सुधा राजे का लेख --"" शोर और साधना के बीच.....""

कहना तो नहीं चाहते परंतु कहना पङ
रहा है ',
कि
अगर सब के सब मुसलिम बंधु सब की सब
मसज़िदों मज़ारों दरग़ाहों से
माईक लाऊडस्पीकर उतार कर
कूङी पर फेंक दें ।
तब भी
हिंदू "वर्तमान में जिस
भ्रमभक्तिशैली "
को
प्राप्त हो चुके हैं ',
शोर गुल हुल्लङ नहीं त्याग सकते
लिखवा लो और सनद रख लो ।
पहले ऋषि मुनि गुफा कंदराओं में
पहाङों बर्फ और दुर्गम
वनों रेगिस्तानों और नदियों के कठिन
मोङों
पर जाकर तप जप ध्यान पूजा आह्वान
सिद्धि और भजन करते थे ।
और फिर जब सफल हो जाते तब ।
समाज के बीच जा कर घर घर छोटे
छोटे समूह को ।
प्रवचन करते ।
आज
मंदिर
हो सांईथला हो बाबा या साध्वी का आश्रम
दरबार हो ।
पीपल बरगद के नीचे
शनिचौरा हो या शिवथला
सब पर माईक लाऊस्पीकर शोर भयंकर
"
सीडी डीवीडी लगाकर ''फुल वॉल्यूम
में चिघ्घाङते
फिल्मा गायकों की रिकॉर्डेड आवाजें

और
घरों में दिन चढ़े तक सो रहे ""हिंदू??
टॉयलेट में अखबार पढ़ रहे हिंदू??
वहीं गूँज रहे मंत्र और आरती??????
बिना सपरे खोरे ठूँस ठूँस कर जीमते
भकोसते कलेवा हिंदू????
और नाश्ते की टेबिल पर तामसिक
भोजन ''लेकिन
डैक पर चल रहे भीषण शोर में भजन
मंत्र?????
परमपूज्य पीतांबरापीठ
स्वामी ब्रह्मलीन परमगुरू के
दरशनों का सौभाग्य हमें मिला और
जब कन्या पूजन के समय वे मूँढ़े पर
ही विराजे हमारे पाँव छूकर कहते
जयमाई की '
तब "पीतांबरा पीठ "
पर "सवर्त्र मौन "
की सख्त आज्ञा थी ।
सिवा सस्वर आरती के त्रिसंध्याकाल
तब तक कोई आपस में
बोलता नहीं था ।
हजारों साधक शांत चुप लीन जप करते
किंतु बुलाना हो तो समीप जाकर
ही बुलाते थे ।
प्रतिमाओं को स्नान भी निर्धारित
समय पर पहुँचने वाले ही करा सकते थे

