जाति लिंग विवाह और मजहब की राजनीति

Sudha Raje
नाम के पीछे सरनेम लगाना अब तक
जाति वाद का द्योतक है ।और सरकार
इसको बढ़ावा दे रही है ।
जब सरकारी कॉलम में भरना अनिवार्य है
तब तक ये सब बेकार है ।वहाँ धर्म
जाति लिंग मातृभाषा और आरक्षित
कोटा अनुसूचित जाति जनजाति समान्य
सब पूछा जाता है ।।
नाम से सरनेम नहीं लिखने वाले अक्सर
आरक्षित श्रेणी के लोग हैं
क्योंकि आरक्षण में तो आगे बढ़कर निम्न से
निम्न श्रेणी लेने को रिश्वत तक देनी पङे
तो न हिचकें परंतु समाज में जाति सवर्ण
ही बताते है जहाँ कोई जानता न हो।
और कई बार तो बात शादी ब्याह तक आ
गयी और फिर गयी । तो जाहिर
सी बात है अब सब नाम के आगे सिंह और
शर्मा वर्मा लगाकर छुपाते हैं ।।।ये
कोई उपाय नहीं आरक्षण खत्म
हो जातिवादी और मजहबवादी भी
और जो लखपति करोङपति है ।।
कोठी बंगला गाङी मिल फैक्ट्री है फिर
भी आरक्षण का लाभ ले रहे है??
मंत्री विधायक आई ए एस है फिर
भी आरक्षण का लाभ ले रहे है । घर के दस
दस लोग ए वर्ग की सरकारी नौकरी पर
है फिर भी आरक्षण???यहाँ एक आई ए एस
है इनकी पत्नी मंत्री रही और अब
भी आरक्षित सीट पर ???हर पाँच साल
बाद दल बदल फिर आरक्षण???ये
लखपति उन फूस के
छप्परों की जिंदगी चाट रहे हैं इनसे
कहेकि सवर्णों की परंपरा की तरह हर
त्यौहार पर गरीब सवर्णों को दान दें ।
कपङे पैसा अनाज जमीनें और विवाह के
खरचे दें ।क्या ये देते हैं???तो सवर्ण
तो सेवा लेकर अनाज कपङे जमीन और
भोजन देते थे ।तब जो हालात रहे वह
किसी एक ने नहीं बनाये थे परंतु आज
जो प्रतिशोधात्मक भेदभाव निरदोष
बच्चों से लिया जा रहा है वह
मिटाना संभव है ।और याद रहे कि ये
भेदभाव मिटाना सवर्णों ने शुरू
किया था जो मानवतावादी थे ।
जाति सरकारी कागज जब पूछता है
तो गलत विभेद करता है ।वह सिर्फ
आऱ्थिक हालत और दिमागी शारीरिक
योग्यता पूछे ।याद रहे हम मजहब के पूछने
को भी रोकने को कहते है ।इसका लाभ
केवल दंगा बढ़ाने और वोट ध्रुवीकरण हेतु
होता है ।जब किसी दल
को पता ही नही होगा कि किस इलाके
में किस किस जाति के मजहब के कितने
वोटर रहते है तब ।वह केवल विकास पर
बोलेगा मुद्दा गरीबी होगी दवाई
पढ़ाई सफाई और शिक्षा प्रतिभा होगी
जाति क्या है ये मुद्दा नहीं है ।।।
जाति की राजनीति कैसे बंद
हो ताकि लोग ना बँटे ये मुद्दा है ।।।।
जाति मिटाना संभव नहीं ।किंतु नफरत
मिटाना संभव है ।।।जब दल के
राजनेता जाति की बजाय आर्थिक हालत
पर बात करें ।।दवाई पढ़ाई सफाई
सुरक्षा
जातिवाद कितना बुरा था है और
होगा ये सवाल ही नही उठाया किस
जाति ने क्या किया ये सवाल तो अब तक
सिर्फ राजनीति उठाती है और झूठे
संविधानवादी ।।
प्रायवेट अस्पतालों कॉलेजो स्कूलों में अब
सवर्ण लङके लङकियाँ सबसे बुरा से
बुरा समझा जाने वाला काम कर रहे है
दैह बेच रहे । कचरा बीन रहे ।लेकिन
यही सब उनको सरकारी नौकरी पर
हासिल नहींअब कौन सा काम
बचा जो कोई जाति विशेष को ही रह
गया??सिवा राजपूत और सिख
गोरखा बटालियन के ।वहाँ दलित
बटालियन बनाकर हरावल दस्ते पर भेजें
न??
आप अभी बहुत निचले वर्ग
को गरीबी नहीं जाति से देखते हैं तो ये
अन्याय है
ये सिर्फ कुतर्क है कि अब अगले सौ साल
तक जूठन खाओ और मल उठाओ ।।।क्यों??
तो वे जौहर करे??? ग्रंथ रचें वन वन भटकें
।।लहू नहायें???? यानि प्रतिशोध
लिया जा रहा है??? तब
तो बङी गलती की धोखा हुआ रजवाङों से
और नवाबों से ।।।वे जानते कि बदले
की भावना से सरकार कानून बनायेगी??
