चीटरनामा2

टीचर?
अगर अपना कर्त्तव्य जिसके लिये उनको इतना मान मिला है "पूरी तरह निभा रहे
होते तो!!!
आज हिंदुस्तान का ये हश्र न हो गया होता ।
कि पब्लिक स्कूलों के भयानक धनदोहन के चंगुल में कराहते गरीब मध्यवर्ग
"सरकारी स्कूल में बच्चे नहीं भेजना चाहते ।
क्योंकि सरकारी स्कूल में "ऊँची डिगरी ऊँची तनखा वाले लोग तो हैं "
मगर कम डिगरी कम तनखा वाले "प्रायवेट स्कूल के टीचर जैसा अनुशासन साफ
सफाई और पढ़ाई नहीं "
बात तो तब है कि जब सरकारी स्कूल के बच्चों की सफलता का प्रतिशत पब्लिक
स्कूल से अधिक हो ।
पाँच सौ से तीन चार हजार रुपये कमाने वाली पब्लिक स्कूलों की टीचर जिस
समर्पण से बच्चे पढ़ाती है ।
सरकारी मास्टर मास्टरनी उसका आधा भी ध्यान नहीं देते जबकि उनका वेतन लगभग
दस गुना होता है

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Sudha Raje
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Fatehnagar
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