गद्यगीत~::विकल्प की स्त्री

आत्मालाप """""
एक दिन मेरी टाँग टूट गयी ।
तुम परेशान रहे मुझे दुःख हुआ कि अब तुम्हारे लिये भोजन कौन पकायेगा कौन वस्त्र धोयेगा कौन इस्तरी करेगा और कौन करेगा घर की सुश्रूषा ''''
तुम कुछ दिन परेशान हुये तो मैंने मायके से भतीजी बुलवाली एक कामवाली बाई लगा ली और कुछ दिन बिस्तर पर लेटे लेटे आदेश देने के बाद आखिर एक दिन डोरी बाँध कर टाँग घसीटते हुये हम रसोई में जा पहुँचे और कई घंटे साफ सफाई के बाद घर में पुरानी गंध रंग स्वाद वापस आ गये '''दर्द बढ़ गया किंतु परिवार को तृप्त देखकर कुछ दवाईयाँ बढ़ना बुरा नहीं लगा """""फिर एक दिन हाथ गले में टाँग कर एक हाथ से रोटी बेलने का अभ्यास करने की नौबत आ गयी और आटा गूँथने के अलावा बाकी काम सीख डाले बायें हाथ से करने यहाँ तक लिखना और टाईप करना भी """"""
सबसे ज्यादा परेशानी तब हुयी जब दो पसलियाँ दरार खा गयी औऱ बिस्तर पर लेटना पङा बोलना तक तीखा दर्द देने लगा तब एक उपाय निकाला """लेटे लेटे ही मोबाईल पर मैसेज टाईप करके निर्देश देते रहने का कभी तुम्हें कभी बच्चों को """""बहुत सारी कवितायें इसी बीच लिखीं गयीं """"फुरसत एक बहाना जो थी """और आदत तो हो चुकी थी सुबह चार से रात दस तक लगातार काम करते रहने की """
फिर एक दिन एक भयंकर खयाल आया कि मुझे कुछ हो गया तो?
तब से हर छुट्टी वाले दिन तुम्हें रसोई में तुम्हारी पसंद की चीज़ें सिखानी शुरू कर दीं """
बच्चे भी अब पाकशास्त्री हो चले हैं ।
किंतु यह क्या है जो मन को आकुल करता है पिछले महीने तेज ज्वर में बिस्तर पर कंठ पीङा से व्यग्र मन तन लिये जब देखा कि परिवार सुख से खा पका रहा है और किसी को मेरे होने न होने से अब कोई अभाव नहीं होने वाला है तब मेरे सामने रखी मेरी पसंदीदा कॉफी और मख्खन ब्रेड गटकते मन भर भर क्यूँ हो हो आता था?
अब मुझे अपना विकल्प मिल चुका है मैं फुरसत की ओर हूँ किंतु कुछ है जो छूट रहा है आज फिर """"""
जैसे छूट गया था बरसों पहले पाँच सौ मील दूर """"""
एक दिन ऐसे ही कुछ माह के अभ्यास के बाद बापू की चाय सिर की मालिश माँ की ऐनक आलता भाभी के मैचिंग फॉल और भतीजों की सुबह शाम की कहानियाँ होमवर्क """"""
देहली पर दूध के कुल्ले और पलट कर उलीची खीलें बिना मुँह फेरे जाते एक बार पलटना """""
मुक्ति और मोह के द्वंद्व!!!!
कोई कभी नहीं समझेगा कि मुझे भूल न जाना कहती पीङा खुद ही सारे विकल्प रखती है भुलाने के ताकि उनको कोई अभाव न हो जाने से जो जो आदी हो चुके होते हैं पुकारने के ''''''
©®सुधा राजे

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