​धरती का ऋण कुछ तो हों उऋण - ​​पिलखन

पाकड़ या
​​
पिलखन एक बरगद प्रजाति का पेड़ हैं वैसी ही सूत्र जड़े भी होती हैं बड़े पत्ते भी परंतु इसकी मोटी सी शाखा काटकर गाड़ दो तो पेड़ चल पड़ता है और कुछ ही बरस में बड़ा घना और कम देखभाल में पल जाता है ,सड़क किनारे गांव और चौपाल मंदिर और मजार हर जगह एक पिलखन लगाते रहो,  घनी छाया जहां जहां चाहिये ,पूरी छतरी सघन रहती है जबकि देख ये रहे हैं कि काॅलेज और सरकारें दिखावटी सजावटी पौधों पर लाखों रूपया खर्च कर रहीं हैं जो बहुत सींच और रखवाली से पनपते हैं छोटे रह जाने से न छाया न फल न ही कुछ अधिक प्राणवायु 
©®सुधा राजे

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