स्त्री, महिलादिवस: ::::और पर्सनल कानून

महिला दिवस
महिला दिवसमहिला दिव
*क्या आप जानते हैं *

तीन तलाक
हलाला
बुरका
मुता निकाह
खयाल उल बुलूग
महरम
निकाह
हकेदुखतरी
वारिस
इद्दत
गवाह
खर्चा ए पानदान
जायज नाजायज ?

मसजिद में नहीं जाने की पाबंदी
जनाजे की नमाज ना पढ़ने की पाबंदी
कब्रिस्तान ना जाने की पाबंदी
बिना पुरुष साथ लिए कहीं भी जाने की पाबंदी
रंग मरजी के पहनने की पाबंदी
नेल पाॅलिश नहीं लगा सकतीं ,लगायी तो छुटाओ अगले ही घंटे क्योंकि वुजू में नाखून नहीं भीगे तो नमाज नहीं अदा होगी
नमाज ईदगाह में पढ़ने की पाबंदी
नमाज सफे में पढ़ने की पाबंदी
रजस्वला होने के दिनों में रोजा स्वीकार नहीं वे रोजे रमज़ान के बाद कर्ज के रोजे एक एक करके जुमे को पूरे करतीं है औरतें
सिर ढँकना हर हाल में अनिवार्य ,तीन से दस के बीच ही
हर समय पाँच कपड़े सिर पर ढक्कन रखना जरूरी ।
जब तक लड़का ना पैदा हो जाये तब तक बच्चे पैदा करते रहने की अघोषित शर्त ।
शौहर  की जायदाद पर कोई हक नहीं न शौहर के रहते ,न शौहर के मरने पर बेवा केवल धाय माँ होती है शौहर के बच्चों की
बच्चों पर भी कोई हक़ नहीं, कोख का किराया दूध का दाम चुकाकर शौहर छीन सकता है बच्चे तलाक देकर ,बिना तलाक दिए भी बाप ही सारे फैसले लेगा लड़की हो या लड़का
मुसलिम लड़का गैर मुसलिम लड़की से शादी करता है तो उसकी हैसियत केवल जिस्मानी ताल्लुक की है बिना मुसलिम धर्म स्वीकारे उसकी औलादें तक हकदार नहीं मुसलिम की जायदाद में ।
मुसलिम लड़की का गैर मुसलिम से निकाह मान्य ही नहीं वह वाॅईड शून्य और हराम है लड़का मुसलमान बने तब जायज है ।
तलाक के बाद उसी शौहर से बच्चे पैदा होने पर निकाह कायम रहने पर पैदा हुये बच्चे जायदाद के हकदार हैं ,तलाक के बाद वाले नाजायज ।
बिना दूसरे गैर पुरुष से निकाह करके जिस्मानी संबंध स्थापित कराये बिना तलाक प्राप्त करके फिर इद्दत यानि रजस्वला होने तक का समय ,एकांत में बिताये ,वापस अपने ही शौहर के साथ अपने बच्चों के बाप के साथ रहना वर्जित है ।
हलाला इसलिये औरत पर ही दंड है कि ऐसी नौबत आयी क्यों कि शौहर ने तलाक कह दिया । कह दिया तो कह दिया ,अब वह दुबारा मान मनौवल क्या करे ,जाये इद्दत करे यदि गर्भवती नहीं है तो दूसरा निकाह करे ,यदि है तो बच्चे का कोख किराया दूध का दाम लेकर तब तक बाप के घर रहे । और वापस उसी शौहर को पाना चाहती है तो जाये पहले एक गैर से निकाह करे "हलाला "भुगते फिर तलाक ले फिर इद्दत करे फिर आकर शौहर से निकाह कर सकती है ।