देर से पहुँचने पर श्रंगार
हो चुका तो बस प्रणाम करो और
जाओ.
कहते थे कि आप नहा धोकर सज धज कर
बैठे हो कोई आकर पानी फेंक दें
तो क्या प्रसन्न होगे??
देवपिता देवीमाँ भी समय पर स्नान
करते हैं ।
यदि सेवा करनी ही है
तो '''त्रिसंध्या के निर्धारित समय
""ब्राह्म मुहूर्त ""
में जागो ।
नमाज
के पाँचों औऱ यहाँ तक की सातों वक्त
मुकर्रर हैं कोई वक्त टलते ही उस
समय की नमाज़ कज़ा "।
हिंदू क्यों अपने लालच और
सुविधा आलसवश परंपरा निर्देश
ही भूलता है?
सरस्वती के साधक
को त्रयोदशी को निरामिष
रहना चाहिये ।
अष्टमी और अमावस्या अनध्याय
की तिथियाँ है ।
अग्निवास के बिना अग्निहोत्र
विनाशकारी होता है ।
और ब्राह्म मुहूर्त के समय ही देव
प्रतिमाओं का स्नान होता है ""हर
समय नहीं "
प्रथम आरती अरुणोदय के समय '
दूसरी आरती अभिजित मुहूर्त में बिंदु
छाया काल पर ।
तीसरी आरती नृसिंहवेला में।
जप ध्यान और प्रार्थना हर समय
की जा सकती है ।
किंतु ""शोर ""त्रिसंध्या के
सिवा वर्जित है ।
मुनियों के स्पष्ट निर्देश हैं
कि ""स्तोत्र सस्वर "
जप उपांशुक "
ध्यान मौन "
आरती कीर्तन
भजन अजपा साँस साँस पर ।
आहार सात्विक और केवल
अपनी कमाई का ।
वाणी का परतोषकारक वचन
जगदकल्याण सत्य।
नेत्र का शुभदर्शन ।
ये सीडी डीवीडी कहाँ से आ गये?
क्या अनर्थ है
कि जो बीजमंत्र महामंत्र
""सिद्धों ने कीलित कर दिये
कि कोई असुर न लाभ ले ले ""उत्कीन
षडंगन्यास विनियोग के बाद उपांशु
जप की ""निर्धारित संख्या दशमांश
हवन ""
वह भी सिद्ध गुरुनिर्देश में ही पूरे
करने पर ""ही ""सिद्धि होती है।
और ""लिख दिया
गोपनीयंगोपनीयंग
ोपनीयंमातृजारवतस्वयोनवत
वही
बीजमंत्र
अशुद्धपाठ
के साथ
ऑटोस्टीरियोडैकपर लाऊडस्पीकर से
वक्तबेवक्त
बजते हैं ।
जिनको सुनकर "बलआयुबढ़ता है"
तो
क्या कुकरशूकरविडाल
सब
का
आयुबल यश
नहीं बढ़ता होगा
?
शोर
और टेपरिकॉर्डेड आरती जाप
""अपराध "
है।
हरमंत्र तभी फलित है जब
गुरूदीक्षा से मिले ।
या
गुप्तजप किया जाये
आरती में भीङ
और
जप प्रार्थना एकांत में निर्देशित है।
जनेऊ जरूरी नहीं?
शिखा जरूरी नहीं?
तिलक जरूरी नहीं?
कलावा जरूरी नहीं?
लंगोट जरूरी नहीं?
शस्त्र जरूरी नहीं ?
त्रिसंध्याकालपालन जरूरी नहीं?
गुरुदीक्षा जरूरी नहीं?
चारआश्रमों का पालन जरूरी नहीं?
षोडश संस्कारों का पालन
जरूरी नहीं ।
वाह रे हिंदू
माईक लाऊडस्पीकर स्टीरियो टैप
जरूरी है?????
अरे निकम्मो!!!
ढोंगियों!!!!!
आलसियों!!!
चटोरो!!!!
ईर्ष्यालुओं!!!
सुबह ब्राह्ममुहूर्त में
उठो पूरा मुहल्ला बुलाओ
सबको डाँटकर नहलाओ औऱ हर घऱ से
लोटा लोटा जल लाकर
बस्ती का मंदिर प्रतिमाओं सहित
नहलाओ ।
बहता जल वाटिका में संचित करो ।
गौशाला बनवाओ प्याऊ बनवाओ ।
लंगर चलाओ
और अरुणोदय के समय शंख घङियाल
घंटा गरुङखंब चौमुख दीपक धूप दीप
अगरू गूगल कपूर से आरती करो ।
बच्चों को प्रसाद बाँटों ।
और सूर्योदय के बाद शांत हो कर
कामकाज करो ।
दोपहर अभिजित में आरती करो और
लंगर लगाओ भंडारा करो अनाथ भूखे
गरीबों के लिये ।
फिर शांत होकर कामकाज में लग जाओ

सायंकाल नरसिंहवेला में फिर
आरती करो ""पथ प्रकाश करो और
प्रसाद बाँटों ।
शांति से काम काज में लग जाओ ।
रात्रिशयन से पहले """ध्यान मनन
जप करो तब "सोओ ।
ये बावलो की तरह इधर उधर
क्या भटकते हो???
तेरा परमेश्वर तेरे ही षडचक्र में
विराजमान है ।
किसी "सातवें आसमान पर नहीं ""
जाग और सोच ।
नाद अंदर का सुन बाहर का बंद कर दे

फिर न कहना किसी ने
बताया नहीं ।
मंत्र एटमिक एनर्जी से अधिक
ताकतवर हैं यूँ हल्ला करता मत फिर
शांतचित्त होकर बैठ और जप मन
ही मन प्रार्थना भीतर की ओर कर ।


