Tuesday 4 February 2014

अकविता :बजाओ तालियाँ बजाओ

तुम तालियाँ बजाते रहोगे और गाँव शहर
की तरफ भागते भागते गिर पङेगे
झुग्गियों के समंदर में
तुम लाईन में लगकर राशन खरीदते रहोगे
और नयी पीढ़ी सीख जायेगी गिरते हुओं
को कुचल कर आगे बढ़ जाना ।
तुम हाथ और सीटी का संतुलन बनाते रह
जाओगे
और काले सिर गेंहुआ सांवले गोरे चेहरे सीख
जायेंगे हर लाल बत्ती को अनदेखा करके
रफ्तार से भाग जाना ।
तुम गला साफ करके माईक टेस्ट करते रह
जाओगे और
ज़माने भर का शोर तुम्हारे दिमाग़
की दसवीं मंज़िल पर कत्थक सिखाते
सिखाते ब्रेक करने लगेगा ।
रह जाओगे तुम जल जंगल जमीन करते और
सब नगर निगल जायेंगे गाँव आकर ।
राख ही राख बचेगी
हर तरफ
तब तुम सिर्फ ताली बजाना क्योंकि तुम
और कर भी क्या सकते हो ।
ये पीपल तब खा चुका होगा तुम्हारे
पैरों के नीचे खङा राजपथ और
ताली बजा रहा होगा नगर का कंक्रीट
डामर और सुलग कर जल
चुकी होंगी तुम्हारी हथेलियाँ तब तुम
सिवा ताली बजाने के किसी लायक
नहीं रहोगे बजाओ तालियाँ बजाओ
©®सुधा राज

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