सुधा राजे के दो गीत।

सुधा राजे के गीत
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"""मैया मोरी पठौनी धर दै """"""
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रोरी हरदी धर टीका भर माटी अँचरा छाँव
की।।

अम्माँ मोरी पठौनी धर जौ माटी मोरे
गाँव की।।
बाबुल मोरी पठौनी धर जौ । माटी मोरे गाँव की ।।
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थोङौ नीर नदी कौ । थोङी धोवन तोरे
पाँव की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर जौ माटी मेरे गाँव
की।।
*1-****
पईयाँ पईंयाँ जब लरकैयाँ चली पकङ
बाबुल की बईंयाँ
उतर घुटरूअन चाटी माटी मार सपाटे लै
गई कईंयाँ
।।
तनक सियानी भएँ बाबुल नेँ
परदेशी खौँ सौंपी बईयाँ।।।।
माटी बालेपन की गुईंयाँ---'यादें छूटे ठाँव की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर दे माटी मोरे
गाँव की।।
2***********
बेर मकोर करौंदे टेंटी कैंथा इमली झरबेरी।।
डाँग जलेबी ,होरे भुन्टा महुक कसेरू और
कैरी।।
तरस तरस गई मामुलिया खौँ । भई ससुरार महा बैरी ।।।।
ज्वार की रोटी दूध महेरी '' काँय"विरन
के नाँव की"।।

अम्माँ मोरी पठौनी धर दे माटी मेरे
गाँव की।।
*3-*****
माटी के शंकर गनगौरें हाथी घोङे
माटी के।।।
गप्पी गल गुच्ची घरघूले चौक चितेउर
माटी के।।
माटी खेलत बङ गये सपनिन काया जोङे माटी के ।।मट्टी के वे चूल्हे बाशन•
बौ हाँडी गुङियाओं की।।
अम्माँ मोरी पठौनी धर दे माटी मेरे
गाँव की।।
°°°°4-^°°°°°°°°°°°
मिचकी पींग हिलौंरे होरी। कीच रंग
भँग हुङदँग की।।
टेऔँनी घुटने छिले
मली बौ माटी बूटी अँग अँग की।।
कनकौए कंचे बौ अक्ती संकरात सुध सतरँग
की ।।
केश
धो रही भब्भी खा गयी••
सौंधी महक कथाओं की।।
अम्माँ मेरी पठौनी धर दे माटी मेरे गाँव
की
★5★
माटी मोरे देश की माटी ।।
हा •••••बिछुङे
परिवेश की माटी....
पूरे संस्कार संस्कृति की गुरूअन के उपदेश
की माटी।।।
सत्ती माई के चौरे की।
भसम शहीद चिताओं
की।।
अम्मा मोरी पठौनी धर दे माटी मेरे
गाँव की
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सुधा राजे
(जन्मभूमि दतिया) करमभूमि बिजनौर


★★★★गीत ""2★★बापू रै गये निपट अकेले ★★★

अम्माँ मर गयीँ जब सेँ बापू रै गये निपट
अकेले ।
डिङक हिलक केँ कै रये बिन्नू!!!!
को जौ जीबौ झेलै
तज गईँ को जौ जीबौ झेले
1-जौ लौँ अम्माँ जियत
रहीँ /बाबूजी की चलती रयी ।
डाँट पङी अम्मईँ पै चाँये कोऊ
करी गलती रयी ।
अब कै रये पछता कैँ हमखौँ काय न भेजौ पैलै
बिन्नू को जौ जीबौ झेले ।
2-अम्माँ डाँठेँ
रयीँ थुमियाँ सीँ ठाट बङेरे घर के ।
इत्ती तनक कमाई में जोरी मुलक
गिरस्थी मरकें
बाबूजी तब दारू पीकैं खूबई रुतबा ठेलेँ
बिन्नू को जौ जीबन झेले ।
3-
लरका बऊ ने
कब्जा लओ अब
मड़ा ""पौर में बैठेँ ।
अम्माँ खौँ गरिय़ाऊते
बैई "अब बऊ की सुन सुन ऐंठे ।
नातिन कै रयी टोकत
कित्तो डुकरा "कितै पहेलेँ । बिन्नू
को जौ जीबन झेले
4-
सुधा आयीँ बिटियाँ सो हिलके जे ई लगत
तीँ खोटीँ ।
बेई सुना गयीं भज्जा खोँ कये दै रओ
सूकी रोटी ।
बिटियन के डर सेँ भब्भी
जौ पथरा मुडीँ ढकेलेँ ।
बिन्नू
को जौ जीबन झेलेँ
5-अम्माँ हतीँ दबाउत गोङे मूँङ पै चिकनई
धरतीं
नग नग दुख रये गोली खा रये । नत बऊ
ढूँक पबरतीँ।
सबखौँ भाबई लगे पैन्शन मिल रय़ी जाये
सकेलेँ
बिन्नू को जौ जीबौ झेले
6
अम्माँ हतीँ मिलत तीँ चुपरी । बई पै
टाठी फेँकी ।
कौनऊ परी विपत् अम्मईँ ने झखरा बन बन
छेँकी
जई सेँ ""सुधा"" जोर कर कै रयीँ ।
घरवारी सँग रै ले
बिन्नू को जो जीबौ झेले????
©®सुधा राजे
+ जनमभूम दतिया
+ करमभूम बिजनौर

''एड जर्न, 'सुधा राजे "


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