सुधा राजे का एक विचार- "मजहब नहीं सिखाता "

हमें दूसरे धर्म के दूसरी जातियों के लोगों से बात करना और मित्रता करना
जरूरी लगता है ।
क्योंकि, हमारी सोच है (जो जैसी भी है)
कि आपको कोई ऐसा "देश नगर गाँव समाज प्रांत स्कूल अस्पताल रेलगाङी
हवाईजहाज ''नहीं मिलने वाला है,
जहाँ केवल "आपके ही धर्म और आपकी ही जाति के लोग रहते हों ।
जब रहना ही है तो क्यों न अंतःसमझ
बढ़ायी जाये ।
आप हिब्रू अरबी अंग्रेजी और द्रविङ नहीं पढ़ सकते न सही ।
वे संस्कृत ब्राह्मी पाली मराठी गुजराती राजस्थानी नहीं पढ़ सकते न सही, '

परंतु आप पढ़ सुन समझ सकते हैं ।
पेङ लगाना है
पानी बचाना है
कृषि भूमि संरक्षित करनी है
जल स्रोत स्वच्छ रखने है
नगर को कूङा कचरे शोर और अपराध से मुक्त रखना है ।

साक्षरता बढ़ानी है
कानून और व्यवस्था का पालन अनुशासन बढ़ाना है ।
प्रदूषण खत्म करना है ।
नशा तंबाकू शराब ड्रग्स सिगरेट गुटखा बीङी चिलम पर रोक लगानी है ।
लङकियों से छेङछाङ रोकनी है ।
सङके बनवानी है पुल बनवाने हैं बसें रेलगाङियाँ साफ रखनी है ।
भूकंप बाढ़ आग भूस्खलन बिजली ओला आँधी संकट के समय परस्पर सहयोग करना है ।
स्कूल बनाने है
अनाथालय से बच्चे गोद लेने दिलाने है ।
अनाथ बेसहारा स्त्रियों बच्चों बूढ़ों की मदद के लिये संस्थायें खोलनी है ।
भीख माँगने की परंपरा खत्म करनी है """"

कितने सारे मामले है जिनपर ""जाति मजहब "
को
बीच में लाये बिना
हम एकजुटता से कार्य कर सकते है!!!
©®सुधा राजे

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Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
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