लेख: :सावधानी स्त्री की सोशलमीडिया पर

बात सखियों से """"

छद्म नायकों का युग है,

"""स्त्री कौम का मान करता हूँ """
आदि वाकजाल दिखा लिख कर तमाम वाकवीर 'पढ़े ज्यादा गुने गढ़े कम '
इस मुखरमुखपुस्तिका मंच पर हैं "

गलती हर उस स्त्री की अधिक है जो बाह्य या इन बॉक्स 'ऐसे तत्वों को बरदाश्त करे ',
इस फेसबुक से अधिक अधिकार तो माँ बाप भाई भी नहीं देते

स्वतंत्रता ठीक परंतु स्वछंदता पर स्वाधीनता का अंकुश रहे ',

कोई सौ पचास या पचास लाख भी 'मानव मानवी के आचरण व्यवहार पर "सामान्यीकरण करके सब पर लागू नहीं कर सकता,

स्वयं किसी पर व्यक्तिगत गलत टिप्पणी न करें
और होश रहे कि जो भी पूरी स्त्री कौम को केवल स्त्री होने मात्र पर जमाना के नाम पर फैशन या वक्त के नाम पर ''उपहास व्यंग्य या निंदा का पात्र बनाता है "अपनी वॉल पर ऐसे बयान होने देता है वह "
कैसे एक भला व्यक्ति हो सकता है!!!!!

चाहे उसका पद या डिग्री कुछ भी हो!!!

ज्ञानी तो रावण और दुःशासन कंस भी कम न थे,,,,,,,

जरा याद करें कि ईश्वर का हर अवतार साबित करता है '(यदि वह है अवतार कि, (
स्त्री के प्रति व्यवहार ही मानव की कसौटी है पाप पुण्य सदाचार कदाचार 'की
जो जो 'बहुत कुरेदता हो फैमिली,  पता फोन निजी बातें और तसवीरें वहाँ ''सचेत हों
और आपके विचार की बजाय व्यक्तित्व में रुचि हो तो

निर्णय लें ''
निंदा एक स्त्री की हो या सबकी स्त्री निंदक 'केवल स्त्री मात्र होने भर से यदि निंदा करे तत्काल ब्लॉक करे अनलिस्ट करे और सखियों को भी सूचित करें ''

शुभस्य शीघ्रम ',
ये मंच हम सबका है किसी की बपौती नहीं ',
इसे गंदगी से बचाना भी है और 'लोकतंत्र के हक के तहत अपनी आवाज को उठाना भी है '

लानत्त उन लङकियों को पहले है जो दूसरी किसी भी लङकी का अपमान बरदाश्त करती हैं ।

अनेक
वाकवीर 'किसी भी एक स्त्री को टारगेट करके लगातार वह सब बकवास बोलते ही चले जाते है बौद्धिक शब्दजाल में लपेटकर जो उन लोगों की ''''अपनी एकांत की असलियत होती है ।

ऐसे अनेक युवा ही नहीं बङे बुजुर्ग भी हैं जो किसी "लङकी "के दोस्त बनकर इनबॉक्स बतियाने को बेताब हैं और केवल इसीलिए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजते हैं ।
लङकियाँ इस सहानुभूति के जाल को समझते हुये भी "इमोशनल फूल ''बनकर फँस जाती हैं ।

मैत्री प्रकृति है छल फरेब से परे सत्य भी मित्र हो सकता है और झूठ भी ।

सचेत रहिए

ऐसी अनेक फेक आईडी हैं जो "लङकी का फोटो लगाकर "पुरुष ने बना रखी हैं और मनोरंजन करतीं हैं ये फेक आई डी कभी किसी पुरुष की गर्लफ्रैंड बनकर अपनी मंडली में ""तो कभी स्त्री की सखी बनकर ''

समझ से काम लें
जब आप सोशल मीडिया पर होते हैं तो "दिमाग का भावुकता वाला एक खास हिस्सा  ''जो लोगों से अपनी कहना और अपने जैसी सुनना पढ़ना देखना चाहता है ''  बहुत सक्रिय हो जाता है ।
समाज सबको चाहिये और अपने विचार अनुभव कथन शेयर करना ही तो कला और साहित्य है समाज है ।

मानव एक सामाजिक प्राणी है ',
मानव का अनेक मानवों के संपर्क में रहने अपनी कहने सुनाने का स्वभाव है ''

इसी का लाभ उठाते है कांइयां लोग

अत्यधिक मधुरता में कुछ छल कुछ स्वार्थ छिपा रहता है ।

निजी जानकारियाँ भूलकर भी शेयर न करें ।

कोई भी पुरुष सारे पुरुषो का प्रतिनिधि तो नहीं  =
इसलिए समग्र की बात करने को लताङने से डर कैसा!!
स्त्री का हक है कि उसे कोई घूरे नहीं अगर वह न चाहे तो नाम पता परिवार न पूछे अगर न चाहे तो मित्र न बनाये '

कभी भी एफ बी मित्र को घर न बुलायें न घर जायें '
जब तक कि आपका परिवार और आप इतनी क्षमता और पारदर्शिता नहीं रखते कि गलत व्यक्ति को दुत्कार सको ।

==== इन वाहियात लोगों के शब्दों का विरोध करने वाले सज्जन भी यही इसी मंच पर हैं ""

किसी सगे भाई बंधु मित्र पुत्र पङौसी और मानवीय मनुष्य की भाँति ''

