सुधा राजे का लेख :- "" विश्व गाँव की संकल्पना बनाम इस्लामिक आतंकवाद""

चेतावनी भी है और हम कुछ बरस पहले इसे विस्तार से समझा भी चुके हैं । अरब
इजरायल का पूरा इतिहास और बाईबिल कुरान दोनों ही जिन जिन लोगों ने पढ़
लिये होंगे वे भी हमारी बात से इनकार नहीं कर सकते कि

किसी
"मुसलमान का समर्थक नहीं है कोई भी आतंकवादी "
तब किसी जमाने संघर्ष हुआ था संसाधनों पर कब्जा करने के लिये । और आज भी
सारा आतंकवाद है संसाधनों पर कब्जा करने के लिये ।
क्योंकि आतंकवादी जब किसी को मारते हैं 'अरब देशों से बाहर तो पूछकर
मारते हैं 'धर्म क्या है '।सुबूत माँगते हैं कुरान की आयतें सुनाओ या
पढ़कर दिखाओ '। खतना देखते है पुरुषों का । स्त्रियों से नमाज कलमा और
आयतें सुनते हैं । पता चलते ही कि मुसलमान नहीं है बेरहमी से कत्ल कर
देते हैं ।
और ऐसे खून खराबे कत्लेआम पर चुप रहता है अकसर बहुतायत लगभग सारा ही
मुसलिम तबका यह सोचकर कि वे सब आतंकवादी मुसलमानों के सरपरस्त या रक्षक
हैं और वे मुसलमानों को नहीं मारेगें । क्योंकि उनका निशाना तो 'केवल
'ग़ैर मुसलिम लोग है ।
यहीं तो सारी चाल खेली जाती है ।
पहले इसलाम के प्रचार प्रसार के नाम पर ज़मातें बनायीं जाती है ।इन
जमातों में लगभग हर घर के बच्चे लङके प्रचार प्रसार तकरीर और उपदेश के
लिये दूर दूर तक जाते हैं । जिनके खाने रहने सोने का इंतजाम अतिथि की
भाँति घर घर मसजिद मसजिद होता है । इन जमातों का खर्चा चंदे की रकम से
जुटाया जाता है ।
धर्म प्रचार की शक्ल में इन लङकों का संपर्क एक से दूसरे देश के आये
लोगों से होता है ।
आप पता करिये आज कल इंडोनेशिया बांगलादेश भारत पाकिस्तान सऊदी अरब तक के
अनेक प्रचारक विविध प्रकार का वीसा लेकर भारत और पङौसी देशों में आ जा
रहे हैं । इनके लिये घरों से भोजन शैया और अनिवार्य दान जाता है ।
इन्ही के बीच में "आतंकवादी "संगठन जिनकी संख्या हजारों में है ।
अलग अलग देशों में अलग अलग संगठन काम कर रहे हैं ।
इन संगठनों का कोई सदस्य कहीं कोई काम मेहनत मजदूरी नहीं करता!!!!!!!!
तो जलता हुआ सवाल है इनका खाना कपङा अय्याशी का सामान मोबाईल लैपटॉप,
हथियार यात्रा पासपोर्ट वीसा और रहने घूमने का खर्चा कौन उठाता है?
कहाँ से आता है हर देश के अनेक आतंकवादी संगठनों के पास पैसा?
