गद्यगीत:मदिरता का मोक्ष

बच्चे बड़े हो जाते हैं
बड़े बड़े सपने बतियाते हैं ,
लंबे हो जाते हैं कद माँ से ,
बड़े बच्चों की बड़ी बड़ी बातें और बड़े बड़े सपने सुनती मां अकसर उन बड़े बच्चों का शैशव याद करने लगती है ,याद करने लगती है पहली आवाज "माँ"पहली करवट ,पहला उठकर बैठना ,पहला घुटनों चलना ,पहला दाँत निकलना ,पहली बार खड़े होना और चल पड़ना पहली बार ,कमीज पहन पाना बटन लगाना ,जूते की डोरियाँ बाँध पाना और पहली बार साईकिल चला पाना ,पहला अक्षर पढ़ना ,पहली अंकसूची पाना ,विद्यालय का पहला दिन ,पहली बार में अलग दूर दूसरे भवन में बैठकर पढ़ना ,बच्चे बढ़ते जाते हैं ,
माँ
घटती जाती है ,
माँ होने तक के विस्तार के बाद ,
कोई विस्तार बचता ही कब है ?,
न देह का ,
न मन का ,
बड़े बच्चों में समाने लगती है माँ ,
अपना समग्र विस्तार ,समामेलित करती हुयी ,
विलीन होती हुयी ,
घटती हुयी ,
माँ पुन:बड़ी होने लगती है ,
अपने पहले बड़े होने से आगे की यात्रा में ,
देखने लगती है
बड़े होते बच्चों की बड़ी बड़ी बातों में बड़े बड़े सपनों के साथ ,
वह सब जगत ,
जो उसके अपने जीवन की यात्रा में
माँ होने की यात्रा पर निकल पड़ने ,
से बड़े बच्चों की माँ होने तक के बीच ,
कहीं छूट गया था ,
यह पुनर्जीवन सा ही तो है ,
माँ कभी रुक गयी थी बढ़ने के माँ होने को ,
माँ फिर चल पड़ती है ,
बच्चों के भीतर से बढ़ने के लिए ,
माँ को बड़े बच्चे फिर छोटे लगने लगते हैं ,
अपने तन से मन से जीवन से ,
जीवन कम लगने लगता है ,
ओह
इनको बड़ा करने के लिए अभी तो कितना कुछ बढ़ना शेष है !!!!ये बच्चे तो बड़े हुए ही नहीं !!,
,
बच्चे माँ से कभी बड़े नहीं हो पाते ,माँ फिर बढ़ने लगती है ,
,
(NCC के लंबे युवा बच्चों के साथ कल शाम की आत्मीय बातचीत के बाद ,जब लगा ये सब तो मेरे अपने बेटे हैं )
©®सुधा राजे

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