Monday 18 November 2013

दारू ने कुटुम उजारौ

Sudha Raje
Sudha Raje
दारू नेँ कुटुम
उजारौ री दारू नैँ।
जाने सबरौ माठ
बिगारौ री दारू ने ।
दारू नैँ कुटुम
उजारौ री दारू नै
रै गये बिलिबिचया कैँ
गुईयाँ
रोजऊँ ठर्रा पीकैँ सईयाँ
सास ससुर देवर खाँ
गारीँ
मोपै पङवा धरै लकैँयाँ
बसकारिन में बैला बिच गये
फागुन में गैँवङारौ री
दारू नैँ
दारू नै कुटुम उजारौ री ।
दारू नैँ ।
©®¶¶®©
Sudha Raje
Dta/Bjnr
ठट्टर बँधबै बा ठेका कौ ।
दारूखोर बनाये पुरा खौँ
पुटया पुटया मसकऊँ देबे
करै उधारी ब्याज मजा खौँ।
बूढै बारै ज्वान पियक्कङ
घर घर दुख बौँङारौ री
दारू नेँ
दारू नेँ कुटुम उजारौ री
दारू ने
©®¶©®
Sudha Raje
Dta★Bjnr
चिक्कर गये समजा समजा कैँ
बेँची गुरिया गानो जाकेँ
हार खेत खरयान सूक रये ।
खिरक न ढूँकौ चौँपे
ल्याकेँ
रोजऊँ प्याज मछरिया अंडा
गघरा जिउ फोङारो री
दारू ने ।
दारू नेँ कुटुम उजारौ री
दारू ने।
©®¶
Sudha Raje
जिज्जी सुधा कहैँ दै मुंडा
चट्टीं मार पैँङ देओ बंडा
चार दिना लंघन करबा देओ
बेङो चामुंडा धर डंडा
सीरौ तातौ पाऊँ कुङैरौ
होय चाँय घरबारौ री
दारू ने
©®¶©®
Sudha Raje
Dta/Bjnr
बुंदेली

No comments:

Post a Comment