संस्मरण...एक थी सुधा, ,सुधा विषपायिनी

अजनबी मित्र (संस्मरण)सुधियों के बिखरे पन्ने
.................1993 ....हम एक विवाह समारोह में भाग लेने के लिए ग्वालियर से गोरखपुर जा रहे थे कंधे पर बन्दूक थी हाथ में फाईबर का सूटकेस और टीशर्ट जीन्स बूट चश्मा छोटे बाल ,ट्रेन के डिब्बे कनेक्टेड नहीं थे ,परिवार के पुरुष सदस्य रिजर्व की बजाय दूसरे डिब्बे में चढ़ गए और हम दो लड़कियाँ एक डिब्बे में , संयोग से लगभग आधे से अधिक कूपों में सैनिक और हमारे वाले कूपे में नवदंपत्ति बैठे थे ,हमारी सीट पर ।,चौकन्नी बुद्धि रहती थी तब जैसा पारिवारिक प्रशिक्षण था ,सो हमने दुल्हन को उठाया नहीं वहीं बगल में दोनों लड़कियाँ बैठ गए । गैलरी वाली सीटों पर सैनिक हमारे कंधों पर बन्दूकें देखकर ,पुलिस या एन सी सी समझते रहे ,हम लोग सब सुनते रहे मन में चिंता तो थी परन्तु घबराहट नहीं , । छोटी बहिन हमारी दांयी ओर और वह दुलहन पूरा लंबा घूँघट डाले जरी सितारों की लाल साड़ी चूड़ी पहने हमारे बाँयीं ओर ,दो तीन छोटी लड़कियाँ सामने की हमारी आरक्षित सीटों पर और रुपयों की माला सुनहरी टोपी पहने उसका दूल्हा गैलरी की सीट पर था । जैसे जैसे दुलहन लंबा घूँघट खींचकर जगह छोड़कर खिसकती जाती ,हम तनिक और आराम से फैलकर बैठते जाते थके भी थे और चिंतिंत भी नींद तो नहीं आती कभी हमें यात्रा में ,दूसरे के घर पर भी ,तो भी आँखें बंद करके सिर पीछे टिकाया और बेल्ट की चेन से बंदूक बाँधकर कसकर पकड़ कर टिक गए सोने जैसी मुद्रा में । थोड़ी देर में उस दुलहन ने छोटी बहिन को ,जिसके बाल लंबे थे और कुरता सलवार दुपट्टा पहने थी ,नाक कान में जेवर भी ,उससे कहा फुसफुसा कर "अपने भाई को उस तरफ बिठा लो ये तो जित्ता हम सिकुड़ते जा रए उत्ता पसरते जा रए "हम सुन रहे थे अचानक हँस पड़े । ओह तो ये समझ रही है कि हम अनुचित छूने की कोशिश में लड़के हैं । दुलहन हँसी सुनकर घबरा गयी और बहिन का तो हँस हँस कर बुरा हाल ,बमुश्किल बोली "बड़े दादा आप उस तरफ बैठो " हमने जगह तो बदल ली ,फिर वे दोनों बातें करने लगीं । इतने में उसका चमकीली टोपी वाला वर आ गया और बोला "हमई सीट पे सेँ उठो , हम बैठेंगे इतै । हमने जब टिकिट दिखाकर कहा ये छहों सीट हमारी हैं और आप मजे से बैठे आ रहे हो !! हम पर ही अकड़ भी ? तो वह और ऐंठ कर बोला हमऊँ ने पइसा दओ ,हमाई बऊ के लिगाँ तुमिन काए बैठने ? तभी बहिन से सारी लाईट्स जला दीं और इतने में सामने से कुछ सैनिक आ गए ,उन दंपत्ति के सामने उलटा संकट खड़ा हो गया कि ,बैठे तो थे पराई सीट पर रौब बेवजह झाड़ दिया । अंत वह साॅरी  कहके  माफी माँगने लगा ,हमने कहा बैठो जंक्शन आने पर सीट बदल लेना। इस बीच सैनिकों से बातें होतीं रहीं सैकड़ों दुख सुख बतियाते सुबह हो गयी । जंक्शन आने पर परिवार के सब पुरुष भागते हुए कूपे में आए , तो हम दोनों को सुकून में सही सलामत पाकर निश्चिंत हो गए ,सामान बहुत था । भात का नेग और परंपरा के बहुत दाय थे जो वहीं विवाह में भेंट में रखने थे । सैनिकों ने एकाएक एक एक सामान उठवाया और रेलगाड़ी से निकलने लगे हमने बहुत रोका कि कुली बुलाते हैं । कम रौशनी भोर का झुटपुटा ,ट्रैन बहुत देर रुकती है ,जीप बाहर खड़ी होनी चाहिए थी हम लोगों को लिवाने ,वहाँ तक कोई सहयोगी तक नहीं । सैनिकों ने ट्रैन थोड़ी देर और  रुकवा दी और कुछ मिनिट ,भोर का उजाला बढ़ते ही जीप आ गई ,तब वे युवक परिजन बुजुर्गों के चरण छूते हुए हमारे सामने हाथ जोड़कर बोले "क्षमा करना दीदी ,हमने लड़का समझकर बहुत सी बातें की ,आप तो एक दम अलग ही हो ,सच मुझे नहीं मालूम था कम रौशनी में कि हम लोग लड़की से बातें कर रहे हैं ,कुछ मुँह से अशोभनीय निकला हो तो बुरा मत मानना कहकर पाँव छू लिये हमारे भी ।हम अकबका गए अरे ये क्या ,? आप तो वीर सैनिक हो हमारे नमन आपको , हम तो आयु में भी छोटे हैं ,वे लोग बोले हमारे यहाँ बहिन बेटी छोटी हो या बड़ी चरण स्पर्श करते हैं हम । अब मेरी कवच धारी कठोरता से भरी आँखें भीगने से बचाना मेरे लिए भारी कष्टकर हो रहा था । तभी बापू ने आम की बोरी निकाली और बोले भांजों के लिए ले जा रहा था ,आप का हक पहले है लो और जमकर खाओ । आम !!अरे वाह ,वे लोग दो चार निकाल कर बोले ,बापू ने कहा पूरी बोरी खानी है ,लंबा सफर है ,आराम से खाना । तभी ट्रैन ने सीटी दी ,युवक हाथ हिलाते बोरी लेकर दौड़ गए , हम लोग सोच रहे थे ,ये नाते कहीं भी ऐसे कैसे बन जाते हैं । खिड़की में से दुलहन घूँघट उघाड़े भोर की रौशनी में बारीक किंतु तेज आवाज में बोली दीदी नमस्ते ,! चाँद सुबह सुबह निकल पड़ा हो जैसे ,अभी तो उसके वर ने भी नहीं देखा था मौर बँधा माथा लाल हथेलियाँ देर तक हिलती रहीं । हम लोग हिचकोले खाती जीप में चल पड़े ©®सुधा राजे

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