लघु लेख~::बुन्देली होरी

#बुन्देलखंड में प्रतिपदा यानि परमा ,के दिन धूलिवन्दन और द्वितीया के दिन रंग गुलाल अबीर की होली होती है आज वहाँ सब बहिनों बेटियों बुआओं ननदों से तिलक करवाकर होली खेलने  हैं ""प्रथम पूज्य "बहिन भांजी बुआ ननद भतीजी का यह सम्मान बुन्देलखंड बृज चंबल के सिवा कहीं नहीं देखने को मिला । हर कार्य में प्रारंभ पहले कन्या बहिन बेटी भांजी भतीजी ननद कुमारी सायली तक के जीजाजी पाँव छूते हैं ,वधू आगमन पर पहले सास ही देहरी पर नववधू के पाँव छूकर भीतर गृहप्रवेश कराती है ।
बुन्देली संस्कृति में राजा ,महापुरोहित ,सैनिक ,व्यापारी धनिक सब ,शूद्र हो या चांडाल की ही कन्या क्यों न हो उसके चरण स्पर्श करता है ,बड़े हों या छोटे मामा काका पिता ताऊ दादा नाना फूफा जीजा भाई सब बेटी बहिन भतीजी भांजी बुआ के चरणस्पर्श करते हैं । हर पर्व पर प्रथम भेंट उनको मिलती है हर फसल पर पहला भाग उनका निकलता है हर शुभ कार्में वे ही सबसे आगे रहतीं हैं । उनके सामने गाली देना पाप उनकी सौगंध उठाकर झूठ बोलना पाप उनके समक्ष अभद्रता ,यानि धूम्रपान मदपान करना पाप ,उनको जूठा खिलाना पाप ,उनके भाग को न देना पाप समझा जाता रहा है । इस सुंदर प्रांत को हर तरह से नष्ट करने में सदियों से लोग लगे हैं।
यहाँ आभासीय पटल पर भी बहुत से बुन्देली हो सकते हैं ,मित्रगण या फोलोवर्स सबको ,आज रोली अक्षत टीका प्रेषित है ।
अपनी अनूठी परंपरा की रक्षा करें ,अपनी बुन्देली की रक्षा करें अपने बीच स्त्रीभक्षकों न घुसने दें ।
भैयादोज वाली रंगवारी होरी फाग की शुभकामनायें रामराम ©®सुधा राजे

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