Wednesday 5 February 2014

सुधा राजे की कहानी -- झुमकी।

झुमकी
---------------
कहानी ।।
---------
मेरे लिये बस एक नाम
थी हजारों क्लाईंट्स में से एक । लेकिन
ज्यों ज्यों तारीखें लगतीं गयीं वह एक
अनोखा अनुभव हो गयी ।
औसत से कम कद की साँवली गठे बदन
की झुमकी की देहयष्टि इतनी संपन्
की कोई भी स्त्री ईर्ष्या कर उठे ।मुझे
भी हुयी ।कभी लगता सब उसे घूर रहे हैं
तो मैं उसे चैंबर से बाहर ले जाती चाय
पीने के बहाने बार कैंटीन के लेडीज केबिन
में ग्वालियर हाईकोर्ट तब पुराने महल में
ही चल रहा था और
पत्थरों की नक्क़ाशी का अद्भुत
नमूना वह महल एक बेहद ऋतुअनुकूलित नक़्शे
से बना था । सी जे कोर्ट चौथी मंज़िल
पर लगता था । और कैंटीन प्रथम तल पर
।झुमकी अपने पूर्व पति के ख़िलाफ़ एक
मुकदमा लङ
रही थी । अपने बच्चे पाने के लिये ।
उसके पति ने भी मुकदमा ठोक
दिया था ।विवाह के
प्रति चरित्रहीनता का आरोप । और
ग़ज़ब ये था कि ये मुकदमा मैं अपने कट्टर
आलोचक रिश्ते के एक भाई से लङ
रही थी जो झुमकी के पति की पैरवी कर
रहे थे । एक ऐसा इंसान जो ये
मानता था कि औरत को वकालत
नहीं रसोई सँभालनी चाहिये झुमकी
की शादी छह साल की उम्र में सत्तरह के
लल्लू काछी से
हो गयी । और गौने पर दस साल
की झुमरी बलात्कार
झेलती रही बीस साल के युवक का । एक के
बाद एक तीन बेटियाँ पैदा होने से
झुमरी की कदर ही खत्म
हो गयी । बीस की झुमरी तीन
बेटियों की माँ हो गयी । काछी लोग
सब्जी का धंधा करते हैं
सो झुमरी सारा दिन
मिरची टमाटर नींबू धनिया सेम तोऱई
पर निराई गुङाई रोपाई
पानी करती ।।शाम सवेरे बूढ़े ससुर
की गालियाँ खाती और रात को दारू
पीकर मंडी से
सब्जी बेचकर लौटे मरद की हवस में
रौंदी जाती ।
ये तकलीफे कम नहीं थी कि,
बङी बहिन मर गयी औऱ
झुमरी बङी बहिन के दो बेटे
जो अभी बहुत छोटे थे साथ ले
आयी क्योंकि जीजा शहर में ठेली लगाकर
सब्जी की फेरी करता कछवार
सँभालता औऱ माँ बाप पहले ही मर चुके थे

