प्रजानामचा ""केजरीवाल का इस्तीफा

एए पी
चीफ ने बहुत दूर तक की सोचकर बहुत सही वक्त पर सही कदम आ आ पा
और खुद अपने हित में उठाया है ।
और मानना पङेगा कि दिमाग में तेज राजनीति है ।
जो भी सलाहकार है वो सही सलाह दे गये इस वक्त ।

क्योंकि
ये त्याग पत्र इस समय कानी उँगली का बहुत बढ़ चुका नाखून कटाकर
बलिदानी शहीदों में नाम लिखाने जैसा कदम है ।

और

आ आ पा
के समर्थकों द्वारा इस इस्तीफे को शहादत त्याग कुरबानी और सत्ता से वैराग
परम सिद्धान्त वगैरह घोषित भी किया जा रहा है ।


जबकि
जरा दूसरी तरफ देखें
1-आ आ पा के बिन्नी और तीन अन्य विधायक खुद आ आ पा के खिलाफ़ हो कर बाहर
निकलने पर आआपा कमज़ोर
2-आआपा पर कांगो की महिलाओं के साथ सबके सामने यूरीन सैम्पल देने को
मजबूर करने की वजह से और सत्ता में आने से पहले कानून मंत्री पर अनेक
आरोप से बौखलाहट
3-आआपा के दो विधायक विधानसभा में सोते पाये गये जिनकी तसवीरे खूब शेयर की गयीं ।
4--गणतंत्र दिवस पर चप्पलें पहनकर विश्वभर में भारतीयों का मज़ाक बनवाने
की अजीब जिद जबकि या तो धोती कुर्ता टोपी नागरा जूतों की पारंपरिक
भारतीय पोशाक पहनकर देशी या कुर्त्ता पाजामा मफलर में या अचकन शेरवानी
या कोट पैंट जूते पहनकर सही और फॉर्मल हुआ जा सकता था क्योंकि वहाँ वरदी
में सेना पुलिस और छात्र थे वरदी में ही गणतंत्र का अनुशासन तब विदेशियों
के बीच भारतीय मुख्यमंत्री क्या संदेश देना चाहते थे कि आआपा न भारतीय
पोशाक जानती है न गणवेश का अनुशासन?
5-संविधान के अंतर्गत तीन सूची हैं कार्य विभाजन की १""राज्य सूची
२''केन्द्रसूची ३""समवर्ती सूची
ये तीनों सूचियाँ उन कार्यों के विभाजन को घोषित करतीं हैं जहाँ राज्य
किन किन मामलों पर शासन चलायेगा और केंद्र कहाँ । स्पष्ट उल्लेख है कि
जहाँ किसी भी राज्य का कोई नियम विनियम अध्यादेश विधायन यदि केन्द्र
द्वारा पारित विधायन नियम विनियम अध्यादेश के विपरीत या बाधक हो तब
केन्द्रीय संसद द्वारा पारित नियम को ही लागू और सर्वोपरि माना जाये ।
ए ए पी
को जरूरत है कि एक बार किसी एल एल बी किये साथी के साथ बैठकर पूरा
संविधान और आई पी सी को सी आर पी सी के साथ
प्रस्तावना से लेकर समस्त संशोधनों तक गंभीरता से इर्थ सहित पढ़ लें समझ
लें और उन सब विषयों की पूरी सूची तैयार कर लें जिन जिन पर "राज्य "
कानून बना सकता है और ""केंद्र ""के बनाये कानून के विपरीत ना हो कोई
कानून इसलिये कोई कानून बनाते समय उसी विषय पर केंद्र का कानून कब कहाँ
कैसे किस रूप में लागू है यह भी पता करके पढ़ समझ लें

