सुधा राजे का प्रजानामचा:- "जाति बनाम स्वास्थ्य और स्वच्छता।"

अथ प्रजानामचा
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हमारी एक सहपाठी थी "अर्चना "और उनकी बहिन प्रचला "
दोनों मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री की भतीजी थीं ।और घर विद्यालय हम लोग
साथ साथ आते जाते कलेवा एक साथ करते और, शाम को खेलमैदान साथ रहते 'और
प्रचला को नृत्य सिखाना भी जारी रहता ।
हमारे निजी कक्ष तक केवल विशेष लोगों की ही अनुमति थी जिनमें गिनी चुनी
सखियाँ भी थीं ।
प्रचला, उस जाति से थीं जिसके "लोग कभी चमङा उतारने और जूते मशक पर्स
बेल्ट बनाने का कार्य करते थे ।
हम भी प्रचला अर्चना के जन्मदिन आदि पर उनके भव्य घर जाते थे ।
किसी को कोई आपत्ति नहीं थी, अर्चना कहती हँसकर हमें क्या हम तो चमार है
मजे ही मजे 'परेशानी तो तुम्हारी है पढ़ो और खूब पढ़ो वरना डिवीजन बिगङ
जायेगी '।
एक सखी थी "सुमन "जिसके पिता वकील थे और वह उस जाति से थी जिसके लोग
शौचालय साफ करते थे कभी । उसका स्वभाव भयंकर झगङालू था परंतु हमसे बङी
लंबी मित्रता रही और एक साथ खेलना लंच सब यहाँ कि उसके घर भी हम गये चाय
नाश्ता भी किया ।
शमीम जो मंसूरी सुन्नी यानि जुलाहा चुङेरे आदि पिछङी जाति से थी हमारी
परम सखी थी लॉ करने के दौरान और आज भी जब मिलते है एक साथ खाते पीते है
हम लोग तो कभी पढ़ाई भी करते तो साथ शमीम का घर बहुत भीङ भाङ का था और
हमारे पास निजी छत कमरा और स्टडी थी सो वह हमारे यहाँ रुक भी जाती ।जब हम
लोग बाहर घूमने जाते शमीम को ढोना पङता हमें क्योंकि न तो साईकिल चलानी
आती न बाईक ड्राईविंग, हालांकि संपन्न परिवार था ।शमीम हमारे लिये 'कमल
ककङी के कोफ्ते बनाती और हमारे बापू के हाथ की फिश फ्राई में उसका भी
हिस्सा रहता ।
वे सब खाते और हमें "घासफूस आहारी "कहकर चिढ़ाते ।
असमा "किदवई ''एक और परम सखी थी जिनकी तो सगाई तक की रस्मों में हम लोगों
ने सारे रंगढंग हिंदू रिवाज के किये थे । अकसर साथ जाना खाना चलता रहता ।
राबिया सूबिया बसरी भी हमारी प्रिय सखी थी जो पहली मुसलिम लङकियाँ थी तीन
दशक पहले हमारे साथ "बाईक चलाने वाली "तब तक सब ताँगे या साईकिल तक ही
सीमित थीं ।
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अब सवाल है 'दलित ' और सवर्ण के रूप में समाज को बाँटने का तो यथार्थ यह
है कि "विवाह "के मसले को छोङकर अन्य सब बातों में भारतीय जाति व्यवस्था
बढ़ते 'शिक्षा करण नगरी करण के साथ छूट ही रही है ।

''''''जाति को पूरी तरह खत्म करना कभी संभव ही नहीं हो सकता "
क्योंकि अब रवीश कुमार की तरह पढ़े लिखे संपन्न और ऊँचे ओहदों पर जा बैठे
दलित लोग 'स्वयं ही किसी "मलिन गंदे बीमार रोगी संक्रामक माहौल से ग्रस्त
