Sudha Raje
Sudha Raje
खनकती धूप की चादर पे
सुखाया होगा
सिसकती रात ने जो दर्द
भिगाया होगा
आज ही घर में नहीं कोई
बात करने को
आज ही बच्चे ने इक दोस्त
बनाया होगा
शाम खामोश बिना बात
मुङ गयी होगी
मोङ पे तारों ने
"काली है"
चिढ़ाया होगा
रात ओढ़े हिज़ाब दर्द
धो रही होगी
चाँद पे दाग छुपा फिर नज़र
आया होगा
खुश-बयां खुश-रू-वो खुश-
रफ़्तगी में गुम होगा
ख़ू-बहा उसने ख़यानत से
कमाया होगा
नर्म होंठों पे गर्म बात
भी दबी होगी
ख़ूने-दिल रोकने को होंठ
चबाया होगा
उलटी रख्खी किताब पढ़
के रो रही होगी
कोई ख़त उसमें ऱखा फूल
छिपाया होगा
दैऱ के वास्ते थाली में
उदासी रख दी
कोई पत्थर का सनम मिलने
ना आया होगा
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Sudha Raje
Feb
19 .2.
1919
Saturday 30 March 2019
गज़ल"खनकती धूप की चादर
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