Tuesday 4 February 2014

कहानी :सुधा राजे

"सतभाँवरी "
अम्माँ आपने फिर वही परांठा रख
दिया!!!!
रोज रोज परांठे!!!!
बाओजी!! लाईये पाँच रुपये दीजिये मैं
स्कूल में ही खा लूँगी ।""
अरे मेरा प्यारा बच्चा!! स्कूल में
क्या क्या मिलता है
भला हमारी "मिष्ठी" को ।
आलू की टिक्की, पिज्जा,बर्गर,समोसे,क­
चौरी,डोसा,चाऊमीन,और केक और और और
हाँ पाव भाजी पानी की टिक्की और
भजिया और ब्रैडबडा।
तो ठीक है आज आप अपनी पसंद का लंच ले
लेना लेकिन कल से घर
की ही बनी चिज्जी ले जाना ओ के!!
मेरे अच्छे बाऊजी!बाय टाटा ।
मैं मिष्टी
बाऊजी कहते हैं मेरी आवाज़ बहुत मीठी है
इसलिये मिष्ठी हूँ। अम्माँ कहतीं हैं मैं
मीठा ज्यादा खाती हूँ इसलिये
मिष्ठी हूँ।
मैं बस जाने
ही वाली थी कि बाऊजी को अम्माँ ने
फिर टोक दिया ।
""क्यों इसे बिगाङ रहे
हो परायी अमानत है आदत खराब
हो गयी तो कौन झेलेगा ।एक
लङकी हो जाने की वज़ह से ही तो आज तक
सब झेल रही हूँ । ""
बाओजी गुर्राये ---"तुझे हम नहीं झेल रहे
हैं क्या? वो मेरी बेटी है तुम्हारी तरह
किसी भूदानी की नहीं "
अम्माँ फिर छलछलाती आँखें लिये
चलीं गयीं। पता नहीं क्यों मुझे
अम्माँ का यूँ हर बात चुप होकर आँखें भर
लेना अच्छा नहीं लगता ।अब मैं
माँ का पक्ष लेती हूँ तो भैया की तरह
बाऊजी मुझसे भी नाराज रहेंगे और
खर्चा पानी बंद।
ये क्या कि जरा कुछ कहा बाओजी ने बस
भर रो पङीं।
बाओजी तो अक़्सर कह देने है
-"रानी जी के जब देखो तब नैना मुतासे"
छिः छिः ऐसे नहीं कहते ।
मिष्टी!!
क्यों रौनक?
""ये तो गाली है । तुम्हारे बाओजी ऐसे
क्यों डाँटते रहते है अम्माँ को?
हाँ! रौनक रोज का कांड है।
और अम्माँ रो पङतीं हैं? मिष्टी?
नहीं रौनक!!
वो रोती नहीं बस चुपचाप आँसू पोंछ कर
कहीं काम में लग जाती हैं ।
पागल है तू मिष्ठी!! तेरी माँ तेरे कितने
काम करती है और तुझे परवाह ही नहीं?
हाँ तो अम्माँ तो सबकी ही काम
करती हैं रौनक!! मेरी अम्माँ कुछ
ज्यादा करती है बस सिंपल!
मिष्ठी!! कैसी बेटी है तू?
सबकी अम्माँ रोती नहीं रहती चुप चुप।
तू आठवीं में आ गयीं और ये जानने
की कभी कोशिश तक
नहीं की कि अम्माँ रोती क्यों रहती हैं!!!!