6--ए ए पी की समस्या है अरविन्द और मनीष सिंह के अलावा कोई दमदार वक्ता
या सटीक जानकार रणनीतिकार नहीं । बेशक पूर्व पत्रकार आशुतोष प्रवक्ता बन
गये और पीछे तमाम धनकुबेर और प्रमोटर भी समर्थन में है बङे बङे मीडिया
संपादक भी अघोषित एजेन्ट के तौर पर काम भी कर रहे है महान आम साधारण आदि
के महिमामंडन के साथ किंतु यही महिमामंडन भारी पङ रहा है क्योंकि
वास्तविक साधारण आदमी
ये महसूस कर रहा है कि साज़िश क्या है आखिर????? क्यों एक राज्य के
मुख्यमंत्री पर कैमरा लगातार टिका हुआ है जबकि बङी से बङी खबर कार्यक्रम
सूचना शेष सत्ताईस राज्यों की केवल सरसरी पर सिमट जाती है!!!!!!!!! और
यहाँ एक आकलन निकल कर आता है कि "आ आ पा "के कंधे के पीछे से नरेन्द्र
मोदी विरोधी खेमा काम कर रहा है । तो दूसरी ओर कॉग्रेस जो सोचती थी कि
चौधरी चरण सिंह मोरारजी देसाई देवगौङा वाला हश्र कर के आआपा का लाभ उठाकर
नरेंद्र मोदी के वोट कटवाये जा सकेंगे वहाँ दाँव उलटा पङ गया और केवल
दिल्ली की रसोई सँभालने वाली """मम्मी """"बनाकर बिजली पानी सङक सुरक्षा
भ्रष्टाचार में उलझा देने के मंसूबे से आगे निकलकर जब"" ए ए पी "ने ताल
ठोंकनी शुरू कर दी अमेठी से!!!!! और लोकसभा के लिये भी तब बौखलायी
कॉग्रेस और हङबङायी भाजपा । नतीजा विधानसभा के भीतर से बाहर मुख्यमंत्री
के घर तक हर तरह से बौखला डालने लगातार बोलते रहने और चीखने धरना देने
भीङ से भाग खङे होने मकान बदलने पर मजबूर कर दिया गया ।
ये पुरानी राजनीति का बङा सरल सा नमूना कि भीङ इतनी कर दो फरियादियों की
कि होश ही न मिले काम करने का ।
7-
हालात के साथ अल्पमत की आआपा सरकार जो
कि अपने धुर विरोधी कॉग्रेस के समर्थन से चल रही थी।
के सामने अपने ही मोहरे पिट चुके थे ।
अब अगला कदम कॉग्रेस जरूर उठाती
और ऐन किसी मर्म प्रहार के मौके पर उठाती
समर्थन वापस लेने की देर थी कि सरकार धङाम हो जाती ।
सरकार
गिरना तय हो चुकी थी कि आआपा को भी बेचैनी होने लगी थी ।
कि न तो दिल्ली प्रशासन सहयोग कर रहा है जो कि इसलिये कि लोकसभा चुनाव
सामने पङा है और पता नहीं 2014 में कौन मुखिया बन बैठे??
दूसरी तरफ कॉग्रेस के गले में हड्डी फँस गयी कि हम समर्थन भी दें और
गाली भी खाँयेँ!!!!!!
अब इससे पहले कि''' आआपा ""
आंतरिक कलह से बिखर कर समाप्त हो जाये और कॉग्रेस समर्थन खींचकर बेइज्जत
करे बढ़िया दाँव ::::
कि
बिल्ली खायेगी नहीं तो लुढ़कायेगी जरूर

अब विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश कर दी गयी

सबकी विधायिकी खत्म!!!!!!!
इसे कहते है धोबीपाट

आ जाओ लला मैदान में और फिर करो तैयारी । पाँच साल ये विधान सभा इस तरह
चलाना असंभव भी तो था ।
क्योंकि जिस तरह एक एक नाम घोटालेबाज़ों के सामने ला ला कर हङकंप कर रखा
था वहाँ न भाजपा साथ दे सकती थी और ना कॉग्रेस ।
अब
जनसाधारण को जो जो मीडिया दिखाये देखना पङेगा । बाकी है लोकसभा चुनाव की तैयारी ।
जिसे दिल्ली की अल्पमत विधानसभा में बैठकर ""मम्मी ""की तरह बच्चे रसोई
बिल बरतन सफाई में उलझकर नहीं किया जा सकता था ।

कोई बच्चा भी समझ सकता है कि ये कोई सत्ता त्याग या शहादत बलिदान वगैरह नहीं है ।
बल्कि पुख्ता राजनीति है।इस समय इससे कूटनीतिक चाल कुछ हो ही नहीं सकती ।

अब

आआपा
दिल्ली की चिल्लपों और बिजली पानी सङक क्राईम से मुक्त!!!!!!!!!!

चलो गली कूचे जंतर मंतर और करें धरना प्रदर्शन भाषण लोकसभा और पूर्ण
बहुमत पाने की तैयारी!!!!

यही है सोचा समझा दाँव
और अब भाजपा कॉग्रेस के पाले में है गेंद

अगर भाजपा को कॉग्रेस समरथन दे तो लोकसभा में क्या मुँह दिखाये!!!!!

नतीजा दिल्ली में दुबारा चुनाव और पक्की सहानुभूति आआपा के पक्ष में ऊपर
से मोदी विरोधी मीडिया जबरदस्त प्रचार कवरेज के मूड में ।
और
केजरीवाल के पास बढ़िया बहाना
देख लो भाईयों हम तो सही कर रहे थे हमें सत्ता का मोह नहीं हमारा माईक
तोङ दिया कागज फाङ दिये ।
अब हम केन्द्र में जाकर बदलेगे कानून ।

आ जाईये मैदान में

फिलहाल तो आ आ पा ने कॉग्रेस का दाँव कॉग्रेस के गले में डाल दिया है ।
देखना दिलचस्प रहेगा कि
अगर
केजरीवाल को नुकसान किया गया तो अंबानी और तीन सौ घोटाले बाजों की करतूत
कहा जायेगा ।

और
अगर विधान सभा चुनाव दुबारा होते है तो एएपी सिरदर्द बनकर सत्ता या
विपक्ष दोनों में धरने पर ।

लोकसभा में भी निःसंदेह कम या ज्यादा दखल होना सुनिश्चित है ।
©®सुधा राजे
सर्वाधिकार सुरक्षित लेख
Dta-Bjnr

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