सुधा राजे का ""यात्रा वृतांत"" :- "" कल- कल गंग विकल....""

तीर्थवास पर थे, हरिद्वार में जबरदस्त सुरक्षा के बीच भी "रोङीघाट पर
मेहरबाबाआश्रम के चारों तरफ गंदगी ही नहीं बल्कि अव्यवस्था भी थी वहाँ
कोई पुलिसवाला तक राउंड पर नहीं था 'एक छिछोरा वहीं कपङे बदलती लङकियों
को घूरने लगा और फिकरे भी, सहन नहीं हुआ तो खदेङ दिया ',क्या तीर्थ पर
गंगा नहाते भी ये 'नरपशु 'पशुता नहीं छोङ सकते!!!!!! तो क्यों जाते हैं
गंगा????
जब ऋषिकेश की तरफ चले मार्ग में शराबी ऑटोरिक्शा चालक की बदतमीजी भी देखी
जो मौका देखकर नित्य यात्री लङकियों से भी तिगुना किराया ले रहा था जबकि
हरिद्वार से किराया मात्र बीस रुपये है सामान्य दिनों का ',मार्ग में
"जहीर चिकन मटन शॉप!!!!! और गंगा में गिरता गंदा नाला देखकर मन आहत हो
गया ',क्या गंगा को हरिद्वार ऋषिकेश में माँस मलमूल गंदगी से मुक्क रखना
उत्तराखंड सरकार के लिए असंभव है!!!!! क्यों नहीं तीर्थ यात्रा मार्ग से
ये चीजें दूर रखी जा सकती?????
रास्ते में ही ऑटोचालक शराबखाने पर रुका और पौवा खरीद कर चालक सीट के
नीचे रखकर अंधाधुंध गाङी दौङा दी ।
ऋषिकेश में भी ठीक गंगा के ही आसपास बने भवनों की छतों पर पीछे और
खंडहरों में कूङे का ढेर लगा हुआ था ।
वहाँ भी छिछोरे!!!!!!
क्या भारत में कोई जगह है जहाँ लङकियाँ शांति से निडर रह लें दो पल!!!!!!!!
जयभारत
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©सुधा राजे

लेखिका अधिवक्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं

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