ये पैसा आता है "आपराधिक रँगदारी से ।ये पैसा आता है धनवान मुसलमानों का
भयादोहन करके । ये पैसा आता है जक़ात और इसलाम के प्रचार प्रसार
मुसलमानों के लिये यतीमखाने मदरसे दरगाह कबरिस्तान मसजिदें और इजतमा
मजलिसें यात्रायें कराने के नाम पर धोखे में रखकर उन मुसलमानों से जो
मेहनत करते हैं नौकरी करते हैं कलाकार है और जाहिर तौर पर धन कमाते हैं ।
गरीब है या अमीर सबको "हज "और उमरा "का बंधन इसलाम ने कर रखा है सो, इस
बहाने ये आतंकी संगठन जमातों की भीङ में अपने उपदेशक लगाकर "ब्रेनवॉश
"करने वाले 'धार्मिक कर्ज फर्ज और जेहाद के नाम पर बरगला लेते है लङकों
को । लङके घर से धरम के लिये गायब हो जाते हैं । परिजनों को अकसर पता
नहीं होता कि लङके कहाँ है परंतु अंदेशा पूरा होता है कि लङका मजहब के
प्रचार प्रसार में दीनवाला हो गया ।
ये दीन के नाम पर जुटे धन से भी धनसंकलन कर लेते हैं और दान देने वाले को
पता तक नहीं चलता कि उसका धन जो उसने इसलाम के प्रचार प्रसार के लिये दान
दिया है ।यतीमों बेवाओं के लिये दरगाह मदरसे और मसजिदें बनवाने को दिया
है दान में वह कहाँ कहाँ जा रहा है ।
अनेक आपराधिक घटनायें बैंक डकैती ब्लैकमेलिंग और लूटपाट से भी धन जुटाया जाता है ।
मुसलमान सोचता है कि आतंकवादी उसको नहीं मारेगा ।
ऐसा वह करता भी है "नारा ए तकबीर ''लगाकर हत्यायें करता है ।
नाजियों की तरह । एक कौम को ऊँचा घोषित करके उनका "हीरो "बन जाता है ।
फिर जहाँ जहाँ "इसलाम क़ायम हो जाता है ।वहाँ शरीयत के नियम लागू करने के
नाम पर मुसलमानों को मारता है ।पाकिस्तान बांगलादेश मलेशिया ईरान ईराक
अरब इज़रायल कुवैत सीरिया लेबनान ""''''सब जगह जहाँ जहाँ देश का मजहब
इसलाम है वहाँ वहाँ, भी हत्यायें करते हैं आतंकवादी ।
लेकिन जब देश इसलाम का है वहाँ सब मुसलमान हैं तब क्यों??? हत्याये???
तब तो उन सबको अरबी फारसी आती है!!!! सब नमाज जकात रोजा हज और कुरान की
तराबिया करते है!!!!
तब क्यों हत्यायें की??
क्यों मारा मुसलमान को 'नारा ए तकबीर 'लगा कर???
सवाल टेढ़ा है परंतु दिमाग है तो समझो कि ये "अजगर लोग आतंकवादी इनको
क्या बहाना है इसलामिक देश में सत्ता पर रौबदाब और डर बनाये रखने का तब??
तब फिर खरचा कहाँ से चलेगा? कहाँ से विश्व भर को दाब डराकर भयभीत रखने का
सारा तंत्र चलेगा!!!
तब मुसलमान ही मुसलमान को ""शिया ""कहकर मार डालता है ।
कुरेद बहाबी सुन्नी शिया के अलग अलग गुट संगठन बनाने के नाम पर डराता
मारता है और मुफ्त की दौलत लूटता है ।
कामकाज करके कमाना फिर कैसे संभव है!!!!
एक बार आतंकवादी बन गया तो बन गया फिर 'घर वापसी "संभव ही नहीं ।तो फिर
खर्चा रुतबा तो कायम रखना ही पङेगा ।
तब जब एक ही गुट और समूह का कुनबा रह जाता है तब भी आतंकवादी हत्यायें करता है ।
और तब क्यों?? तब हत्याओं का कारोबार होता है """स्कूल न जाओ मदरसे पढ़ो,
'तब विज्ञान मत पढ़ो, गाना मत गाओ, नाचो मत, तब सिर पर परदा टोपी बुरका
नकाब क्यों नहीं रखा,, क्यों नहीं दाङी रखी,, टेलीविजन सिनेमा रेडियों
क्यों रखा???
जब 'जिस देश में शरीयत का कठोर सख्त और बर्बर कानून लागू हो जाता है तब
भी आतंकवादी वहाँ पर हत्यायें करता है " । तब? क्यो?
