मुक्तक :भार सृजन का

Sudha Raje
प्रेम मात्र है एक अनोखा अनुपलब्ध
उपहार सृजन का ।
ये अपूर्ण चुनकर रक्खा है इस पर
सारा भार सृजन का।
सुधा तृषा ही तृषा और है तृप्ति मात्र
भ्रम विभ्रम मिलना ।
विरह अजर है अमर वेदना मिलन मात्र
त्यौहार सृजन का ।
©®सुधा राज

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