तो देश पाच सौ होते एक नहीं ।।ये सब
सभ्यता के सोपान हैं।।जो जिस लायक
था खुशी खुशी करता था ।।
जाति को पहले कागज पर तो खत्म करें।।
जब लोकतंत्र में सब समान हैं तब धर्म
जाति निरपेक्ष देश में ये सब
दलों की चालाकी ताकि लोग बँटे और वे
राज करें बहाना क्या रहेगा कुछ दलों के
पास जाति का कॉलम कागज से हटाते
ही???
गांधी ने अस्पृश्यता मिटादी और
बिनोबा ने जागीरे दान
करा ली विना लङे??
आज नेता भेद कराते
तब तो आज का कोई
भी नेता जो जाति मजहब पर विशेष
सुविधा देने की घोषणा करता है वह
संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है
जहाँ सिर्फ कमजोर
नागरिकों को संरक्षण की बात है
स्त्री बच्चे कमजोर और विकलांग ।।।।
कहीं भी जाति मजहब तो नहीं??
कानून बनाना चाहता कौन है??? कोई
भी दल??? गिनाईये जरा कौन चाहता है
कि जातिगत और मजहब गत आरक्शण खत्म
हो??? बसपा?? सपा?? भाजपा??
लोकदल?? राजग??? कॉग्रेस??? जद???
तृणमूल??? यहाँ तक कि कम्युनिस्ट
भी कहीं गहरे एंटी पैथिक है ।।राष्ट्वाद
और बहुसंख्यक विरोध पर नास्तिकता के
नाम पर सिर्फ कुछ हद तक सही
अब वोट पङता है मजहब जाति पर बस्स
बाकी दारू और नोट पर
वक्त लगेगा ।।लेकिन पहले खत्म
तो हो कागज पर से भेदभाव ।।समाज
धीरे धीरे भूल जायेगा लोग अब वेटर
की जाति नहीं पूछते न कुक की
महिलाओं के साथ सैकङों बार
अभियान चलाये है । किंतु सब बिखर
जाता है जब तिमंजिले वाला आरक्षण
पाता है और गरीब के बच्चे की माँ फीस
भरने को बकरी बेचती है
एक सवर्ण मजदूर को सौ रुपये रोज मिलते
है और सात का परिवार ।।एक सफाई
करमचारी पति पत्नी का वेतन तीस
हजार प्लस सब कुछ फ्री
ये एक दो आदमी कहें तो नहीं बदलेगा!!!!
और ये कहना कि इस मजदूर के
पिता की जाति का व्यक्ति पंडित
था तो पंडितो का बदला एक मजदूर से
दो हजार साल बाद कौन ले रहा है
सरकार या राजनीति?? तो कैसे कोई भूले
जब बार बार नमक छिङकना जखम
नोचना दोनो तरफ
ही राजनीति का जारी है??
और जो आरक्षण का लाभ लेकर किसी के
पुरखों
के का नाम कलंक रखे
तो गुस्सा भी बढ़ेगा ।।यही नफऱत वोट
ध्रुवीकृत करती है।
तब ये कौन
करवा रहा है झगङा????
राजनीति ही न??? क्यों?? ताकि सब बँटे
और झगङे ताकि वह लालच दे और वोट
बटोरे लोग मिल न सकें न भेद भूल सकें
वही चरचा छेङी ही थी ।।।जाति कब
की अब केवल विवाह तक सीमित रह
गयी लोग बस से स्कूल तक साथ बैठते खाते
पीते है और कोई छूआछूत नहीं बची ।।
अब तो अतरजातीय विवाह भी खूब
हो रहे है ।।किंतु यह
राजनीति किसी प्रतिभाशाली विद्यार्
की मौत बनकर जब आरक्षण फैलाती है तब
लोग जाति कैसे न याद रखे ।।ये बंद हो
जब तक राजनीति सरकारी तौर पर हर
जगह जातिगत मजहबगत घोषणा करने पर
कॉलम रखना बंद नहीं कर देती ।।।आप
केवल ब्राह्मण होने से अपने जिले
का चुनाव चालीस साल तक भी नहीं लङ
सकते क्योंकि सीट आरक्षित है???? आप
एलएल बी बहू है परंतु आपके राज्य में
पिछले पंद्रह साल से सिविल जज
परीक्षा नहीं भरती ली गयी??? और हर
भरती केवल विशेष भरती निकली????
रोजगार तो चाहिये न??? सबके
पिता राजा नहीं कि खजाना गाढ़ के रख
गये और पूँजी धरी है कि फटाफट दुकान
खोल लें??? और जॉब अब तक यू पी में
सामान्य के लिये निकली ही नहीं??
जाति बाकी है ।।।जब तक
कि जाति को राजनेता बहाना बनाये
है।।क्यों क्या बुराई है आर्थिक आधार
पर सुविधा देने में??? मजहब और
जाति का आरक्षण हटे तब भी हर गरीब
को लाभ मिलेगा न
सरकार क्यों बनाते है??? क्या लोग
मनचाही दुकान लूटे तो सजा नहीं??