क्योंकि तब उसको 'दूसरे मुसलमान मुल्क पर कब्जा करना है अपने इसलाम के
भीतर भी दूसरे गुट कौम और फिरके के लिये '।
अरब इजरायल फिलिस्तीन सीरिया अफगानिस्तान पाकिस्तान और सारे मुसलिम देश
"आज से नहीं इस पूरी सदी से ही आतंकवाद के शिकार हैं ।
बल्कि आप तुलना करेगे तो पायेगे कि वहाँ फिर "एक आतंकवादी गुट दूसरे
आतंकवादी गुट से अपना दबदबा सत्ता भय और गुंडई कायम करने के लिये लङ रहा
है ।
एक संगठन दूसरे के लङकों को मार डालता है ।
और ये सब फिर संसाधनों पर कबजा जमीन पर देश पर हुकूमत पर कबजा करने के
लिये ही होता है ।
बगदादी की सेना से लङने वाले सैनिक भी मुसलमान है और बेरहमी से मारे जा
रहे हैं और उसकी तरफ से लङने वाले भी मुसलमान है ।

ये सब जब तक होता ही रहेगा जब तक कि खुद आम और खास हर "ग़ैर आतंकवादी
मुसलमान खुद ही यह नहीं तौल लेता कि उसको किसी भी "गैर मजहब वाले
बुतपरस्त आतशपरस्त या कितबिया 'काफिर क्रिस्तान किसी से भी कोई खतरा
नहीं है ।
क्योंकि दुनियाँ के सारे मजहब अमन दोस्ती और "शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की
भाषा और जरूरत बरसों पहले ही समझ चुके हैं ।
अब तो जितना भी खतरा है वह है हर आम और खास गैर आतंकवादी मुसलमान को
''आतंकवादी बनकर इसलाम के नाम पर उनकी ही गाढ़ी कमाई के धन से 'बम बारूद
असलहा खरीद कर पहले इसलाम का प्रचारक बनने के नाम पर धोखा ठगई करके । बाद
में इसलाम का रक्षक बनकर गैर मुसलमान की हत्या करके 'इसलाम के प्रति नफरत
और मुसलमान के प्रति सारी दुनियाँ में अविश्वास पैदा करके, बाद में शरीयत
लागू करने के नाम पर मुसलिम बच्चों औरतों लङकियों जवानों को बेदर्दी से
खत्म करके 'पेशावर 'सीरिया 'ईराक 'उदाहरण है । और फिर शिया सुन्नी कुर्द
बहाबी इजरायली अरबी फारसी के नाम पर कत्ल करके ।
चाहे सारी दुनियाँ में घूम ले मुसलमान किंतु जब रहेगा इसलामिक देश में तो
दम घुटता रहेगा खुद उसका ही । भारतीय को भारत की कदर बाहर जाने के बाद
समझ आती है ।तब तक देर हो चुकी होती है ।असलहा बम बारूद पेट्रोल और नशे
का लंबा काला कारोबार करते आतंकवादी ''केवल धोखा ही दे रहे हैं मुसलिमों
को । न तो उनकी हत्याबाजी से इसलाम के प्रति लोगो के दिल में प्यार बढ़
रहा है न ही मुसलमान पर भरोसा बढ़ रहा है ।
जगह जगह लङकों को गुमराह करके हत्यारा बनाकर "फिदायीन बनाकर खुद ही मर
जाने और मार डालने के लिये "मजहब का फर्ज के नाम से तैयार करने वाले ये
हजारों आतंकवादी संगठन 'दूर दूर तक फैले हैं परंतु न एक नीति है न नीयत ।
आज बार बार आई एस का साथी होने का दावा करना ऐसे आतंकवादी गुटों की चाल
है ताकि 'सीरिया की भयानकता "के कारण डरे हुये लोग उनको "आई एस का अंग
मानकर डर जायें । पहले ये सब खुद को 'अल कायदा 'का साथी बताते थे ।
हालत उस उन गुंडों जैसी है जिनको न डॉन जानता बै न उन्होने ही डॉन देखा
है, परंतु बस कंडक्टर को टिकिट माँगने पर धमकाते हैं "जानते नहीं मैं डॉन