परिवार के साथ उनके ही घर का पका उनकी ही थालियों में उनके ही नित्य का
भोजन और उनके रहन सहन के हिसाब से जूठा गंदा नहीं खा सकते ।
खायेगे तो ""बीमार पङ जायेगे "बिसलरी और फिल्टर्ड पीने वाले बाबूजी ।

कोट टाई पहन कर भाषण समानता का झाङना टी वी पर और बात है ',और सचमुच समान
होकर रहना और बात है ।
मायावती खुद कभी 'यूपी की दलित बस्ती के भीतर उन घरों में घुसकर उनकी
मटके का पानी नहीं पी सकतीं जिनमें उनके बच्चे रात दिन हाथ डुबोकर जूठे
गिलास डुबोते रहते है नाक पोंछते हुये ।
This is all about, way of living '
साक्षरता और स्वच्छता के अपने एन एस एस स्काऊट गाईड और फिर एनजीओ के
विविध अभियानों के अंतर्गत हम घर घर गये हजारों घरों में गये, 'और रहन
सहन बदलने की बातें की, 'कोई बकवास करे करता रहे हमारे पास प्रमाण हैं
हमारे संघर्ष के, 'और हर्ष है कि रंग लाये हमारे प्रयास, 'किंतु अभी सब
कुछ वैसा नहीं है जैसा होना चाहिये ।
लङके, 'जिनको पढ़ाने हम दस मील साईकिल चलाकर जाते थे अपने फार्म हाऊस तक
वहाँ उनको लाख सिखाते कि "रोज नहाओ 'रोज सुबह शाम ब्रश करो या दातुन करो
या कोयला पीसकर छानकर दाँत माँजो 'और कपङे रोज धोकर पहनो 'शौच करने के
बाद तीन बार हाथ साफ करो 'बालों को दिन में पाँच बार कंघी करो ',और नाक
साफ रखो जुकाम हो तो रूमाल या कागज से साफ करो कपङों से नहीं, 'नाक मुँह
कच्छे में हाथ मत डालो और हर बार छूने के बाद हाथ साफ करो साबुन से
',पानी जूठा गिलास माँज कर ही पिओ, और गिलास फिर जूठा मत करो 'पहले हाथ
धोओ फिर गिलास या पीने का डंका छुओ ',जूँए न होने दो 'बारीक ककही ककवा
"और जूँमार शैम्पू डालकर साफ करो, '।घर की चादरें हर रविवार धोकर सुखाकर
फिर प्रयोग करो, 'कमरे पक्के हैं तो पोंछा लगाओ कच्चे हैं तो गोबर से हर
सप्ताह लीप कर स्वच्छ रखो ',रसोई में बाहर पहन कर जाने वाले जूते चपेपल
मत ले जाओ, 'जूते मोजे कहीं से आने के बाद धूम में एक घंटे सूऱने रखो
।यूनिफॉर्म प्रतिदिन धोओ, 'कीचङ नाली गंदगी में गेंद या कंचे या गिल्ली
गिर जाने पर हाथ से मत निकालो, और हाथ धोओ खेलकर आने के बाद मुँह भी पाँव
भी ।और भोजन के बरतन मँजे साफ हों तब भी भोजन करो, 'हाथ से चावल सब्जी मत
परोसो ',भोजन जूठा करके वापस 'समूचे भोजन के बरतन में मत डालो 'जूठी
चम्मच मत प्रयोग करो उसे धोकर साफ करो, 'गंदे हाथ कपङों से मत पोछो
।""'''':
परंतु ढाक के तीनपात ',वे लङके लङकियाँ, 'एक प्रतिशत भी सुधरने को तैयार
नहीं मिलते ',उनकी माँए भी, मजाक बनाती, बच्चों के जुकाम अपनी साङी से
पोंछ देती ',पिता की जूठी थाली में खुद खाती फिर उसी में एक एक करते सात
आठ बच्चे खाना खा जाते, और फिर, बचा खाना 'हांडी में वापस डाल देतीं
'जूँए मारतीं रहती खत्म ही नहीं होते ',दरवाजे पर हैंडपंप हर गली में
