Sunday 2 February 2014

अकविता :मुख्यअतिथि

Sudha Raje
मेरे सब कपङे पुराने थे और सब गहने सस्ते
मेरे पास समय अधिक था और मक़सद कुछ
भी नहीं ।
कहीं जलसे और जश्न में जाने लायक न
साधन थे न वाहन ना ही नज़दीकी ।
कुछ जन्मदिन कुछ शादियों कुछ गृहप्रवेश
कुछ दशटोन के निमंत्रण पत्र रखे थे
सामने ।
एक एक करके सबसे अपने को तौला और देने
के लिये उपहार भी आँका पिछले व्यवहार
भी कसौटी पर कसे फिर कुछ लिफाफों में
पैसे रखे और डाकखाने से वापस आकर पैदल
ही बच्चों सहित करीब के सबसे ग़रीब
रिश्तेदाऱ के घर शादी में जा पहुचे हम ।
उन सबको यक़ीन ही नहीं आ
रहा था कि हम सब वहाँ पैदल चलकर आये
हैं!!!!!
उस दिन और उस रात हमारा परिवार
ही मुख्य अतिथि रहा खुशियाँ हमारे
आसपास छलक रहीं थीं और कोई
पानी मिठाई नाश्ते लेकर दौङ
रहा था तो कोई मेरे बच्चों को हँसाने
खिलाने में मगन था ।
बरसों बाद नानी माँ के सिखाये गीत
बरबस कंठ से फूट पङे और उंगलियों ने
ढोलक से पहचान
बढ़ा ही ली बरसों बाद सुना कि मैं
कितना अच्छा गाती हूँ और छोटू
का नाच देखकर सब नजर न्यौछावरें
डालकर नाच रहे थे ।
हमारी छोटी सी सी भेंट
बङा सा तोहफ़ा होकर सबके सामने सबसे
ऊपर रखी दुलहन के संदूक में और आते समय
सब रो रहे थे । दुबारा कब आओगे
की मनुहार दूर तक पीछा कर
रही थी घर आकर खोली पिटारी में थे
चंद कपङे मिठाईयाँ और ढेर सारी यादें

एक बार माँ ने कहा था कि बङों के घर
चाहे जश्न में न जाओ उनको कमी न
होगी किंतु अपने से छोटे के घर जरूर
जाना उनका ही नहीं आपका भी कई
गुना बढ़ जायेगा ।
मुन्ना पूछ रहा है अब हम कब चलेगे गुल्लू
के घर?ये खुशी न किसी थियेटर में थी न
मेले में ?धन्यवाद माँ!!
©®सुधा राज

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