रौनक की बातें दिमाग में ठक ठक
करतीं हैं । नवीं में पढ़ती है पर जैसे
सsssssssssब्ब्ब जानती है । कोई
भी सवाल पूछो ज़वाब हाज़िर ।
कई साल बीत गये अम्माँ कुछ
नहीं बतातीं । अब पहले
जितना नहीं रोतीं मगर जहाँ पहले रोज
रोती थी बाओजी रोज डाँटते थे अब
महीनों में एकाध बार जमकर
झगङा होता है दोनों में । अम्माँ ज़वाब
देने लगीं हैं शार्दूल भैया बङे हो गये हैं
बाओजी अब अम्माँ न पीट सकते हैं न
ही गालियाँ दे सकते हैं ।
पिछली दीवाली पर
अम्माँ को गाली देकर पीटने लगे
तो भैया ने हाथ पकङ लिये थे ।
बाओजी बङी देर तक छूटने को छटपटाते
रहे लेकिन भैया की गिरफ़्त में हिल
भी नहीं पाये जी भरके । फिर
क्या था लगे भैया को ही गाली बकने
कोसने । तब तमतमा कर अम्माँ ने भैया से
कहा छोङ दे शालू!!! खा लेने दो इन्हें
मुझको । इनके हाथों मरूँगी तो पाप कटेंगे
मुक्त हो जाऊँगी।
शार्दूस भैया ने दाँत पीस कर कह
दिया था ।
---"""ये लीजिये बेंत जितना चाहे मेरे
ऊपर गुस्सा निकाल लीजिये । मैं उफ
नहीं करूँगा । लेकिन अम्माँ पर एक
उंगली भी मारने के लिये या एक शब्द
भी गाली के लिये मैं बर्दाश्त
नहीं करूँगा । आप उनके पति हैं तो मैं
उनका बेटा हूँ।""
भैया के कंधे तक ही तो हैं बाओजी । हाथ
में बेंत लिये बाओजी के सामने भेंट
की मुद्रा में खङे भैया की लाल आँखें
छलछलाते आँसू काँपता बदन और
तपता सुर्ख चेहरा ।
बाओजी ने एक बार शार्दूल भैया को गौर
से देखा और चुपचाप बिना कुछ कहे
नीची निगाह थकी गरदन लिये
अपनी बैठक में चले गये ।
मैंने रौनक
को बताया तो लगी तालियाँ बजाने ""-
ग्रेट वाओ वंडरफुल"
तुम्हारे भैया को दिल से सेल्यूट ।
रौनक अब बी एड कर रही है और मैं
बी एस सी फायनल।
अब भी हम लंच साथ करते हैं और बहुत
सारी बातें भी
रौनक!!
एक बात पूँछू?
दो पूछो मेरी मिठाई!!
अगर बाओजी नहीं कमायेंगे तो माँ भैया मैं
और सुब्रत क्या खायेंगे?
ये कपङे फीस किताबें साईकिल सब
बाओजी ही तो लाते हैं । अम्माँ तो बस
पका देती हैं वह भी रोज
वही दलिया दाल पूरी परांठे
पोहा राजमा!!
मिठैया!!
तू सठैया हो गयी क्या!!
माँ का पक्ष तू केवल अच्छे कपङे पैसे चाट
चटोरी और सुख सुविधाओं के बंद हो जाने
के डर से नहीं लेती??
लानत्त है ।इससे तो तुम्हारे
भैया को सैकङों शाबाशी जो हमेशा से
माँ की सेवा भी करते हैं और
माँ को उनकी ही वजह से अब तेरे
बाउजी न मारपीट पाते हैं न गाली दे
पाते हैं ।तेरी माँ में जो हिम्मत आयी है
ज़वाब देने की वो तेरे भैया के सहारे से ।
बेटा हो तो ऐसा हो । तू बेटी न
होती तो तेरी अम्माँ कब की बेटे के
सहारे हर यातना से आज़ाद
हो गयीं होती ""
मैं? मैं उनकी मजबूरी हूँ? रौनक??
हाँ मिष्ठी!!
एक बेटी पैदा करने वाली माँ को अगर
सही जीवन साथी नहीं मिलता तो हर
तरह से यातना हो जाती है
उसकी जिंदगी।
रौनक़ की बातें मेरे दिल दिमाग़ पर
हथौङे सी बज रहीं थीं ।
शाम को बाओजी की थाली लेकर बैठक में
गयी तो बारूद से भरे बैठे थे ।
देखा मिष्ठी!!
वो कल का छोकरा पढ़ाई छोङकर कार
शो रूम पर काम करने लगा है ।
पहली कमाई दिखाकर माँ के हाथ पर
रखी । इतनी तो महीने भर की सिगरेट
पान तंबाकू शराब और जूते की पॉलिश में
फूँक देता हूँ मैं ।
ये दो कौङी की औरत!!!
