लेख: :::पश्चिमी उत्तरप्रदेश

बूथ तक कौन जाता है वोट डालने !
*****************वह निर्णायक मात्र नहीं ,वे भी हैं जो घरों से ही नहीं निकलते ,केवल "हवा "समर्थन में विरोध में बनाते रहते हैं ।
निकम्मा वर्ग है मिडिलक्लास ,सबसे कम कर्मठता और सबसे अधिक बकबक करने वाले "राजनीतिक विशेषज्ञ इसी में पाये जाते हैं ।
*नोयडा जाने का अपशकुन है
*नरेश अग्रवाल पनौती है
*ई वी एम बिगाड़ नहीं पाये
*ब्राह्मणों की अनदेखी की है
*मठ के बाहर का आदमी केंद्र के दबाव में ले लिया
*सपा बसपा के लोग दलित मुसलिम एक छतरी में आ गये
*वोट डालने ही लोग नहीं निकले
*अति आत्मविश्वास ले डूबा
*जोगी योगी राजनीति क्या जाने
*56इंची सीना किधर गया
ये सब आप भी देख पढ़ सुन रहे होंगे ,
हमने तो खेत पर कटनी बोनी ,और घर पर बागवानी के बीच अभी अभी खोली "आननपोथी "और यह सब मिला ।
# योगीआदित्यनाथजी #अमितशाहजी #नरेंद्रमोदीजी #दिनेशशर्माजी #जगदंबिकापालजी #भाजपाकार्यालयउ.प्र
सबसे एक साधारण वोटर ग्रामीण कसबाई नागरिक के नाते कहना है कि ,वह मतदाता जो हर हाल में बूथ तक जाता है उसे बूथ तक केवल बड़े बैनर पोस्टर भाषण सोशलमीडिया और टीवी प्रचार नहीं ले जाते । आप ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं और खूब समझ सकते हैं कि आज भी मतदाता को गाँव कसबे में उनके बीच मुहल्ले का "दादाभाई "पकड़ता है ,हाँ भाई वोटवा कहाँ डारे के बा ?अरे बाबू जहाँ रऊरे कहब ओहरियाँ बटन दबा देबें ,हमार त मुख्मंत्री परधान मंत्री रऊरे ने बाड़ीं "हम केहू के नाईँ जानत आटीँ ,
यही कुल हाल है जिस पर बहुत कम श्रम हुआ है ,अखबार ट्विटर सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग बहुत कम धरती पर जमाने में सामने खड़े होकर लोगों को बटोर कर घर से बाहर निकाल पाते हैं । कई दर्जन लोग कुटुंब परिवार से छोटी बड़ी राजनीति में हैं और हम स्वयं कभी बहुत सक्रिय बेबाक प्रखर प्रचार में प्रथम पंक्ति के वक्ता रहे हैं तीन सौ गाँव एक सप्ताह में प्रचार का हमारा रिकाॅर्ड रहा है और निराश धारा बदल कर भी दिखाई है । इसलिए कह रहे हैं । कि पंच सरपंच ब्लाॅक प्रमुख प्रधान सोसायटी चेयरमैन नगरपालिका मेंबर चेयरमैन और समस्त छोटे बड़े "जातीय समूहों के नेता "वह सब करते हैं । यानि हाँक कर वोटर को बूथ तक ले जाना । जुमे के दिन वोट डालना और जुमे के दूसरे दिन वोट डालना सेकुलरिज्म के नाम पर क्यों चाहतीं हैं बहुत सारी क्षेत्रीय पार्टियाँ जबकि साफ साफ यह संदेश उनके विगत कार्य व्यवहारों से निकला है कि वे दल जाति और मज़हब के सिवा किसी मुद्दे की राजनीति नहीं कर रहे हैं । यूपी में मतदाता एक गड़रिये का मोहताज है जो भेड़ों की भाँति उनको बताए कि अब थम गया प्रचार सब की खाली पीली देख ली सुन ली "बाबू ,लाला ,भैया ,दाऊ ,दादा ,कहो किसे वोट करें ?