धरती का ऋण कुछ तो हों उऋण - ​पिलखन​

पाकड़ या
​​
पिलखन एक बरगद प्रजाति का पेड़ हैं वैसी ही सूत्र जड़े भी होती हैं बड़े पत्ते भी परंतु इसकी मोटी सी शाखा काटकर गाड़ दो तो पेड़ चल पड़ता है और कुछ ही बरस में बड़ा घना और कम देखभाल में पल जाता है ,सड़क किनारे गांव और चौपाल मंदिर और मजार हर जगह एक पिलखन लगाते रहो, घनी छाया जहां जहां चाहिये ,पूरी छतरी सघन रहती है जबकि देख ये रहे हैं कि काॅलेज और सरकारें दिखावटी सजावटी पौधों पर लाखों रूपया खर्च कर रहीं हैं जो बहुत सींच और रखवाली से पनपते हैं छोटे रह जाने से न छाया न फल न ही कुछ अधिक प्राणवायु
पाकड़ कल्पवृक्ष है ऐसा एक संतयोगी ने भी कहा।
पाकड़ शीघ्र बड़ा होता है एक पूरी पान की गुमटी हमने पाकड़ के तने में धँसी देखी घनी छाया इतनी कि टीन के ये यात्रीशेड बकवास ,
पश्चिमी यूपी में पहले सब जगह पिलखन थे
एक दसफीट की शाख काटकर नमी में गाड़ देते पाँच साल में घना पेड़ हो जाता ,
अब सरकारी रकम डकारू वृक्षारोपण हो रहा है दस पांच फुटिया रह रह जाते पेड़ों का
 
प्लास्टिक के ताड़ लगने लगे
पाकड़ कल्पवृक्ष है ऐसा एक संतयोगी ने भी कहा
 पाकड़ की कोंपलों का अचार बड़ा स्वादिष्ट बनता है।
पाकड़ की पत्तियां थाई करी में डालीं जातीं हैं
और नन्हें फल जो अंजीर जैसे दिखते हैं खाये जाते हैं
यह पच्चीस से पैंतीस मीटर तक भी ऊँचा हो सकता है
इसे कलम से लगा सकते हैं बरसात की नम जमीन पर कहीं भी
चार पाँच फीट की मोटी डाल काटकर गाड़ दें बस हो गया चार पाँच साल में महावृक्ष तैयार
इधर दिल्ली से देहरादून तक बहुत हैं उधर दक्षिण में भी हैं
सब तरह की जलवायु में पनपता है रिगिस्तान तक में लग सकता है बशर्ते वयस्क हो लेने तक जल मिल जाये इसीलिये लोग बरसात का पहला छींटा बरसते ही शाखा काटकर लंबी सी दस फीट तक की गाड़ देते हैं और एक साल तक देखभाल करके बड़ा पेड़ बना लेते हैं

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