औरत जब नमाज पढ़े तो इतनी झुकनी चाहिये कि पेट के नीचे से बिल्ली तक ना निकल सके ,और मर्द जब नमाज पढ़े तो इतना झुक सकता है कि पेट के नीचे से बकरी तक निकल जाये ।
औरत दुआ माँगे तो दसों उँगलियाँ चिपकी हों हाथ अँगूठे की जड़ों तक बंद हो ,चेहरा भौंहों तक बंद हो ,कान के पास एक बाल तक कपड़े से बाहर न हो । अज़ान की आवाज ना निकले ।
मर्द जब नमाज पढ़ें तो उंगलियाँ खुली हों और टोपी ही काफी है ।
औरत का जिस्म सारा का सारा ही कामवासना भड़काने का सामान है औरत की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी मर्द के भीतर काम वासना ना भड़के इसलिये अपनी बाँहें पूरी ढके ,गला सिर बाँधकर रखे और चोहरा पूरा बंद रखे पाँवों को ना दिखाये ।
बाप को हक है कि वह कि बेटी का वालिद होकर किसी से भी उसका नाता कर दे । खयाल उल बुलूग के तहत लड़की जवान होने पर यानि रजस्वला होने पर चाहे तो निकाह तोड़ दे चाहे तो कायम रखे ।
लड़की को निकाह कुबूल करने या मना करने का तो हक़ है । लेकिन वह स्वयं रिश्ता नहीं चुन सकती ये काम बाप का है कि आने वाले प्रस्तावों पर वह विचार करे और लड़की से पूछे कि वह रिश्ता मानेगी निकाह के वक्त या नहीं । निकाह
पहला हक है रिश्ता माँगने का अपने ही बुआ के लड़के का मामा के लड़के का मौसी के लड़के का ,फिर मामा के साले मौसी के देवर ,बुआ के देवर जेठ आदि के लड़कों का । दो अलग माँ दो अलग बाप के बच्चे शादी कर सकते हैं चाहे वे कजिन लगते हों । पहला हक कुटुंबियों का है  नाता माँगने का और लड़के वाले प्रस्ताव ले ले कर आयेंगे । मेहर की रकम पर मोल भाव हो सकता है कम बढ़ हो सकता है किंतु किसी भी सूरत में इतना मेहर नहीं रखवाया जा सकता कि लड़के की हैसियत ही ना हो अदा करने की ।
मेहर वह रकम है जो औरत के जिस्म का इस्तेमाल करने से पहले शौहर को अदा करनी होती है । इसलिये शौहर पहली रात में सबसे पहले बीबी के पास या तो मेहर अदा करे ,या बीबी को मना ले कि वह मेहर माफ कर दे मुल्तवी रखे ताकि वह मेहर धन शौहर के पास अमानत रखी मानी गयी जब चाहे माँग सकती है ।
अघोषित प्रचलन यह है कि कि तलाक इसी डर से नहीं देते मर्द कि मेहर अदा करना पड़ेगा और मेहर सारी जिंदगी मुलतवी ही रहता है कभी नहीं चुकाया जाता ,तलाक देने पर जरूर मेहर चुकाना पड़ता है । सो लड़की वाले अधिकतम मेहर "चाँदी"के सिक्कों में तय करवाते हैं ,और लड़केवाले कम से कम रखना चाहते हैं कि जब चाहें तब तलाक कह सकें ।
हलाला
यूँ गले पड़ जाता है औरत के और शौहर यूँ मान मनौवल पर उतर आता है तलाक देने के बाद कि कह तो दिया तलाक अब मेहर कैसे दें ?