मुझे आईना दिखाने चली है!!!
मुझे???? राय साहब दिव्येनंद्रनाथ को!!!
बाओजी!!!
वो अम्माँ है हमारी । आप क्यों हर बात
को इतना तूल देते हैं? जाने दीजिये ।
आखिर आपकी पत्नी है । विवाह किया है
आपने उनसे ।
ये औरत!!!
ये तो एक रांङ थी । बाल विधवा ।गौने
के पहले ही तालाब में डूब
गया था इसका पहला पति
।और वो इसका भूदानी भाई
कांग्रेसी नेता भूदानी बनकर सब जाग़ीरें
दान करता चला गया और बाप
क्रांतिकारी बनकर जेल पर जेल
काटता मारा गया ।
बची विधवा माँ और कुछ कुटुंबी सो हर
रोज जंगल जंगल भटकते रहे । भूखे प्यासे
बेहाल । सिरफिरे आजादी के दीवाने ।
अंग्रेजी और गुलाम यहीं छोङ गये ।
इसका वो समाजसुधारक भाई
इसकी शादी किसी ग़ैर जाति के बेवकूफ़
समाजसुधारक ब्राह्मण से करवाये दे
रहा था। तब
अपनी जाति की बेचारी क़िस्मत
की मारी अबला को सहारा देने की इसके
काका ताऊ की ग़ुहार पर मैंने इसका हाथ
पकङ लिया था। वरना इसको किसी गैर
जाति के घर की काक बिङारनी बनाके
डाल देता इसका भूदानी भाई। कुछ
भी नहीं बचाया स्साले कंगले कबाङी ने ।
सन्न
सन्न
सन्न
करके एक के बाद एक जैसे विष बुझे बाण
हों ।
तो बाऊजी मुझे ये सब क्यों बता रहे हैं?
क्या सिर्फ इसलिये कि माँ पर बाऊजी ने
अहसान किया?? महान् हैं बाऊजी तो एक
बाल विधवा का हाथ थाम लिया??
या ये बङप्पन दिखा रहे हैं कि अगर
रायसाहब उस बेचारी का हाथ न थामते
तो कोई ग़ैर जाति का बेवकूफ
बनिया ब्राह्मण कायस्थ गले मढ़
देता उस अभागी का भूदानी भाई???
या ये अफसोस और शर्मिन्दगी है
बाउजी को कि सर्वगुण संपन्न अम्माँ एक
बालविधवा है?
पता नहीं क्यों बाओजी ने
कही तो थी सब बात
अम्माँ को मेरी नज़र में गिराने और खुद
का अहसान महानता दिखाने को । मगर
पहली बार अम्माँ की पीङा और
बाओजी का ओछापन
भैया की महानता और खुद की क्रूरता मुझे
साफ साफ नज़र आ रही थी ।
बाऊजी अपने बच्चों को दौलत के दम पर
अम्माँ से काटते रहे थे । ये चाल मेरी समझ
में आ चुकी थी । लेकिन बाऊजी भूल गये
प्यादा भी वज़ीर की जगह आने पर वज़ीर
बन जाता है । मैंने एक सीधी चाल चल
दी जहाँ तक सब खाने रिक्त थे ।
बाऊजी!!!
आपने अम्माँ से शादी ही क्यों की? आप
इतने बङे रायबहादुर!!! एक बाल
विधवा से विवाह
की क्या मजबूरी रही ।
अब क्या बतायें मिष्ठी!!
