उपन्यास: एक अधूरी गाथा"सुमेधा"

कहानी
****शराफ़त*****
भाग5
सुमेधा ने क्रॉस लिस्ट पर नजर दौङायी । उसका नाम कहीं नहीं था ।वह धैर्य पूर्वक एक एक नाम देख रही थी ।
--क्या मैं फेल हो गयी??? लेकिन मेरे तो सभी पेपर्स बहुत अच्छे गये थे!!!! यहाँ तक कि एक्सीडेंट वाले दिन का पेपर भी एक प्रश्न छूट गया था परंतु फेल तो उसमें भी नहीँ होना था ।

वह सोचती हुयी प्रिंसिपल ऑफिस में पहुँच गयी ।
---आओ आओ! बेटे!! कैसी सेहत है अब? 
अब भी उसके हाथ में वॉकिंग स्टिक थी ।
--वैल सर हमारा नाम नहीँ है क्रॉस लिस्ट में!!!!!
--ओह अच्छा!  बेटे वो आपका माईग्रेशन सर्टिफिकेट नहीँ लग पाने से अभी रिजल्ट रूका है ।आपके नंबर ये रहे ।
कहते हुये संधू सर ने पर्चा थमा दिया । सुमेधा पढ़ते ही खुशी से उछल पङी । थैक्यू सर कहती हुयी वह स्टिक के सहारे कॉमन रूम की तरफ चल पङी । सुमेधा को देखकर सबने हाथ हिलाये हाय हैलो कैसी हो । सबको एक शांत मुसकराट से अभिवादन देती हुयी वह कॉमन रूम में थम्म से जा बैठी । बाई ने मशीन से ठंडा पानी दिया तो उसे कुछ रुपये देकर माली से तीन गिलास जूस मँगाय तीनों ने पिया । माली ने ढेर सारे नारंगी गुलाब सुमेधा को दिये । उसका प्रिय रंग सफेद नारंगी के सब शेड । लङके हुल्लङ मचा रहे थे और ट्रीट दो कॉंन्ग्रेच्युलेशन के वाक्य हवा में उछल रहे थे । कुछ पत्रिकायें देखने के बाद वह वापस पार्किंग की तरफ जा रही थी । और हाथ में ।साप्ताहिक हिंदुस्तान  सारिका धर्मयुग नवनीत सर्वोत्तम के ताजे  का अंक थे जो कॉलेज के वाचनालय से अपने नाम पर इश्यू करवाये थे । वह पढ़ती हुयी धीरे धीरे घने पेड़ो के बीच बनी पतली गैलरी पर चली जा रही थी । कि धङाम से किसी से टकरा कर गिर गयी और किताबें बिखर गयीं । गिरने की वजह थी बिना छङी के चलने की धीमी कोशिश सामने शेखर की टीम का एक काला कलूटा लङका पान से लाल दाँत चमका रहा था । बजाय सॉरी के वह ढीठता से मुस्करा रहा था । और लगातार पान चबा रहा था।

ओय जंगली बिल्ली आज ये पतली गली से कैसे?चल हम पहुँचा दें कहते हुये लङके ने  स्टील की चैन पहने अपना मोटा हाथ सुमेधा के कंधे पर रख दिया ?  । सुमेधा समझ गयी पूरे साल कुछ भी ना बोलने वाला ये घूरता रहने वाला लङका आज क्यों जानबूझ कर टकराया क्योंकि वह लँगङी और घायल है । लेकिन यही उसकी गलती थी ।सुमेधा का बाँया हाथ हवा में घूमा और लङका धरती पर था । वह फिर उठना ही चाहता था कि छङी का भरपूर प्रहार दाँयें हाथ से टाँगों पर पङा । और एक टाँग पर कैराटे की हमलावर मुद्रा में तीखी मुसकान दबाये सुमेधा उंगली से इशारा कर रही थी उठ उठ उठ । मगर लङके को आभास हो गया था कि उससे भयंकर भूल हो गयी वह
दीदी सॉरी दीदी सॉरी कहके हाथ जोङता हुआ पीछे की तरफ खिसक रहा था और टकराया पीछे आते शेखर से ।
--दादा बचा लो । ये छोकरी अपने को अकेला पाकर मार्शल आर्ट का रौब दिखा रही है ।
कहता हुआ लङका शेखर के लंबे चौङे ज़िस्म के पीछे छिप गया ।
--ये क्या बचपना है सुमेधा!!!
तुम्हें पता है इस रास्ते पर लङकियाँ और टीचर नहीँ आते जाते!!!  अक्सर टपोरी यहीँ लॉन में बैठते हैं कॉलेज क्लास बंक करके!!!
शेखर के सवाल थे या सूचना । सुमेधा को लगा वह कुछ आधिकारिक ढंग से बोल रहा है । पर क्यों । आज उसके चेहरे पर कई दिन की बढ़ी दाङी थी और सफेद शर्ट सलवटों से भरी सफेद बेलबॉटम पर घास के तिनके थे बाल बिखरे और बेतरतीब बढ़े हुये । सुमेधा ने देखा उसकी आँखें भारी भारी और कुछ लाल थीं जैसे नशा किया हुआ हो । अशोक कचनार अमलताल और गुलमोहर की छाया और धूप के टुकङों के बीच वह कोई भटका यात्री सा लग रहा था । बे झिझक उसने सारी पत्रिकायें समेटी और छङी लाकर हाथ में थमा दी । सारिका बीच में से खुली थी और सुमेधा की तस्वीर देखकर वह ठिठककर पढ़ने लगा । कहानी "अभिशप्ता"उसने होठों को गोल करके सीटी बजायी ।
--तो आप लेखिका भी हैं????  और क्या क्या है!!!
मोहतरमा!!
उसके इस अंदाज़ पर सुमेधा मुसकुराये बिना न रह सकी । शहदई रंग के बालों से घिरा नशे में तमतमाया शेखर का चेहरा आज कुछ ज्यादा ही सुर्ख हो रहे होंठ सुमेधा ने नज़र हटा ली । वह पूछने लगा
--ऐतराज ना हो तो नाचीज़ को पढ़ने की इज़ाजत दीजिये???
--जी आप रख लीजिये हम बाद में पढ़ लेंगे ।
सुमेधा के साथ पार्किंग तक आया शेखर वहाँ एम्बेसडर में बैठा ड्राईवर बाहर निकल कर दरवाजा खोलने लगा ।
Ek lammbee  kahaani
क्रमशः
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Sudha Raje

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