लल्लू काछी बाहर को दाँत निकले उलटे
तवे सा काला औऱ दैत्याकार शरीर
का आदमी था ।
शराब और जुआ के साथ ठीये
की दुकान होने से
बढ़िया आमदनी होती थी ।लेकिन जैसे
जैसे झुमरी मेहनत करती जवान और
गठीली होती जा रही थी लल्लू का बदन
आलस औऱ शराब ने
खोखला कर दिया ।
ऊपर से वह सस्ती बस्तियों में
भी जाता रहता तब जब झुमरी पेट से
होती या जचकी पर खटिया पर रहती ।
या मायके चली जाती झुमरी की मेहनत से
कछवार में हर मौसम के फल लगने लगे थे और
छोटी लङकियाँ टोकरी चबूतरे पर धरकर
दिनभर फल
सब्जी बेचती रहती ।
बकरियाँ अलग से पाल ली थीं और
बङी बेटी ने जब रसोई औऱ छोटे भाई
बहिन सँभाले । झुमरी भी सिर पर
टोकरी रख कर दिन में एक चक्कर पास
की पॉश कॉलोनियों तक लगाकर
काफी पैसे कमा लेती ।
जीजा पैसे देते तो बच ही जाते बेटे पढ़ने
जाते तो झुमरी ने
दोनों छोटी बेटियाँ भेजनी शुरू कर दी ।
जीजा हम उम्र
साँवला सलौना युवक
क्योंकि जीजी गोरी थी सो जीजी हो गयी
थी ।
झुमरी साँवली को पसंद कौन
करता सो जो मिला शराबी बाप ने
मौङी ठिकाने लगा दी । फुरसत पायी
।जब बदन की जरूरत नही थी लल्लू
हड्डियाँ झिंझोङता रहा ।
जब झुमरी गदरायी । तब लल्लू
बूढ़ा हो चला था । कई साल से तो बस
कपङे खोलते
ही सो जाता ।
झुमरी गीली लकङी सी सुलगती रह
जाती । जीजा जब आते अहसान उतारने
को कुछ उपहार झुमकी के लिये भी लाते ।
स्वभाव से मधुर
भाषी जीजा मरी बीबी को याद करते
रोते तो कभी हँसते ।
एक दर्द का रिश्ता बन
गया दोनों में । पाँचों बच्चे जीजा के
साथ किलकते ।
जबकि लल्लू बेटियों को जब तब
पीटता कोसता गरियाता ।
एक दिन पिटते पिटते
झुमकी का धैर्य जवाब दे गया औऱ
मेहनतकश हाथों ने लल्लू को याद
दिला दिया कि वह सह
रही थी लेकिन दम नहीं रहा लल्लू में ।ये
चुनौती नागवार गुजरी और लल्लू ने
कुल्हाङी उठा ली । कि पीछे से जीजा ने
आकर कलाई थाम ली। लल्लू पूरी ताक़त से
जूझा लेकिन हाथ
नहीं छुङा पाया ।
औऱ जब हर तरह हार गया तब
गालियाँ बकने लगा और कह
दिया वो जो झुमरी के सीने में जा धँसा ।
कि वह
तो जीजा की रखैल है ।
बङी बेटी चीख पङी तब औऱ
सारा विश्लेषण जो झुमरी ना कह
सकी कह दिया । बेटी को फेंक कर
लोटा मार दिया।
उस शाम सब रोते रहे ।
जीजा को पहली बार
पता चला कि झुमकी झूठ
कहती रही।
बेटों को लेकर जब जीजा चले तो बच्चों ने
रो रो कर बुरा हाल कर लिया कुछ दिन
की मदद
को सोचकर झुमकी बेटियाँ लेकर जीजा के
घऱ आ गयी।
लल्लू ने
मुकदमा चोरबदचलनी अपहरण
और
चरित्रहीनता का लगा दिया ।। अब
तो झुमरी गुस्सा ही हो गयी ।। बस जब
लल्लू घर
नहीं था सारी चीज बसत उठाकर दहेज के
बाशन कोठरी में ताला लगाकर धरके
चली आयी । पुलिस आयी और
जीजा साली हवालात में । जीजा के
दोस्तों ने वकील किया मेरे सीनियर
को ।
और ज़मानत पर छूटकर झुमकी जिद पर अङ
गयी कि अब
नहीं जायेगी ।कभी उस खब्बीस
की गुलामी करने ।
मामला हमें सौंपा गया और
सारी कहानी धीरे धीरे सामने
आती गयी ।
मेरी सहानुभूति झुमकी के साथ
होनी स्वाभाविक थी । लेकिन जिस तरह
औरत
को निशाना बनाकर घिनौने इल्ज़ाम
विरोधी वकील ने लगाये और झुमकी के
मामले में समाज को नज़ीर पेश करने के
लिये जीजा को जेल और झुमरी पर लल्लू
का कब्ज़ा करने गुहार न्याय के नाम पर
लगायी ।
मुझे निजी तौर पर
प्रतिष्ठा का प्रश्न लगा । घर पर
हमारी कजिन से
गर्मा गर्मी होती रहती नैतिकत
सवालों पर ।
टोटम जनजाति और प्राचीन रस्मों के
आधार पर जब मैंने मुकदमा जीत लिया तब
झुमकी ने माला डालकर जीजा से
शादी कर ली ।
झुमकी की माँ बङी रोई । मैंने पूछा अब
क्यों रोती हो । तो ठेठ चंबली में
बोली """लै मोई मौङी खौँ चार
रोटी की भूँक हती बितै दोई
नईय़ाँ तौ कित्तौ रोउत
ह्वेगो बाको जीउ .....
मैं अवाक्
सारे सिद्धांत धङधङाकर गिर पङे थे।
सत्य कथा ।
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot
bijnor
U.P.
9358874117
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।

No comments:

Post a Comment