चलो फिर निकाह कर ले बस तुम किसी गैर को कुबूल कर लो निकाह कर लो वह तुम्हें तलाक देगा और मैं कर लूँगा फिर निकाह ।
इस फौरी तौर के हलाला में न जाने कितने मौलवी लिप्त रहते हैं वह कहानी कहने लायक ही नहीं ।
महिला
अधिकार में रह जाता है "हक ए दुखतरी "मतलब जब किसी भी उम्र में लड़की बूढ़ी तक हो जाये तलाक दे दे शौहर तो वह बाप और बाप की जायदाद के वारिसों की जिम्मेदारी है वे आयें और ले जायें रखे और खिलायें
पिलाये जब कि वे उसका दूसरा निकाह नहीं करा देते ।
हके दुखतरी दुख ही दुख की कहानी बन जाता है जब एक लड़का पैदा करने के चक्कर में दस बेटियाँ पैदा होती चलीं जातीं है और आखिरी का लड़का बुढ़ापे तक यह हके दुखतरी भरता रह जाता है ।
सेक्स
संबंधों से शौहर को औरत कभी मना नहीं कर सकती । ना ही बच्चा जनने से मना करने का हक है उसको ।वार
िस बपैदा नहीं कर सकती तो शौहर उसकी मौजूदगी में दूसरी औरत से निकाह कर सकता है । औरत को रोटी कपड़ा रहने का कमरा देवने कीऔकात और ""खर्च-ए-पानदान "देने का दम है तो वह चार निकाह एक साथ कर सकता है और ऐसा वह कितनी भी बीबी रख सकता है चार एक समय में मौजूद रखने को तलाक देता रह सकता है हर बार एक औरत को तलाक देता रह सकता है ।
आयु का फासला मर्द की उम्र कोई भी हो सकती है ,लड़की रजस्वला होते ही जवान मानकर वह उसका बलात्कार तक कर सकता यगदि उसने निकाहकुबूल किया है तो ।
70 और 12 की भी शादी हो सकती है ।
मुसलिम औरत को गैर मर्द से परदा बिना बात करने का हक नहीं ।
महिला दिवस
तीन तलाक
हलाला
बुरका
मसजिद में नहीं जाने की पाबंदी
जनाजे की नमाज ना पढ़ने की पाबंदी
कब्रिस्तान ना जाने की पाबंदी
बिना पुरुष साथ लिए कहीं भी जाने की पाबंदी
रंग मरजी के पहनने की पाबंदी
नेल पाॅलिश नहीं लगा सकतीं ,लगायी तो छुटाओ अगले ही घंटे क्योंकि वुजू में नाखून नहीं भीगे तो नमाज नहीं अदा होगी
नमाज ईदगाह में पढ़ने की पाबंदी
नमाज सफे में पढ़ने की पाबंदी
रजस्वला होने के दिनों में रोजा स्वीकार नहीं वे रोजे रमज़ान के बाद कर्ज के रोजे एक एक करके जुमे को पूरे करतीं है औरतें
सिर ढँकना हर हाल में अनिवार्य ,तीन से दस के बीच ही
हर समय पाँच कपड़े सिर पर ढक्कन रखना जरूरी ।
जब तक लड़का ना पैदा हो जाये तब तक बच्चे पैदा करते रहने की अघोषित शर्त ।
शौहर  की जायदाद पर कोई हक नहीं न शौहर के रहते ,न शौहर के मरने पर बेवा केवल धाय माँ होती है शौहर के बच्चों की
बच्चों पर भी कोई हक़ नहीं, कोख का किराया दूध का दाम चुकाकर शौहर छीन सकता है बच्चे तलाक देकर ,बिना तलाक दिए भी बाप ही सारे फैसले लेगा लड़की हो या लड़का
मुसलिम लड़का गैर मुसलिम लड़की से शादी करता है तो उसकी हैसियत केवल जिस्मानी ताल्लुक की है बिना मुसलिम धर्म स्वीकारे उसकी औलादें तक हकदार नहीं मुसलिम की जायदाद में ।
मुसलिम लड़की का गैर मुसलिम से निकाह मान्य ही नहीं वह वाॅईड शून्य और हराम है लड़का मुसलमान बने तब जायज है ।
तलाक के बाद उसी शौहर से बच्चे पैदा होने पर निकाह कायम रहने पर पैदा हुये बच्चे जायदाद के हकदार हैं ,तलाक के बाद वाले नाजायज ।