नमाज का बुलावा होती है अजान जो एक
मिनट को माईक पर बारहों महीने हर
रोज एक साथ पूरे भारत की हर मसजिद
से बजती है ।जो जहाँ जिस वक्त जो कुछ
कर रहा होता है सब काम छोङकर
वहीं या करीब की मसजिद में नमाज
अदा करता है ।ये ""अजान, ""एक अलार्म
है '''कि प्रार्थना का वक्त
हो गया ""जो हर मसजिद में नियुक्त
मुअज्जन लगाता है ।यंत्रों का प्रयोग
मुसलिम इबादत में वर्जित है ।माईक पर
हर दिन केवल पाँच बार अजान होती है
जो """हर हाल में पाँच ★मिनट ★में
पूरी हो जाती है ।यानि?प्रतिदिन कुल
मिलाकर केवल "★पच्चीस मिनट
को माईक का प्रयोग किया जाता है एक
साथ एक ही वक्त पर *★हम नहीं कहते
कि यह सही है ।क्योंकि शोर
तो धरती के खिलाफ अपराध है ।किंतु यह
अलार्म है ।अब?देखें तौले और महसूस करें
लगभग हर हिंदू मंदिर पर सुबह सुबह
ही दो घंटे आरती की कैसेट लगाकर "भोंपू
"बजाया जाता है "जबकि यह
शास्त्रवर्जित है ।क्योंकि आरती संपूर्ण
पूजा का अंतिम अंग है ।
जो सबकी उपस्थिति में मुख स्वर से
घंटा गरूङखंभ शंख मंजीरों के साथ
होनी चहिये और ""पंच आरती भी केवल
पच्चीस मिनट प्रतिदिन एक बेला में
लेती हैं ""गाकर देख लें "ये भोंपू जब
बजना शुरू कर दिये जाते हैं जबकि मंदिर
का पुजारी भी नित्यक्रिया से निवृत्त
नहीं होता । जँभाई लेते उठे और डैक
लगा दिया ।तब जब कोई हैंगओवर
को ठीक कर रहा होता है कोई टॉयलेट
तो को खर्राटों में तो कोई अन्य
क्रियाकलाप में रत होता है ।पढ़ने वाले
बच्चे व्याकुल होकर झल्लाते है उफ उफ उफ
'''''''न तो कोई आरती का भोपूँ गायन
सुनकर सब काम छोङकर जो जहाँ जैसा है
प्रार्थना करने बैठ जाता है न ही कोई
"""मंदिर की तरफ दौङ लगा देता है!!!!!
फिर ये आरती वहाँ ""असल में
हो भी तो नहीं रही होती है!!!!!!!एक एक
मंदिर कई कई घंटे शोर मचाता है,,न समय
निर्धारित है न ""गीत आरती भजन मंत्र
निश्चित ""???तो किसलिये??अजान
लाऊड स्पीकर से क्यों इससिये???
तो चलो पच्चीस मिनट आप भी हर दिन
शोर करो मगर शर्त है कि हर शोर पर
"""लोग पूजा करना प्रारंभ करें????
करेंगे??हर पढ़ने वाले ।बीमार लेखक और
ध्यानी योगी तापस जापक साधक
को बता दो कि अमुक बजे से अमुक बजे तक
हम मंदिर वाले लोग रोज शोर का भोपूँ
बजायेगे!!!!!!तब तक सब """प्रतीक्षा करके
दूसरे कार्य करलो या जाकर पूजा में
ही शामिल हो लो?? होगा?? निश्चित
वक्त?अगर नहीं तो लगातार शोर
खगोलीय संरचना के प्रति अपराध है ।
अपराध है उन सब मौन
ध्यानियों जापकों के
पाठको विद्यार्थियों के
प्रति जो एकांत शांति खोजते हैं ।
ईर्ष्या में शोर करना तो कतई धर्म
का हिस्सा नहीं???रहा रमज़ान
तो ""हर साल के केवल उन्नीस दिन!!!!!!!
वह भी जगाने का अलार्म है हालांकि यह
भी गलत है ।फिर भी रात को तीन से
पाँच के बीच बीस पच्चीस पुकारें औऱ
क्या!!!!!नवरात्रियाँ भागवत अखंड
रामायण जागरण कीर्तन
झाँकी रामलीला रविदास लीलाकांवङ
यात्रा पर शोर?कुंभ का शोर
दीवाली का शोर होली का शोर दशहरे
का शोर गणपति पूजा का शोर
रथयात्रा का शोर गनगौर गरबा और हर
रोज का शोर कौन करता है ।भूल
गये??????? पूरे साल कहीं न कहीं तीखे
शोर कौन करता है?