हैंडपंप परंतु नहाने का गरमियों तक में जी किसी का नहीं करता ',स्कूल से
यूनिफॉर्म दो दो मिलतीं परंतु बिना धोये ही पहनते रहते, 'राशन सब्जी बिना
ठीक से छाने फटके धोये ही पिस जाता और सब्जियाँ भी 'घङे अकसर खुले पङे
रहते और जूठे बरतन सब एक ही गिलास से मुँह लगाकर पानी पीते रहते ।मंजन
दातुन कोयला राख कुछ भी दाँतों को न लगने देते, 'लाख रोको देशी सुअर का
मीट खाये बिना हफ्ता न बीतता और, 'पाठ याद करने में मन ही नहीं लगता
।हैंडपंप के पानी से नहाने की बजाय 'गङही धुबैया पोखर 'में जाकर कूदते
लङके और अश्लील हरकतें करने की ताक में रहते "बहुत डाँट पीटकर मुरगा
बनाकर कुछ को बदला 'किंतु बहुत घिसा तक जाकर चुटकी भर निशान पङा । लङके
छिपकर बीङी पीते गुटखा खाते, भाँग के पौधों को रगङकर रस निकालकर सुखाते
और बीङी में भरकर "सुलफा पीते "घरों के खूब भीतर "औरतें कच्ची शराब
उतारतीं जंगली फलों फूलों पत्तों को सङाकर और भभक फैलती रहतीं ',
लङके और उनके बाप भाई चाचा ताऊ दादा अकसर घर लौटते शराब पीकर लङखङाते
हुये और घर आते ही गली से ही 'तेरी माँ का """'''तेरी भैन का '''घोसङा
'""मादर "''और बेटी '''तक की घिनौनी गालियाँ बकते आते ',परस्पर लाठियाँ
चल जातीं अकसर और सिर फूटते रहते ',इसी बीच लङकियाँ भागतीं रहती और
पंचायत बिरादरी की फैसले सुनाती रहती ऊटपटाँग कभी जूते पर से थूक चटवाकर,
बलात्कार माफ हो जाता कभी "रकम पर ''छेङछाङ के फैसले हो जाते, 'थाने
कचहरी तो तब बात जाती जब बिरादरी से बाहर की बात होती ।धरमशाला सरकार बना
जाती लङके उसमें ताश खेलते जुआ खेलते और छिपकर अद्धे पऊए पीते ',लङकियों
के लिए अपनी प्रेनकथा के आयाम बढ़ाने को आड़ मिल जाती ।सरकारी शौचालय
बनते और दिन बीतते वहाँ भी नग्न चित्रकारी और गंदी गंदी इबारतें लिखकर
"साक्षर होने का ऐलान कर दिया जाता ',छतें बनजाती सरकारी मदद से और वहाँ
से लङकी छेङने के लठयाव और कंकरबाजी के कांडों पर बहसें चलतीं । गली की
सङकें पक्की सरकार कर जाती और दोनों तरफ पक्की नालियों को बच्चे "खुड्डी
बनाकर शौचालय की तरह इस्तेमाल करते बतियाते और बिना धोये ही 'साईकिल का
पहिया घुमाने नंग धङंग दौङ पङते । शराब के नशे नें धुत्त पुरुष औरतों की
जमकर पिटाई करते गालियाँ बकते और अकसर ""किसी की बीबी बेटी बहि पकङ ली
""के इलजाम में उनकी धुनाई उनकी ही बिरादरी के लोग करते । झाङ फूँक भूत
प्रेत और घोलना नावते, 'ओझा, भी रोज का ही किस्सा होता । बूढ़ी बेवा माँ
की दारूखोर बेटा पिटाई करता और वह थाने जा पहुँचती, 'स्कूल सरकार खोलती
बच्चे मिड डे मील खाने के समय हाजिर और इंटरवल के बाद "फरार 'हो जाते
',किताबें सरकार देती और रद्दी में बेचकर पढ़ाई बीच में ही छोङ दी जाती ।
कैरोसीन चीनी कतार लगाकर राशन डीलर से ली जाती और पास के किराने की दुकान
