सुधा राजे की एक गज़ल।

न मैं जा सकूँ न बुला सकूँ तेरी याद में भी न
आ सकूँ । तुझे याद रखना भी दर्द दे
तेरा नाम भी न भुला सकूँ ।
तुझे देख लूँ न वो ताब है तुझे सुन सकूँ ये
भी ख़्वाब है। तू वो माहो आफ़ताब सा
मेरा हक़ नहीं के मैं ला सकूँ
जैसे बादलों में नहा रहा । जैसे चाँदनी में
समा रहा । ये हवा भी तेरा ही गीत है।
कोई ख़त नहीं कि जला सकूँ ।
जिस रोज़ से तुझे खो दिया। मेरे ग़म ने
मुझको डुबो दिया । मिला आके ऐसे तू
मोङ पे ।
न मैं रो सकूँ न रुला सकूँ ।
जैसे आखिरी सी ये आरज़ू । तेरे शाने मिलके
मैं रो सकूँ । तेरी ज़ानुओ पे न मर सकूँ। तुझे
बाँहों में न झुला सकूँ।
है ये इल्तिज़ा कि तू लौट
जा मेरा इम्तिहां कि मैं हूँ "सुधा "। न मैं
पी सकूँ न दिला सकूँ। ज़ां ये ख़ुम
नहीं कि पिला सकूँ।
©®सुधा राजे
Sudha Raje
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Fatehnagar
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यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
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