सुधा राजे का लेख :- " मंदिर केवल बुतखाने नहीं थे..."

Sudha Raje
कल कहीं सुना कि एक महाशय कह रहे हैं कि भारतीयों ने किया ही क्या?
बनवाये तो मंदिर और स्त्रियों को सती किया कराये तो यज्ञ ।
क्या ऐसे लोगों को पता है कि ।
मंदिर केवल बुतखाने नहीं होते थे भारत में ।मंदिर के साथ
'यात्रीविश्रामगृह और अतिथिशाला होती थी क्योंकि तब होटल नहीं थे ।मंदिर
का अखाङा होता था क्योंकि तब "जिम "नहीं थे ।मंदिर की पाठशाला होती थी
क्योंकि तब सरकारी और कॉन्वेंट स्कूल नहीं थे ।मंदिर के साथ 'मंच मनोरंजन
स्थल होता था क्योंकि तब सिनेमाहॉल और थियेटर नहीं थे ।मंदिर के साथ
स्थानीय विवादों का समाधान करने की दैनिक साप्ताहिक मासिक और वार्षिक
सभायें थी क्योंकि तब कचहरियाँ और थाने नहीं थे ।मंदिर के साथ रोज सुबह
शाम आरती के बाद बँटता प्रसाद था 'और निराश्रितों विकलांगों को भोजन दो
बार तो हर रोज मिल ही जाता था, क्योंकि तब राशन की दुकाने बीपीएल कार्ड
नहीं थे ।मंदिर से लगा कुँआ और गौशाला और बालकें के लिये क्रीङा मैदान भी
थे ।मंदिर को जाना दिन प्रतिदिन का अभ्यास था क्योंकि तब स्टेडियम और
जॉगर्स पार्क नहीं थे ।मंदिर से जुङे खेत पुजारी के होते थे और मंदिर में
आपदा शरणस्थल होते थे ',आकस्मिक सूचना सभा करने घोषणा मुनादी करने के
स्थान थे ।मंदिर आरोग्यधाम औषधालय और समाज की हर तरह की गतिविधियों का
केन्द्र थे ।मंदिर से सब जुङे थे हर घर से अनिवार्य दान मंदिर जाता और
उससे समाज के लेखक, शिक्षक और विचारक वर्ग की आजीविका बखूबी चलती ।
मॆदिर ""मनरेगा "नरेगा का बाप था ''।इससे आजीविका मिलती कलाकारों नर्तकों
अभिनेताओं और नटों को, अभियंताओं और शिल्पियों को ।मंदिर समाज का
पुस्तकालय थे ।मंदिर में कन्याभोज बालभोज सौभाग्वती भोज, विधवाभोज
''पूर्वजों हेतु ब्रह्मभोज और दान सब चलता रहता था कब आँगनबाङी और
अनाथालय नारी निकेतन और लंगर सब मंदिर थे ।
मंदिर थे तो गाँव गाँव के बीच प्रतियोगितायें थी ""स्वयंवर के आयोजन थे
"मेले उत्सव झूले हिंडोले नुमाईश और हाट बाजार मंदिर से ही तो थे ।
स्टेडियम भी मंदिर थे ।',मंदिर से ही नायक जनता को संबोधिक करते और
विचारक नायक को नीतियाँ समझाते । मंदिर, आचरण पर लगी नियंत्रित सभा थे ।
आज चार लाख मंदिर सरकार के कब्जे में है और मसजिदें चर्च कितने हैं?? ये
धर्मनिर्पेक्षता है??
गैलीलियों की घङी से पहले "चौबीस शलाकाओं का कोणार्क आ चुका था और
"""नक्षत्र गणना तो अब पूरी दुनियाँ मानती ही है कि मंदिरों से उपजा
ज्ञान सारी सभ्यताओं से पहले की व्यवस्था है । प्राचीन यूनान के निर्माण
भी भारतीय 'प्रस्तर कला के समक्ष फीके पङ जाते हैं ',
संगीत का सम्राट रहा भारत और सुर लय ताल के कलाकारों को मंदिर से अधिक
उपयुक्त स्थल कहाँ था अपनी कला के अभ्यास लोक प्रशिक्षण और प्रदर्शन के
साथ प्रतियोगिता का!!!! मंदिर के भीतर संगीत की धुनों के साथ पूजा और
ध्यान योग व्यायाम और पीपल बरगद कदली अशोक आँवला आम महुआ कदंब हरसिंगार
मौलश्री और बेल के वृक्षों का पूजन "आज के वन विभाग तक नहीं कर पा रहे
ऐसी व्यवस्था ।
इसीलिये 'विदेशी आक्रमणकारियों ने सबसे पहले मंदिर ढहाये 'ग्रंथ जलाये
और मंदिरों की गौशायें तथा भंडार लूटे 'लाखों ग्रंथ जलादिये और
पांडुलिपियाँ चुरायीं और नष्ट कर दीं!!!
शेष फिर
"©®सुधा राजे


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