई भी ना हो तेरा फिर
भी जलवे जलसे दम होँगे
इकला ही रैबैगा रहा जो मारा यार
रूपैये का
रूपिया दे वो ही 'सपूत है रूपिया दे
वो बीबी है
रुपिया दे वो ही तो माँ है दिल
दिलदार रूपैये का
न्याय मिलेगा उसे कङक
जो रुपिया देय वकीलों को
सुनवाई होगी गड्डी दे थानेदार रुपैये
का
रूपिया दे दरबान
मिला देगा मंत्री से चटपट सुन
रूपिया दे तो वोट
मिलेगा ज़लवेदार रुपैये का
रूपिया हारा नहीँ हार गये
जोगी भोगी संन्यासी मंदिर गिरिजे
मस्जिद चढ़ता है दरबार रुपैये का
रूपिया होता बाबूजी तो हम
भी संपादक होते बीस किताबेँ छप
गयीँ होती बेफ़नकार रूपैये का
रुपिया हो तो आवे
रुपिया बहुरुपिया रिश्ता है "सुधा"
ऐब हुनर हैँ हुनर ऐब हैँ
फ़न दरकार रुपैये का
©®¶©®¶
Sudha Raje
Dta//Bjnr
Mar 28
Sudha Raje
किशना पगली किशना
*******
तीन बेटियों में सबसे
बङी बिना भाई की किशना
नहीं सुनती माई की बात नहीं करती घर
के काम ।
दुत्कारी भी दुलारी भी
अंग अंग फूटी जवानी जिसे देख
बौरा गये तालाब बाग पेङ
नदी बाढ़ सी आयी गाँव में रिश्ते
के जीजा बह गये और रोती रह
गयी किशना
आम के पेङ के नीचे ।
वह
आयी क्यों माई ने
कितना रोका जीजा वीजा कुछ
नहीँ होता ।
लेकिन
चली आयी पक्के आम खाने घने बाग
में जंगल के बीच ।
चुपचाप घर आ पङी अकेली
किशना उदास है
दुखी है अँधेरी कोठरी में जी भर
रोती है पाठशाला भी नहीँ जाती ।
माई के जेहन में कीङे कुलबुला रहे हैं
कैसे पूछे क्या हुआ ।
काढ़े पीये
जा रही है किशना बिना कुछ पूछे
बुखार की दवा है माई ने कहा ।
पूछ पूछ हार गयी माई कुछ
नहीँ बोली किशना ।
अनुत्तीर्ण
हो गयी आठवीँ में । नहीं गाती ना आम
खाती है कभी । बस माई का हर काम
करती रहती चुपचाप ।
आम पर फिर
फल आये हैं सारी बहिनें जा रही हैं
माई बाऊजी भी जा रहे हैं
फुआ आई है ।नहीँ जा रही किशना ।
कोई
नही है घर में और आया है
वही रिश्ते का जीजा साल भर
बाद फिर बेशरमाई से
मुसकुरा रहा है । किशना बर्तन
माँज रही है और पाँच
किलो की लोहे ही कढ़ाही राख
रेत और निरमा से रगङते हाथ कब
उठे पता नहीँ कढ़ाही जीजा के
माथे पर जा लगी भीषण चिघ्घाङ के
साथ।
खून बह चला एक
सिर फटी लाश पङी है आँगन में
दौङती जा रही है बाल बिखेरे
राख के हाथ भरे चीखती बदहवास
आँधी की तरह आम के
बागों की तरफ किशना "माई हम
राक्षस के मार डरलीं "
कचहरी में घोषणा होती है
नाबालिग किशना पागल है ।
बाऊ रो रहे हैं माई चुप देख
रही है किशना लगातार आम
खा रही है
फूआ बुक्का फाङकर चीख रहीँ है "ऐ
वंश बुझौवनी अब तुहार बिआह कैसे
होई ।
किशना हँस रही है सारे कपङे मुँह
हाथ आम के रस से सराबोर ।
माई देख रही है एक साल बाद
काली माई की हँसी उसे
लगा किशना के चेहरे पर रक्त है
बुदबुदा उठी "ऐ माई नज़र न होखे
"पगली किशना अब जोर जोर से
गा रही है।
©®¶©®¶
Sudha Raje
Dta//Bjnr
सत्यकथा
Mar 25
Sudha Raje
Sudha Raje
Sudha Raje
दिल की बस्ती लूट रहा ये कारोबार
रूपैये का
लोकतंत्र या साम्यवाद हो
है सरकार रुपैये का
बहिना बेटी बुआ खटकती क्यों है
रुपिया लगता है
भैया पैदा रो ले 'हँस मत साझीदार रूपैये
का
प्यार खरा बेबस रोता है
मेंहदी जली गरीबी की
उधर अमीरं ले गया डोली सच्चा प्यार
रुपैये का
क्यों गरीब
का प्रतिभाशाली बच्चा ओहदे पाये
सखी!!!
अलग अलग विद्यालय
किस्मत है ललकार रुपैये का
वचनपत्र पर लगी मुहर है
अंकसूचिका पहचानो
काग़ज असली नकली चलता यूँ दमदार
रूपैया का
रूपिया है तो ननदी खुश है ननदोई देवर
सासू
बीस लाख का तिलक पाँच का भात बज़ार
रूपैये का
कोई भी ना हो तेरा फिर
भी जलवे जलसे दम होँगे
इकला ही रैबैगा रहा जो मारा यार
रूपैये का
रूपिया दे वो ही 'सपूत है रूपिया दे
वो बीबी है
रुपिया दे वो ही तो माँ है दिल
दिलदार रूपैये का
न्याय मिलेगा उसे कङक
जो रुपिया देय वकीलों को
सुनवाई होगी गड्डी दे थानेदार रुपैये
का
रूपिया दे दरबान
मिला देगा मंत्री से चटपट सुन
रूपिया दे तो वोट
मिलेगा ज़लवेदार रुपैये का
रूपिया हारा नहीँ हार गये
जोगी भोगी संन्यासी मंदिर गिरिजे
मस्जिद चढ़ता है दरबार रुपैये का
रूपिया होता बाबूजी तो हम
भी संपादक होते बीस किताबेँ छप
गयीँ होती बेफ़नकार रूपैये का
रुपिया हो तो आवे
रुपिया बहुरुपिया रिश्ता है "सुधा"
ऐब हुनर हैँ हुनर ऐब हैँ
फ़न दरकार रुपैये का
©®¶©®¶
Sudha Raje
Dta//Bjnr
Mar 28
Comments
Post a Comment