पहल कीजिये पहले हम शोर बंद करेंगे.और
"तब दूसरों को विवश करेंगे " रही बात
हिंदुस्तान की तो ""जैसे अमेरिका हर
काले गोरे लाल का है अगर नागरिक है
''तो भारत भी सबका है जो भारत
का वैध नागरिक है "

हिंदू को तो ""हुल्लङ का बहाना चाहिये
"बेटी बेटी की शादी हो जन्मदिन
छठी दशटोन पलना आगहन्ना नामकरण
""वहाँ भी धमाधम हुल्लङ!!!!!! न्यूयीयर
त्यौहार
क्रिस्तानों का """वाबला होता शोर
मचाता फिरेगा हिंदू नचनिया बनकर
होटल कॉलेज घर क्लब दफ्तर ""!!!!ये हिंदू
क्यों अपने पूजा पाठ देव जप तप व्रत
छोङकर इधर उधर
बगरता सरकता भागता है!!!!
इतना ही "आस्थावान है तो जमकर बैठ
एक अडिग सनातन धर्म पर और वैदिक
रीतियों से यजन भजन ध्यान मनन कर
फिर देख कि क्या अंतर है आडंबर और
आराधना में!!

चूँकि हम हिंदू हैं क्या सिर्फ इसलिये
""हर पाखंड ""को भी समर्थन कर दें??
तब तो बुद्ध कबीर महावीर नानक
मीरा रैदास मलूक सब ""अपराधी ही हैं
"हमारी ही तरह ''

अच्छा कोई कहे तो ""कि इस
हुल्लङबाजी हुङदंग भोंपूगीरी में
"""""टाईमपास मनोरंजन और
दिखावा अधिक है
या "कि कभी परमपिता से कनेक्शन
भी जुङना अनुभूत होता है???? शास्त्र
ही कहते है सृष्टि "नाद बिंदु संयोग "से
बनी है जो महादि का महाचिद्विलास है
""और यह अनहद अनंत हृदय के भीतर
ही गूँज रहा है धक धक धक धक के पीछे
कहीं सुषुम्ना से सहस्त्रार के मध्य!!!!! तब
ये शोर कैसे जुङने देगा?? हुल्लङ के बीच
पिता की पुकार पहचानना असंभव
नहीं तो बेहद कठिन जरूर है
·
©®सुधा राजे

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Sudha Raje
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Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
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Comments

  1. ये ""द्वेष ""और
    ईर्ष्या की होङा होङी बंद
    होनी चाहियॆ।
    बचपन की सखियों के रोजे होते तब हम
    लोग "पानी पीने क्लास से बाहर जाकर
    पीते और स्कूल जाते समय "वाहन के
    म्यूजिक बंद कर देते जब इफ्तार का वक्त
    होता तब चॉकलेट दे देते ""आज
    क्यों नहीं संभव है परस्पर ये खयाल?

    दोस्ती पर "राजनीति "अगर हावी न
    हो तो ""काफी सत्यानाश बच सकता है

    सबकुछ ""ऊर्जा शक्ति और बल ""केवल
    अनुशासन से बँधे हैं । एटम की तरह
    अपनी शक्ति और संपत्ति को संरक्षित
    रखना चाहिये ।पाखंड और
    परायी विभूति की तरफ भटकन से
    बचना है
    तो अपनी आत्मा को जोङो ""ईश्वरीय
    यंत्र तो यही देह है दूसरे यंत्र
    तो मानवीय है
    अब तो सतसंग भजन कीर्तन जागरण
    गरबा और झाँकी शोभा यात्रा सब
    को बहरे ही कर रहे हैं एक साथ
    करोङों लाऊडस्पीकर????

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