बिना दूसरे गैर पुरुष से निकाह करके जिस्मानी संबंध स्थापित कराये बिना तलाक प्राप्त करके फिर इद्दत यानि रजस्वला होने तक का समय ,एकांत में बिताये ,वापस अपने ही शौहर के साथ अपने बच्चों के बाप के साथ रहना वर्जित है ।
हलाला इसलिये औरत पर ही दंड है कि ऐसी नौबत आयी क्यों कि शौहर ने तलाक कह दिया । कह दिया तो कह दिया ,अब वह दुबारा मान मनौवल क्या करे ,जाये इद्दत करे यदि गर्भवती नहीं है तो दूसरा निकाह करे ,यदि है तो बच्चे का कोख किराया दूध का दाम लेकर तब तक बाप के घर रहे । और वापस उसी शौहर को पाना चाहती है तो जाये पहले एक गैर से निकाह करे "हलाला "भुगते फिर तलाक ले फिर इद्दत करे फिर आकर शौहर से निकाह कर सकती है ।
औरत जब नमाज पढ़े तो इतनी झुकनी चाहिये कि पेट के नीचे से बिल्ली तक ना निकल सके ,और मर्द जब नमाज पढ़े तो इतना झुक सकता है कि पेट के नीचे से बकरी तक निकल जाये ।
औरत दुआ माँगे तो दसों उँगलियाँ चिपकी हों हाथ अँगूठे की जड़ों तक बंद हो ,चेहरा भौंहों तक बंद हो ,कान के पास एक बाल तक कपड़े से बाहर न हो । अज़ान की आवाज ना निकले ।
मर्द जब नमाज पढ़ें तो उंगलियाँ खुली हों और टोपी ही काफी है ।
औरत का जिस्म सारा का सारा ही कामवासना भड़काने का सामान है औरत की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी मर्द के भीतर काम वासना ना भड़के इसलिये अपनी बाँहें पूरी ढके ,गला सिर बाँधकर रखे और चोहरा पूरा बंद रखे पाँवों को ना दिखाये ।
बाप को हक है कि वह कि बेटी का वालिद होकर किसी से भी उसका नाता कर दे । खयाल उल बुलूग के तहत लड़की जवान होने पर यानि रजस्वला होने पर चाहे तो निकाह तोड़ दे चाहे तो कायम रखे ।
लड़की को निकाह कुबूल करने या मना करने का तो हक़ है । लेकिन वह स्वयं रिश्ता नहीं चुन सकती ये काम बाप का है कि आने वाले प्रस्तावों पर वह विचार करे और लड़की से पूछे कि वह रिश्ता मानेगी निकाह के वक्त या नहीं । निकाह
पहला हक है रिश्ता माँगने का अपने ही बुआ के लड़के का मामा के लड़के का मौसी के लड़के का ,फिर मामा के साले मौसी के देवर ,बुआ के देवर जेठ आदि के लड़कों का । दो अलग माँ दो अलग बाप के बच्चे शादी कर सकते हैं चाहे वे कजिन लगते हों । पहला हक कुटुंबियों का है  नाता माँगने का और लड़के वाले प्रस्ताव ले ले कर आयेंगे । मेहर की रकम पर मोल भाव हो सकता है कम बढ़ हो सकता है किंतु किसी भी सूरत में इतना मेहर नहीं रखवाया जा सकता कि लड़के की हैसियत ही ना हो अदा करने की ।
मेहर वह रकम है जो औरत के जिस्म का इस्तेमाल करने से पहले शौहर को अदा करनी होती है । इसलिये शौहर पहली रात में सबसे पहले बीबी के पास या तो मेहर अदा करे ,या बीबी को मना ले कि वह मेहर माफ कर दे मुल्तवी रखे ताकि वह मेहर धन शौहर के पास अमानत रखी मानी गयी जब चाहे माँग सकती है ।
अघोषित प्रचलन यह है कि कि तलाक इसी डर से नहीं देते मर्द कि मेहर अदा करना पड़ेगा और मेहर सारी जिंदगी मुलतवी ही रहता है कभी नहीं चुकाया जाता ,तलाक देने पर जरूर मेहर चुकाना पड़ता है । सो लड़की वाले अधिकतम मेहर "चाँदी"के सिक्कों में तय करवाते हैं ,और लड़केवाले कम से कम रखना चाहते हैं कि जब चाहें तब तलाक कह सकें ।
हलाला
यूँ गले पड़ जाता है औरत के और शौहर यूँ मान मनौवल पर उतर आता है तलाक देने के बाद कि कह तो दिया तलाक अब मेहर कैसे दें ?
