अनारक्षित भारतीय
वे सब एक हो जायें...
-""जिन जिन जातियों को आरक्षण
प्राप्त नहीं है""
ना ही किसी प्रकार
की सरकारी सुविधा
अगर वे सब एक हो जायें और अपने को एक
समूह मान लें ""सामान्य या सवर्ण
जो उचित लगे ""
और ये ठान लें कि व्यवस्था में जाति वाद
या तो पूरी तरह खत्म हो हर हाल में ।
या फिर एक कोटा हर जगह सुनिश्चित
किया जाये कि! ""ये सवर्ण और सामान्य
घोषित ""लोगों के लिये ही मुकर्रर
स्थान है इसपर।
आरक्षित लोग
ठीक उसी तरह भाग नहीं ले सकते जैसे
सामान्य सवर्ण को उन सीटें वे स्थान उन
वज़ीफों लैपटॉप साईकिल बस्ते राशन
पट्टे चुनाव चैक आवास छूट और विकास से
वंचित
कर दिया जाता है केवल जाति के आधार
पर
आज व्यवहार में पंडित दक्षिण में गरीब
कुक और बनारस में रिक्शा पुलर है।
ठाकुर दरजीगीरी मैकेनिक मजदूर और
कारीगर हैं
बनिया फेरीवाले और
मामूली बिसाती तक है
कायस्थ भी तमाम तरह के नगण्य
कार्यों में लगे हैं ।
तब जाति और वर्ण व्यवसाय के आधार पर
नहीं रहा।
दरजी धोबी नाई अहीर लुहार सुनार
कल्हार अब जातियाँ नहीं केवल व्यवसाय
हैं ।
कल ही देखा दो ब्रह्मण नगरपालिका के
कचराडंपर के ड्राईवर हैं और कुछ ठाकुर
ढाबे पर रोटियाँ पका रहे हैं ।
एक दो कराबी रिश्तेदार अस्पतालों में
सफाई कर्मी तक हैं ।
तब???????
जो सिपाही और शासक वही राजपूत
जो शिक्षक वही ब्रह्मण ।
जो उत्पादक वही बनिया।
जो कलमजीवी वही कायस्थ।
जो कलाजीवी वही गंधर्व
जो विचारक वही संत
आप सोचे
कि या तो सरकारी जातिवाद खत्म हो
या फिर अनारक्षित
का भी कोटा सुनिश्चित हो
फिर न कहना
कि बच्चों को क्या सौंपकर जा रहे
हो????
बिना संघर्ष के हक़ नहीं मिलते ।वक्त है
कि आरक्षण से वंचित जातियाँ एक समूह
होकर अब विवाह खानपान और तमाम
एकीकरण पर चल पङें
क्षमा सहित
Jul 19
· Unlike · 18 Comments
Aug 3
-""जिन जिन जातियों को आरक्षण
प्राप्त नहीं है""
ना ही किसी प्रकार
की सरकारी सुविधा
अगर वे सब एक हो जायें और अपने को एक
समूह मान लें ""सामान्य या सवर्ण
जो उचित लगे ""
और ये ठान लें कि व्यवस्था में जाति वाद
या तो पूरी तरह खत्म हो हर हाल में ।
या फिर एक कोटा हर जगह सुनिश्चित
किया जाये कि! ""ये सवर्ण और सामान्य
घोषित ""लोगों के लिये ही मुकर्रर
स्थान है इसपर।
आरक्षित लोग
ठीक उसी तरह भाग नहीं ले सकते जैसे
सामान्य सवर्ण को उन सीटें वे स्थान उन
वज़ीफों लैपटॉप साईकिल बस्ते राशन
पट्टे चुनाव चैक आवास छूट और विकास से
वंचित
कर दिया जाता है केवल जाति के आधार
पर
आज व्यवहार में पंडित दक्षिण में गरीब
कुक और बनारस में रिक्शा पुलर है।
ठाकुर दरजीगीरी मैकेनिक मजदूर और
कारीगर हैं
बनिया फेरीवाले और
मामूली बिसाती तक है
कायस्थ भी तमाम तरह के नगण्य
कार्यों में लगे हैं ।
तब जाति और वर्ण व्यवसाय के आधार पर
नहीं रहा।
दरजी धोबी नाई अहीर लुहार सुनार
कल्हार अब जातियाँ नहीं केवल व्यवसाय
हैं ।
कल ही देखा दो ब्रह्मण नगरपालिका के
कचराडंपर के ड्राईवर हैं और कुछ ठाकुर
ढाबे पर रोटियाँ पका रहे हैं ।
एक दो कराबी रिश्तेदार अस्पतालों में
सफाई कर्मी तक हैं ।
तब???????
जो सिपाही और शासक वही राजपूत
जो शिक्षक वही ब्रह्मण ।
जो उत्पादक वही बनिया।
जो कलमजीवी वही कायस्थ।
जो कलाजीवी वही गंधर्व
जो विचारक वही संत
आप सोचे
कि या तो सरकारी जातिवाद खत्म हो
या फिर अनारक्षित
का भी कोटा सुनिश्चित हो
फिर न कहना
कि बच्चों को क्या सौंपकर जा रहे
हो????
बिना संघर्ष के हक़ नहीं मिलते ।वक्त है
कि आरक्षण से वंचित जातियाँ एक समूह
होकर अब विवाह खानपान और तमाम
एकीकरण पर चल पङें
क्षमा सहित
Jul 19
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Aug 3
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