या अपराध पर सजा नही?? तो सरकार
बनायी ही इसलिये जाती है कि जो आम
औसत आदमी नहीं सोच पाता उसे सरकार
लागू करे ।।वरना सब बलवान के गुलाम
ही रहें फिर तो
सोच बदलती है ।।आज बेटी को लोग
पढ़ाने लगे है और विवाह कोर्ट मैरिज
भी हो रहे है बेटी वारिस
हो तो पिता का माता का दाह संस्कार
भी कर रही है
दिमाग बदलने की ताकत जिनमें होती है
वही गांधी होता है वरना परछाई से
डरता बनिये का बेटा हरिजन कह कर
दलितों के शौच साफ नहीं करता
तब तो आज का कोई
भी नेता जो जाति मजहब पर विशेष
सुविधा देने की घोषणा करता है वह
संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है
जहाँ सिर्फ कमजोर
नागरिकों को संरक्षण की बात है
स्त्री बच्चे कमजोर और विकलांग ।।।।
कहीं भी जाति मजहब तो नहीं??
सरकार
नहीं मानती तो धङल्ले से पिता माता के
जन्मभूमि के नाम सहित लिखे जाते और
गर्व या हीनता नफरत
होगी तू याचक ।
हम
सरकारी पलित पोषित पल्लवित
जाति और मज़हब नहीं ।
।और गरियाते
उनको रहेंगे।
कि जब तक सरकारी कटोरा लिये
फिरते हो हमारे नाम उपनाम सरनेम
ना लगाओ बल्कि जरा सा झुक के बात
करो
ठाट से सिंह लिखने से पहले कहो
क्यो
?क्योंकि झूठे लोग सिंह बनते है और
होते नहीं ये सिंह लगाया नहीं सिंह के
साथ लङकर हमारे पूर्वजों ने
पाया था पद्मश्री की तरह और
सँभाला देश प्राण देकर।।
"
भीषण अनीति है जाति वाचक आरक्षण
भेद मिटाता नहीं याद दिलाता
सन बारह सौ से मुगल फिर सोलह सौ से
अंगरेज।।।।तब दलन किसका हुआ सबसे
ज्यादा कौन
मारा गया जलाया फाँसी चढ़ाया और
लूटा सताया गया??जिंदा जलने वाले
या कपङे सिलने वाले? तब असली दलित
कौन है?शौच उठाने वाले सिर कटाने
वाले?
लेकिन यहाँ वह सवाल ही नही
सवाल है सरकार जब तक पूछती है ।।
श्रीमती ।।कुमारी।।सुश्री।।वेबा ।।।
तब तक लिखना पङता है ।।।लेकिन ये
पुरुष से क्यों नहीं पूछती???? और
जाति ।।धर्म।।।लिंग।। सरनेम ।।।
और।।।उपजाति।।।आरक्षण
की श्रेणी??? सामान्य अनु सूचित ।।
जनजाति।।पिछङा।।क्यों पूछती है?????
तब तो याद रखना पङेगा जी हर हाल में
याद रखना पङेगा???
वही चरचा छेङी ही थी ।।।जाति कब
की अब केवल विवाह तक सीमित रह
गयी लोग बस से स्कूल तक साथ बैठते खाते
पीते है और कोई छूआछूत नहीं बची ।।
अब तो अतरजातीय विवाह भी खूब
हो रहे है ।।किंतु यह
राजनीति किसी प्रतिभाशाली विद्यार्
की मौत बनकर जब आरक्षण फैलाती है तब
लोग जाति कैसे न याद रखे ।।ये बंद हो
जब तक राजनीति सरकारी तौर पर हर
जगह जातिगत मजहबगत घोषणा करने पर
कॉलम रखना बंद नहीं कर देती ।।।आप
केवल ब्राह्मण होने से अपने जिले
का चुनाव चालीस साल तक भी नहीं लङ
सकते क्योंकि सीट आरक्षित है???? आप
एलएल बी बहू है परंतु आपके राज्य में
पिछले पंद्रह साल से सिविल जज
परीक्षा नहीं भरती ली गयी??? और हर
भरती केवल विशेष भरती निकली????
जाति बाकी है ।।।जब तक
कि जाति को राजनेता बहाना बनाये
है।।क्यों क्या बुराई है आर्थिक आधार
पर सुविधा देने में??? मजहब और
जाति का आरक्षण हटे तब भी हर गरीब
को लाभ मिलेगा न
,
सरकार क्यों बनाते है??? क्या लोग
मनचाही दुकान लूटे तो सजा नहीं??
या अपराध पर सजा नही?? तो सरकार
बनायी ही इसलिये जाती है कि जो आम
औसत आदमी नहीं सोच पाता उसे सरकार
लागू करे ।।वरना सब बलवान के गुलाम
ही रहें फिर तो
Sep 25
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