सुधा राजे का लेख "स्त्री ":- ""विशेष सम्मान स्त्री का हक।""

जी बिलकुल '"बराबरी नहीं हम लोगों को अधिक हक और विशेषाधिकार चाहिये
"""""जायज भी है क्योंकि दो बच्चे भी जनने वाली माँ नौ माह गर्भ धारण करे
दो दो बार तो "भी देह का खोखला हो जाना स्वाभाविक है ।तो """गर्भिणी को
सीट चाहिये, ""उठिये ।""""तीन साल तक बालक गोद में रहता है सात साल तक
कोंछे में सो धात्री को सीट चाहिये ""उठिये ।
"""स्त्री हर महीने इसी माँ बनने के प्रावधान में रजस्वला होने के दर्द
सहती है सो """"सब लङकियों को भी पुरुष से पहले सीट चाहिये ""उठिये ।
"""स्त्री को छूना घूरना उस पर कमेंट करना ""पुरुष ही पहले करते हैं सो
हर बच्ची को सुरक्षा चाहिये """"""और बिलाशक """औरतें कुदरती कमजोरियों
से जूझकर भी मरदों से अधिक मेहनत करती हैं सो ""सम्मान चाहिये """""पुरुष
पिता बनता है गोद में बच्चा लेने पर """स्त्री माँ बनती है बीज गर्भ में
आने से चिता यी कब्र पर स्वयं मर जाने तक """"बराबरी नहीं विशेष सम्मान
हक सुरक्षा हमारी ""आधी दुनियाँ को """"क्योंकि हर बार अकसर स्त्री ही
पितृकुल छोङकर घर बसाती है """पीङा सहकर पुरुष जनती है । बराबरी पर तो हम
घट जायेंगे ।
आखिर हर पुरुष किसी न किसी स्त्री की संतान है ""माँ बहिन बेटी पत्नी हर
रुप में स्त्री को हक अधिक चाहिये चाहे किसी जाति मजहब की हो । वही सभ्य
है जो स्त्री को विशेष हक सम्मान दे '"घर में भी सफर में भी !
"""""बराबरी न न न न """"""केवल गृहिणी होकर भी जननी होने भर से
"""कन्या माता भावी होने भर से ही स्त्री का ""मान पुरुष से अधिक हो ही
जाता है """"फिर यदि वह खेलकूद ""कला ""संगीत अभिनय "विज्ञान "मल्लयुद्ध
""और """ये जनाना शरीर लेकर हर जगह जाकर काम करके भी दिखा रही है """"तब
तो वह सात पुरुष के बराबर एक ही स्त्री हो गयी """
हाँ !!सही है ,,अपनी रक्षा स्वयं करनी पङेगी ', सो वह इसलिये कि समाज
में 'भङवे दल्ले नल्ले छक्के बढ़ गये और दूसरी तरफ नरपिशाच '।
परंतु ये रक्षा जब यौन हमले से करनी पङे तो """"""समझो कि समाज राजनीति
शासन संस्कृति सब पर लानत्त है "
।।
,,,, स्त्री को अपने होने का अहसास ही कब होता है ??अकसर ब्रैनवाश्ड और
टाईप्ड स्त्री को ही ""प्रतिनिधि मान लिया जाकर बात केवल """कपङों और यौन
आक्रमण तक ही रह जाती है """"""सभ्य समाज में व्यक्ति रूप में स्त्री की
स्थापना अभी शेष है
!!!