बङी लंबी कहानी है ।
मेरी पहली पत्नी थी अनपढ़ और शरीर से
कमजोर । मेरे बङे भाई गाँव रहते थे ।
माँ बाप मर गये थे । भाभी जब हैजा में
मर गयीं तो एक बेटे के साथ हमने
पहली पत्नी को गाँव भेज दिया घर
किसानी रसोई छोटी बहिनों और भाई
की सेवा को
।भाई थे शराब ताङी के नशे में और पाप
कर बैठे । मैं क्रोध और परिवार
की इज्जत की बेबसी में घर पत्नी और
बच्चे सब छोङकर चला आया ।
यहाँ बदलाव की लहर चल रही थी । एक
दोस्त ने बताया एक सुंदर औरत का ।
इसके कजिन और माँ से बात हुयी तो लगे
तमाम देश समाज और क्रांति की बातें ।
घर तो मैं वापस जा नहीं सकता था ।
पुलिस से भाई को बचाने के बाद
पहली पत्नी को मृतक कह कर छोङ
आया था । तब सोचा बाल
विधवा बेचारी घर में पङी रहेगी ।
दो जून की रोटी चार कपङे एक छत
मिलेगी मेरी भी सेवा करेगी जीवन
आसान रहेगा।
धाँय
धाँय
धाँय
जैसे बारूद के धमाके हो रहे हों । ये
क्या कह रहे हैं बाऊजी?? क्या कोई
ऐसा क्रूर भी हो सकता है??
बलात्कारी नशेङी अन्यायी बङे भाई
को दंड देने की बजाय । पुत्र सहित एक
बेबस कमज़ोर अबला निरीह
स्त्री को उसी वहशी दरिन्दे के
रहमो करम पर छोङ आये जिसने उस
लाचार की आबरू लूटी हो?????
पाप किसका!!!!!
और सज़ा किसको!!!!
धङ धङ धङ धङ धङाम्।
बाऊजी की बनी बनायी सारी बहादुरी री मिसालें
तसवीरें सब गौरव की मीनारें खंडहर
हो गयीं ।
बाऊजी तो आपकी पहली तब
जिंदा थी जब माँ से शादी की???ये बात
माँ को बतायी थी?
नहीं बतायी थी ।उस वक्त
वो मरी ही समान थी ।
सो तुलसी गंगा कसम लेकर कह
दिया कि पत्नी बच्चे दोनों मर गये
लेकिन जब गाँव से बङे भैया ने
चिट्ठी लिखी मनाने को तब इसने पढ़
लिया और हंगामा मचा दिया ।
कुँयें में कूदने चल पङी थी शार्दूल को पेट में
लेकर एक अहीर ने बचाकर वापस
भेजा कि बदनामी तो बाल विधवा की।
बाओजी फिर आपकी पहली पत्नी के पास
आप कभी नहीं गये? वे कहाँ रहीं ।
कहाँ रहतीं? कुछ दिन माँ बाप के घर
रहीं फिर पेट में दूसरा बच्चा था सो उन
लोगों ने वापस वहीं गांव भेज दिया ।
भैया एक सङक दुर्घटना में मर गये । उधर
उनके माँ बाप मर गये । सो मुझे
जाना पङा खेत खलिहान
चचेरों को बटाई पर दिये और हर महीने
तब से पूरा खरचा भेजता हूँ ।
बाऊजी तभी हर साल छुट्टी में गाँव जाते
हैं चार महीने रह कर आते हैं । लेकिन उस
स्त्री को कैसा लगता होगा जिसका"घटभंजन
श्राद्ध"करके प्रतिज्ञा कर आये थे
हमेशा को छोङकर वापस न आने की ।
बाऊजी!!
आपकी पहली पत्नी का क्या कुसूर
था उनको क्यों छोङा ????
कुसूर??
अरे लाख मँहगा हो बरतन औरत
तो मिट्टी का ही भांडा है ।एक बार
जब विष्ठा घोल दी गयी हो तो । कोई
पीना तो दूर नहाने कपङे धोने
का भी ना सोचे ना बरते । मैं
घृणा क्यों न करता।
ये बाबूजी के विचार हैं उफ!
तो अब आपकी पहली पत्नी के दोनों बेटे
क्या करते हैं??
दो??
दो नहीं चार बेटे हैं । दो की नौकरी लग
गयी दो पढ़ रहे हैं ।पत्नी को मरे दस
साल हो गये ।
मतलब???
आपने उनको अपना लिया????
क्यों न अपनाता??
जब मैं एक बालविधवा का हाथ पकङ कर
निभा सकता था तो
वह तो फिर भी मेरी सतभाँवरी थी।©®सुधा राजे

1 comment:

  1. अद्भुत...साहित्यप्रेमियों को एक तोहफ़ा...

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