और वहाँ दल गायब हो जाता है ,रह जाता है स्थानीय मुहल्लामुखिया ,जो सचमुच एक "दलाल"मात्र होता है । जिस किसी पार्टी से उसकी सेटिंग हो जाती है उस से वह मोटी रकम और सुविधा प्रतिमतदाता के नाम पर ले लेता है और यह झोले में "चप्पा" अद्धी पौवा बाँटने वाला 'दादा"उन सबको दो दाने देकर सौ के सौ अपनी अंटी में रखता है । इनकी राय कोई मायनी नहीं रखती ,रायतो बनाते हैं ,नल कुएँ मंदिर मसजिद पर बैठे स्त्री पुरुषों के झुंड जिनमें ,तर्क वितर्क चलते हैं और प्राय:फैसला जुमे की नमाज़ के समय हो जाता है ,दोपहर बाद का जुमे का मतदान "सब को परे रखकर एक नाम पर संकलित होते देखा जाता है । अंबेडकर पार्क में चल रहे लाऊडस्पीकर पर कीर्तन सभा में अंतिम दिन "कत्ल की रात "जिसे हम लोग उपहास में युवा राजनीति के दौर में कहते रहे । होता है । पढ़ा लिखा मतदाता सबसे बिखरा हुआ मतदाता है । जो अखबार सोशल मीडिया ट्विटर और निजी हित अनहित स्वार्थ अपने स्वयं के समूह के एजेंडे पर कार्य करता है । उनके परिवार में ही यह संभव हो पाता है कि पति दूसरे और पत्नी दूसरे तथा संताने किसी और ही प्रत्याशी या दल को वोट डाल सकते हैं । वरना तो ,बिरादरी का समेटवा वोट पड़ता है और यहाँ लैगिंक भेद समर्थन नहीं ना ही दल काम करता है ,यहाँ परिवार के मुखिया की किस मुहल्ला दादा से बैठक जमती है "दारू भाई "जुआ भाई ,और उधार दाता ,की बात होती है ।
स्थानीय चुनाव के मतदाता मेंबर पंच सरपंच प्रधान नगरपालिका चेयरमैन और ब्लाॅक प्रमुख जिलापंचायत के सीधे और बारंबार संपर्क में रहते हैं जबकि सांसद और विधायक प्राय:गृहनगर तक से बाहर के क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं और बहुत कम बार बाद नें सघन सीधे सरल संपर्क में रह पाते हैं ।
# मुख्यमंत्री #योगीआदित्यनाथ जी आकलन कीजिये  कि नगरपालिकाओं में कौन कहाँ कहाँ काबिज है ,और तौलिए चुनाव सांसद विधायक एमएलसी और निकायप्रमुख मेयर चेयरमैन सरपंच प्रधान के । आपको परिणामों में "स्थानीय "कार्यकर्ता से सूची मँगवानी चाहिए ,हर एक कार्यकर्ता 5नाम प्रस्तावित करे ,जिस नाम पर सबकी "हाँ "निकले मन से ,वही व्यक्ति देखियेगा जीत जायेगा । क्योंकि जब तक बेमन से कार्यकर्त्ता वोट माँगता ,अपील करता ,प्रचार करता और बूथ तक "हाँक "कर मतदाता को ले जाता है ।एनीमेशन फिल्मों के द्वारा बच्चों तक से प्रचार परोक्ष रूप से कराए जाते हैं । नन्हें बच्चे जो वोटर नहीं हैं जब खेल खेल में "रेलगाड़ी बनकर छुक छुक करते हुए किसी दल का परचम लेकर नारे लगाने लगते हैं तो 1000 में से 500 लोगों का हृदय उनके साथ हो जाता है ।
यह न योगी की हार है न मोदी की न शाह की ,इस हार का समस्त जिम्मेदार वह "कैडर है "जिसने प्रत्याशी चुनने में स्थानीय कार्यकर्त्ता से सूची नहीं ली । सबकी सूची लेकर उनमें आनुपातिक एकल संक्रमणीय प्रणाली से नाम चुनकर सबसे खुली बैठक में समर्थन विरोध के कारणों पर बहस करके एक नाम चुनकर सबसे फिर कहा जाता "चूकना नहीं है अब "
विगत निकायचुनाव जो 2017 में हुए हैं ,हमने देखा कि उसी दल के बड़े धनिक वर्ग के कार्यकर्त्ता ऊपरी मन से प्रत्याशी के साथ घूम रहे थे बाद में बैठकर "निंदा करके दुखड़ा रो रहे थे "। वोटर आपका ,केवल सदस्य नहीं है । न केवल भाजपा कार्य कर्त्ता । स्व:स्फूर्त लोग जो आपको यूपी में देखकर उत्साह से आशा से भरे वे हैं । जिन्होंने आपकी जीत के लिए व्रत उपवास तक किए मन्नतें मुरादें धागे बाँध नारियल प्रसाद चादरें तक चढ़ाई ।सो ,सबक लें ,
तनिक पीछे हटकर बहुत आगे बढ़ना तभी संभव है ।
©®सुधा राजे

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