गज़ल":आँसू और बरसात

Sudha Raje
Sudha Raje
कल जमकर बरसात
हुयी थी मौसम आज
रँगीला है।
शाम चाँद बादल में सोया
सूरज पीला पीला है

जलता है चंदा की खुशी से
आफ़ताब
तन्हा आशिक़
धरती से मिलता है उफ़ुक पै
शफ़क शफ़क शरमीला है

कभी कभी तो लगता है ये
मौसम है कोई दीवाना
कभी हँसे तो फूल फूल फिर
रो रो सावन गीला है ।

मस्ती मैं अल्हङ
सी जवानी आते जंगल जंगल है
इश्क़ में पंछी पंछी गाये
मस्त बसंत नशीला है

सरदी में धरती को बरफ
सी हिज्र
में रूठी धूप दुल्हन
सूरज परदेशी साजन
सा तन्हा तनमन ढीला है

हल्का एक
ग़ुलाबी जाङा आशिक़
दिन माशूक़ सुबह
गंदुम बोये धान कटी जब हर ज़र्रा नखरीला है

तेज धूप में जलती जलती लूँयेँ विरहन
की साँसें
छाँव घनी चिट्ठी साजन
की अक़्श ताल चमकीला है

गीतों में
बहलाती सुबहों शाम चहक
डाली डाली
रोयी ओढ़ तारों की चादर
बहके समां पनीला है

खोज़े तन्हा पंछी साथी हंस मोर बावर बुलबुल
दूब दूब सी हसरत मचले
राहे वफ़ा पथरीला है

मिलन
बहारों गुंचा गुंचा खिले
फूल पर समर समर
बिछुङे सुधा ख़िज्र
सी आँधी तूफां रेत
हठीला है ।
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Sudha Raje

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