कविता...राग में विद्वेष

राग में विद्वेष घोले  ,हम न बोले ,
और सब कहते रहे ,मेरा अहं है ,
,
चित्त की हर वेदनामई सोच पी
अवशेष खोले हम न बोले
और सब कहते रहे बस एक भ्रम है ,
,
शांत लगता ही रहा ये सिंधु नभ को
ज्वार से छूता अछूता रिक्त लौटी
हर लहर निज शक्ति तोले
हम न बोले और सब कहते रहे
दुख का चरम है ,
,
हाँ हमारे पास था है भी न कहना और कहना
किंतु भाता है मुझे यूँ मौन रहना ,
बोलना जितना कठिन चुप है असंभव
किंतु मेरे पास है इसका पराभव
बीत जाने दो निराशा और आशा
कौन लिख्खेगा ये टूटे छंद भाषा ,
अब
नहीं
कोई
वहाँ
मैं
हूँ जहाँ पर
मन हृदय मस्तिष्क
पूरे भाव खोले
हम न बोले
और सब कहते रहे
निज में स्वयं है
©®सुधा राजे

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