सुधा राजे की कविता - तुम मुझे नहीं मार सकते थे।

तुम मुझे मार नहीं सकते थे ',
इसलिये जीने नहीं दिया, '
मैं जीना चाहती थी इसलिये
मरती गयी
मुझे तुम्हें
छोङना नहीं आया अपना नहीं सकती थी इसलिये
अपने आप को छोङ दिया,
तुमने मुझसे प्रेम नहीं न
समझौता किया किया था ',इसलिये
मैं तुम्हारी जरूरत बन कर रह
नहीं पायी ,
मैंने तुम्हें सिर्फ तुम्हें टूटकर
चाहा था इसलिये तुम्हें मुक्त करके
एकाकी हो गयी, '
हम साथ छोङकर नहीं रह सकते थे
इसलिये अलग अलग चलते रहे,
हम साथ कभी थे ही नहीं इसीलिये
एक ही यान में सवार होने पर हमें
कोई उज्र न था ।
तुम मुझे कभी समझे नहीं इसीलिये मैं
बोलना भूल गयी ।
मैं केवल तुम्हें ही समझने में सब कुछ छोङ
चुकी थी इसलिये तुम मुझे ही भूल गये ।
हम एक दूसरे को याद
रखना ही नहीं चाहते थे इसलिये
सारी दुनियाँ पर बतियाते रहे
सिवा खुद के ।
हम खुद को भूल ही नहीं पाये इसलिये
बीच में मौन की वार्तायें
जारी रहीं ।तुम संसार में व्यस्त थे
और मैं आत्मालाप
करती रही क्योंकि मुझे संसार
नहीं चाहिये था और तुम्हें मुझ से
सबकुछ चाहिये था ।
मैं तुम्हारे लिये संशोधित
होती रही और खत्म हो गयी ।
तुम मेरे कटे हुये टुकङे खुद पर जोङकर
बढ़ते गये और मेरी पहुँच से बङे हो गये
©®सुधा राज

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Sudha Raje
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