डरें नहीं परंतु
"""फिजूल बहस मूर्खों से न करें ""
अधिक मुँह न लगाये ',लगे कि कुछ अधिक ही चिपकू है तो तत्काल ब्लॉक करें ""
मंच और बहस के नाम पर अपनी वॉल पर गंदी भरी बहस चलाकर ये सब लोग अंदर का पिशाच ही संतुष्ट करने वाले मनोरोग को ही व्यक्त करते हैं

जिसमें ""अप्राप्य स्त्री या जिस स्त्री स्वभाव बोल ऐसों के पुरुषदंभ को आहत करे '''

उसका काल्पनिक "मानहनन ''
करने का दुःशासनवादी दुर्योधनवादी सुख पाते हैं ।

जै जगत जै जीव जयहिंद
ये राष्ट्रभक्त धरमी और साहित्यकार पत्रकार अदाकार जो भी हों ""पुरुष की तरह अगर निरीह की छाया न बन सकें और मानव की तरह मानवीय दुख सुख के लिए सहानुभूति न हो तो ''यहाँ ऐसे बतक्कङों को महान समझने से बचें ।
उनको फोलोवर्स चाहिए और इतनी लङकियाँ मेरी लिस्ट में का दंभ भी ।

सचमुच जो गंभीर मुद्दे है उनपर खुलकर राय रखे अपनी वॉल पर
और कमेंट करें जब तो तर्क तक ही सीमित रहें ""कुतर्क होते ही "डिलीट करें और अपने घर आ जायें ""

मूर्ख चुनौती दे तो क्या समझदार खाई कीचङ में कूदेगा???
कोई भी कितना ही बङा ""नायक बना
फिरता हो "
एक बार भी अगर वह अपने दरबार में किसी स्त्री की नाम पहचान उजागर करके फिर सब मित्रों को उसका अपमान करने देता है '''''

उसको क्या "धृतराष्ट्र की सभा न कहा जाये???

बहस?  की सीमा होती है चाहे लङकियाँ हों या लङके
और ये सीमा लङकियों को पहले पहचाननी होगी
चित्र तक से वासना संतुष्ट करने वाली पुरुष प्रकृति को जानते हुए भी अगर अनजान बनती हो तो "मूर्ख तुम हो लङकियों '''वासना और कुत्सित मनः स्थिति को पहचानने की प्राकृतिक शक्ति हर स्त्री को मिली है ।
देह
से परे आप मानव है और जो भी समाज देश राष्ट्र है उस सब पर आपका भी हक है '
एक भी व्यक्ति स्त्री के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने का हकदार नहीं ।

केवल इसलिए कि गंदगी नंगई बोले लिखे करे तो अपमान औरत का ही होगा!!!!!!!

वहम है

ऐसा भी अल्प ही सही समाज है पुरुषों का जो इस का मरने मारने पर भी समर्थन नहीं करेगा
वरना स्त्री की मरयादा लज्जा बचाने को प्राण दाँव पर लगाने की कथायें न होतीं


परंतु
वे सब जो स्त्री की मर्यादा लाज बचाने को प्राण दाँव पर लगा
सकते हैं वे "शर्त भी रखने के हकदार है कि """तुम मद्यपों विक्षिप्तों कामुको असभ्यों और अपनाधवृत्ति के अमर्यादितों के करीब नहीं जाओगी न उनको करीब आने दोगी,,,
स्वयं ही सतर्क रहकर अपनी मान मर्यादा की सीमाओं की रक्षा करोगी
क्योंकि पुरुष स्वभाव ही है वासना से ही ग्रस्त वह योगी कहलाता है जो वासना जीत लेता है ''''जबकि स्त्री स्वभाव से ही प्रेम और दया की सतमूर्ति है '''वह  "न जाने क्या क्या "" कहलाती है जो वासना से ऊपर उठकर स्वयं को अपनी ही मान प्रतिष्ठा नहीं दिला पाती ।

गालियाँ देना और स्त्री को अपमानित करने के लिए नंगई पर उतर कर हँसना यही तो "पशुराक्षस प्रवृत्ति है ""

आजादी सबका हक है
अब सवाल है कि आप अपनी आजादी किससे कैसे कहाँ तक शेयर करतीं हैं ।

©सुधा राजे
आपके पक्ष में खङे तमाम लोग किसी सगे भाई पिता काका मामा पुत्र मित्र से कम नहीं ।
परंतु इस पक्षपात की खैरात माँगने न जायें
सबसे पहले और अंतिम बात """मौलिक बनो ""नकल नही स्वयं के विचार लिखो और अगर किसी दूसरे के विचार शेयर करो तो उसे उसके नाम से करो "क्योंकि "बरसों से लोग जो जिसे पढ़ते सुनते देखते है उसके कथन स्वभाव और शैली को तत्काल पहचान भी लेते है "
नकल चोरी और केवल कहने के लिए कही गयी बात से """"आप अपनी भी बनी बनाई रही सही प्रतिष्ठा भी खो देते है और कल कुछ मौलिक कहें तो कोई यकीन भी नहीं करेगा ''
क्योंकि सामने न कहे पीछे कहेगा ही कि "ये तो उन की नकल है या उन की ''

आज का संदेश सब सखियों बहिनों लङकियों के ही नहीं वरन पाठक मित्रों के लिए भी है ।
©®सुधा राजे

Comments