उपन्यास: एक अधूरी गाथा"सुमेधा"भाग4

शराफ़त
कहानी **भाग6
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तेज जॉज की आवाजें नीचे हॉल से आनी जब बर्दाश्त नहीँ हुयीँ तो सुमेधा ने फोन किया शाहीन को । शाहीन उसकी क्लासमेट ।
--- आ रही हो क्या?टिकिट मँगालूँ ?कौन सी टॉकीज ?
कुछ देर बाद दोनों सहेलियाँ लेडीज कंपार्टमेंट में "नाचे मयूरी "देख रहीं थीँ
शाहीन उसके विपरीत घुटनों तक लटकती चोटी साँवला रंग किसी क्लासिकल फिल्मी पात्र सी सलवार दुपट्टे कुर्ते में में बङे बङे झुमके खूब सारी चूङियाँ पहनने वाली लङकी । लेकिन दोस्ती जैसे जनम जनम की हो गयी चंद दिनों में ।बात बात पर खिलखिलाती शाहीन अक्सर सुमेधा से कहती --तू मुस्करा तो दे जानेजिगर इतना दमदार चुटकुला किसी को सुनाया होता तो कुर्सी उलट जाती ।
वास्तव में सुमेधा कम ही मुस्कराती हँसती लेकिन जब शाहीन हँसती तो वह भी हँस देती और शाहीन कह उठती -
--सुभान अल्लाह इस मुस्कराहट पर कौन ना मर मिटे या ख़ुदा ।
      कोई मर मिटा था सचमुच मुसकान पर नहीँ उस सर्द खामोशी पर चुपचाप सुलगती अँगीठी सा एक चेहरा सुमेधा का शेखर के जेहन पर जैसे सम्मोहन सा छा रहा था । वह बार बार उस तरफ से अपना ध्यान हटा रहा था लेकिन हाथ में सारिका और कहानी पढ़ते जैसे वह सुमेधा को ग़ौर से देख रहा था
------ज़िंदगी ने भरपूर नजर से शाल्मली को देखा था । परंतु पीछे तक़दीर कुटिल मुस्कान से देख रही थी । दर्द और स्त्री का नाता तो साँस और हवा सा है स्त्री होकर शाल्मली ने दर्द से बचना चाहा । वह प्रेम से बच रही थी । वह दर्द से डर चुकी थी माँ की तरह वह किसी मर्द के बाजू पर अपनी ख्वाहिशों का घर नहीँ बनाना चाहती थी कि जब हाथ हटे तो घर भी न रहे ।----—

शेखर ने पत्रिका गहरी साँस भरकर ऱख दी । सिगरेट सुलगायी और लॉन में आ गया । उसके पिता दुबई में रहते थे । और माँ का देहांत कई साल पहले हो गया था । भाई का कपङों का कारोबार था और भाभी अंग्रेज कभी कभी उसके पास आकर बैठ जाती जब वह सितार या पियानो लेकर बैठ जाता । आज वह लॉन में बैठा ही था कि भाभी आ गयी --शेकर अमको हिंदी मूवी दिकाओ -कुछ सोचता हुआ वह अखबार देखने लगा और भारतीय नृत्य संगीत की दीवानी अपनी भाभी को "नाचे मयूरी"दिखाने ले आया । टॉकीज की बालकॉनी में बिठाकर वह सिगरेट लेने गया ही था कि सुमेधा और शाहीन पर नजर पङी वे दोनों लकङी की दीवार के पार बैठी  पॉपकॉर्न और कॉफी ले रही थीँ । बाहर निकलते समय पार्किंग में भाभी से परिचय कराया और भाभी ने दोनों को घऱ चलने के लिये मना लिया । भाभी को भारतीय सभ्यता सीखने का शौक़ था औऱ  उनकी रूचि शाहीन में थी । कोठी में चाय नाश्ते के बाद भाभी शेखऱ का कमरा दिखाने ले आय़ीं । आलीशान कालीन झाङफानूस फायर प्लेस औऱ विक्टोरियन सोफा सेट । शाहीन की तो आँखें फटी जा रहीँ थीँ लेकिन सुमेधा की रुचि थी रैक में जो किताबों से भऱा था ।
*--आप पढ़ते हो?? अचंभे से सुमेधा ने पूछा ।
हाँ कभी कभी पर ये एक स्टेटस  सिंबॉल का ढकोसला भी है ।
सुमेधा ने बच्चों की तरह ललक कर पूछा
--हम देख ले?
Ek lammbi  KAHANI
क्रमशः
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सुधा राजे

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