का आदमी हूँ ।
भारत हो या कोई भी देश यह सबको समझना समझाना पङेगा कि "मुसलमान को अलग
थलग करके उनको डरा कर दूसरे मजहबों से ',और असुरक्षा का भय पैदा करके
भेङों की तरह झुंड बनो का हाँका लगाकर फिर खुद को ''मुसलमानों का रखवाला
''बताकर ये आतंकवादी भेङियों की तरह ही मुसलमानों को खाते रहना चाहते है

यह समझना होगा कि 'चाहे कुछ भी करलें ये आतंकवादी न तो धऱती पर कभी किसी
एक मजहब की सत्ता हो पायी है न कभी हो सकेगी ।
अलबत्ता अगर आम और खास शांतिप्रिय मुसलमानों ने खुद को "आतंकवाद से अलग
घोषित और साबित नहीं किया तो ''सारा विश्व नाजीवाद की तरह उन पर शक करता
रहेगा ।
और यह शक उनको खुद ही दूर करने की आज जिम्मेदारी है ।
आतंकवाद की कमर तोङनी है तो उनको दुतकारना पङेगा कि वे मुसलमानों के बॉस नहीं है ।
यह बात समझने और समझाने की है कि "दीन दीन दीन "और दीनी तालीम की दिन रात
वकालत करने वाले मौलवियों और उलेमाओं में से भी अनेक आतंकवादियों के
सरगना पाये गये ।

मजहब के नाम पर लोगों को 'अल्लाह 'खुदा 'रब 'का रास्ता दिखाने वाले लोग
भी अगर खून खराबा और हत्याओं का कारोबार करते पाये जाते हैं तो, आम
मुसलमान को चेतना होगा जागना होगा । एक समय चर्च के नाम पर ईसाईयों ने
खूब बेवकूफ बनाया जनता को ।एक समय ईश्वर के नाम पर खूब बेवकूफ बनाया
हिंदू साधुओं ने लोगो को ।लेकिन जनता ने उनको उनकी असलिसत जानने के बाद
चर्च तक सीमित कर दिया ।मंदिर तक सीमित कर दिया ।बौद्ध भी मठों कक सीमित
हैं ।
उनके उपदेश वे सबको सुनाते हैं परंतु हर विवेकशील प्राणी उसको अपने जीवन
की शर्तों समस्याओं परिवार की जरूरतों के मुताबिक ग्रहण करता है ।
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सोचना मुसलिमों को है कि उनको | कहाँ खङा होना है ',खून हत्या अपराध की
पहचान के साथ गरीबी भुखमरी में ।या मानवता की पहचान के साथ साफ सुथरी
आतंकमुक्त सहअस्तित्व की संकल्पना वाली धरती पर
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किसी पादरी, लामा, साधु के कहने से कोई भी घर छोङकर हत्यायें करने नहीं
निकल पङता अब । समय बदल चुका है, सेटेलाईट युग है प्रजातंत्र का जमाना है
लोग दूसरे ग्रहों पर जा जा कर जीवन तलाश रहे हैं और धरती एक गाँव जैसी हो
चुकी है हर घर पर नजर है हर आदमी की पहचान तत्काल उपलबध है हर जगह की
फोटो उपग्रह से ली जा रही है ।सब लोग हर समय पूरी दुनियाँ के संपर्क में
हैं । अपराध और अपराधी किसी भी कारण अपने कुकृत्य को जायज नहीं ठहरा सकते
। चाहे बहाना मजहब के प्रचार का लें या कौम की रक्षा का या बदला लेने का
या फिर यह कि उनपर जुल्म हुआ ।अदालतें है इंसाफ की पुकार के लिये सरकारें
है संयुक्त राष्ट्र संघ है और प्रजातंत्र है विश्व न्यायालय है । दुनियाँ
सुंदर स्वस्थ हरी भरी और साफ सुथरी है तभी हर मुसलमान सुखी ।
©®™सुधा राजे


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