वाला बिरादर ही कुछ रुपये अधिक देकर खरीद लेता । जमीन पट्टे पर मिलती और
जुआ शराब गाँजा और एश में गिरवी हो जाती फिर बिक जाती ।
बेटी की साईकिल आती सरकारी और लङकी घर बिठाकर लङका चलाता फिर बेच दी जाती
। वजीफा बच्चों का बाप छीनने आता शराब के लिए और माँ मारखाती न देने को
और कभी माँ जीतकर गहने बनवा लेती कभी बाप छीनकर दारू में उङा देता ।
शातिर बूढ़े प्रौढ़ जवान जब कभी किसी बच्ची बच्चे का बहला फुसला कर यौन
शोषण करते पाये जाते तो जमकर कुटाई होती और बिरादरी की पंचायत में
जुरमाना दावत खिलाकर रकम का रखा जाता तो कभी जेल हो जाती "सिरफुटौवल में
बुद्धू बीस साल जेल रहा ',जब निकला घर ढह चुका था शादी हुयी नहीं, सो एक
और यौनशोषण केस में फिर दुबारा जेल चला गया । पन्ना का भरापूरा परिवार
है बच्चे नगर जा बसे हैं बेटियाँ ससुराल हैं । चुनाव आते नेता बन जाता
बिरादरी का ही सबसे खतरनाक समझा जाने वाला झगङाबाज आरक्षित सीट से मेंबर
चेयरमेन और पंच सरपंच बन जाते विधायक प्रधान और सांसद बन जाते ',फिर फिर
चुनाव जीत जीत कर धनवान बन जाते 'और मायावती, मीराबेन, बनकर फिर उस
बस्ती में पांव तक नहीं रखते ।वह सब जो अनहाईजिनिक है संक्रमणकारी है रोग
बीमारी फैलाने वाला है और जूठा गंदा और उबकाई लाने वाला है ""उन बिरादरी
के मसीहाओं फरिश्तों के लिए '''अनटचेबल ""हो जाती पानी खाना कपङा सामान
और इंसान भी ।
This is all about tha way of living .... वे धनिक बनकर नेता से 'भगवान
हो जाते बाबा साहब बहिनजी और माननीय हो जाते ',कलुआ घंसू डिगाङू फत्ते
उरमिया सब वहीं के वहीं रह जाते, :शराब, 'यौनशोषण 'पढ़ने से जी चुराना,
जातिय द्वेष नेता फैलाते और वे लोग वहीं के वहीं रह जाते 'गंदे बीमार और
लङाकू कलहकारी रोते सर फोङते गाली बकते शराब उतारते चमङा उधेङते और भागते
'सब सुधारों से पीछे की ओर ।
औरते रसोई में फटकर पकाने की बजाय राशन का अनाज बेचकर आटा खरीदलाती और
'पर्व त्यौहार पर नेग माँगने जा पहुँचतीं ' हक है कहकर :जबकि घर घर अब
शौचालय खुद साफ करते हैं लोग जूते अब खुद ही पॉलिश करने लगे हैं कपङे
इस्तरी खुद हः कपते हैं और वाशिंग मशीने आ गयीं है डिश वाशर आ गये है हल
रख दिये गये ट्रेक्टर आ गये हैं और 'स्कूल मुफ्त हो गये "हॉस्टल मुफ्त हो
गये राशन मकान मुफ्त हो गये शादी को धन मिलता है इलाज मुफ्त हो गये,
पेंशन और मुआवजा धङाधङ बात बात पर मिल रहा है , 'कोचिंग और नौकरी सब
बुलाकर बँट रहे हैं ',और हर बस्ती में बारातघर सार्वजनिक धर्मशाला और
अंबेडकर पार्क निजी मंदिर मठ चर्च और स्कूल हो गये हैं फिर भी चिढ़ है
"स्वयं को मेहनत से साफ रखतीं जातियों से!??!
©®सुधा राजे


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