चलो फिर निकाह कर ले बस तुम किसी गैर को कुबूल कर लो निकाह कर लो वह तुम्हें तलाक देगा और मैं कर लूँगा फिर निकाह ।
इस फौरी तौर के हलाला में न जाने कितने मौलवी लिप्त रहते हैं वह कहानी कहने लायक ही नहीं ।
महिला
अधिकार में रह जाता है "हक ए दुखतरी "मतलब जब किसी भी उम्र में लड़की बूढ़ी तक हो जाये तलाक दे दे शौहर तो वह बाप और बाप की जायदाद के वारिसों की जिम्मेदारी है वे आयें और ले जायें रखे और खिलायें
पिलाये जब कि वे उसका दूसरा निकाह नहीं करा देते ।
हके दुखतरी दुख ही दुख की कहानी बन जाता है जब एक लड़का पैदा करने के चक्कर में दस बेटियाँ पैदा होती चलीं जातीं है और आखिरी का लड़का बुढ़ापे तक यह हके दुखतरी भरता रह जाता है ।
सेक्स
संबंधों से शौहर को औरत कभी मना नहीं कर सकती । ना ही बच्चा जनने से मना करने का हक है उसको ।वार
िस बपैदा नहीं कर सकती तो शौहर उसकी मौजूदगी में दूसरी औरत से निकाह कर सकता है । औरत को रोटी कपड़ा रहने का कमरा देवने कीऔकात और ""खर्च-ए-पानदान "देने का दम है तो वह चार निकाह एक साथ कर सकता है और ऐसा वह कितनी भी बीबी रख सकता है चार एक समय में मौजूद रखने को तलाक देता रह सकता है हर बार एक औरत को तलाक देता रह सकता है ।
आयु का फासला मर्द की उम्र कोई भी हो सकती है ,लड़की रजस्वला होते ही जवान मानकर वह उसका बलात्कार तक कर सकता यगदि उसने निकाहकुबूल किया है तो ।
70 और 12 की भी शादी हो सकती है ।
मुसलिम औरत को गैर मर्द से परदा बिना बात करने का हक नहीं ।

मुता निकाह
एक कान्ट्रैक्ट मैरिज है जिसमें कुछ दिन महीने या साल के लिए मर्द यात्रा आदि के दौरान किसी औरत से निकाह कर लेता है धन अदा करता है लड़की के बाप को और लड़की को कहीं घुमा फिरा तो सकता है अपने घर नहीं ले जाता वह बाप के ही घर रहती है और जो बच्चे पैदा होते हैं वे भी लड़की के बाप की जिम्मेदारी होते हैं ,या तो कोख दूध आदि का किराया देकर मर्द अपने बच्चे ले जा सकता है ।
लड़की तलाक के बाद फिर नये निकाह के लिए आजाद है । और काजी ऐसी शादियाँ कराते हैं।
औरत कोई बच्चा गोद नहीं ले सकती ।
मर्द अपनी से बारह साल तक बड़ी औरत से भी निकाह कर सकता है । और बारह साल तक का बच्चा लड़का किसी औरत के लिए "महरम "यानि संरक्षक गवाह पुरुष माना जाता है ।
औरत की गवाही मर्द से पाँच गुनी कम है ।
यदि गुनाह हुआ है तो कोई मर्द गवाह लाना पड़ेगा या पाँच औरतें गवाह लानी पड़ेगी ।
(महिला दिवस )
क्या उनके लिए भी है ?
सब कुछ जहाँ मर्द की दया उसके खुश रहने की मरजी पर निर्भर है !
(सुधा राजे )

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