हाँ; सही कहा कि अपनी रक्षा स्वयं करनी पङेगी ',
सो वह इसलिये कि समाज में 'भङवे दल्ले नल्ले छक्के बढ़ गये और दूसरी तरफ नरपिशाच '
वरना जब गर्भ में नर हो या नारी तो स्त्री को तनिक सी ठोकर तक नहीं लगने
दी जाती थी कि 'जीवन न केवल स्त्री का वरन आशा पूरे कुटुंब की भी स्त्री
की कोख से ही प्रस्फुटित होती है ।
प्रसव पीङा, रजस्वला होना, गर्भधारण, पितृकुल छोङना 'रसोई सँभालना ",अब
भी बहुल रूप में लगभग शतप्रतिशत स्त्री के ही हिस्से में हैं ।
अपनी रक्षा स्वयं तो करनी ही पङेगी, जब पङौस के लङके ही बुरी नीयत रखने
लगेगे बहिन होती थी पङौसी की बेटी ।
अपनी रक्षा आप करनी ही पङेगी जब कि पिता की आयु के बूढ़े भी युवती को
बेटी नहीं "मादा "समझकर देखने लगे हैं ।
अपनी रक्षा आप ही करनी पङेगी जब ब्रेनवाश्ड शोषित औरतें 'अपने पुरुष की
खुशी के लिये 'सखी ननद बहिन अनजानी स्त्री को कपट से पुरुष का शिकार
बनाने लगीं हैं ।
किंतु कङवा सच है कि "लाख अपनी रक्षा आप कर ले ''''''''समाज से स्त्री का
शोषण तब तक नहीं खत्म होगा जब तक """दद्दा राजकुमार मलिक जी जैसी सोच
वाले 'पापा और पति नहीं होंगे ।जब तक पुरुष ही पुरुष की टाँगे नहीं तोङ
देगें किसी बहिन बेटी बहू के अपमान पर जब तक हर पुरुष अपने "पुरुषत्व की
तौहीन समझकर विरोध में खङा नहीं हो जायेगा "कृष्ण की तरह ''
ये औरतें औरतों की दुश्मन वाला ज़ुमला भी मर्दवादी सोच के पुरुष का
ब्रेनवॉशिंग षडयंत्र है । ताकि वह मालिक बना रहे और हर औरत को यह डर रहे
कि 'अगर बहू बेटी छोटी बहिन की भूल हुयी तो 'उसे भी उन यातनाओं से गुजरना
पङेगा या अपमान उसके ज्येष्ठत्व का होगा, चाहे सास हो माँ हो या शिक्षिका
। वह यातना के दौर से गुजर कर 'टाईप्ड हो चुकी होती हैं और 'ढल चुकी होती
है, इस समझौते में कि ""अब तू भी सरेण्डर कर तुझे 'हॉर्स ब्रैकिंग जैसा
मैं तोङूँगी "ये हाथी पर चढ़कर हाथी का शिकार करने जैसा मनोवैज्ञानkजो
स्त्री कुतल दी जाती है खुद भी ड्रैकुला बन जाती है जैसा सच है ।
इसलिये जागो और समझो "बराबरी नहीं ""विशेषाधिकार चाहिये । सदियों के सङन
गलन के बाद चंद स्त्रियाँ अगर ओवर रियेक्ट कर भी रहीं हैं तो भी "सारा
एशिया त्राहि त्राहि कर रहा है स्त्री पर जुल्मतों का दौर न जाने कब
थमेगा । जो भी बोलो 'स्त्री के पक्ष में ही बोलो वह 'अगर टाईप्ड हो गयी
तो "ईसा की तरह माफ करो कि ""वे नहीं जानतीं वे क्या कर रहीं हैं "उनको
ढाल दिया गया है ऐसा ही ।
जब सास कहे घूँघट लो तब उसको 'मोल्डेड ही मानो 'यहाँ जंग नहीं
'मनोविज्ञान है ।जब औरतें भारतीय नारी की मूर्ति बनने में इतरायें तो
"व्यंग्य नहीं, उनको टाईप्ड समझो, वे ढाली जा चुकी हैं बरसों के कुचक्र
में, । सभ्य समाज में दो शरीरों का प्रकार है स्त्री पुरुष और तीसरा भी
उतना ही कुदरती नपुंसक या उभयलिंगी । यहाँ शरीर एक यंत्र ही तो है, जन्म
और जीवन यापन की सब जरूरतों के साथ अन्योन्याश्रित!!!!!! गुंजाईश कहाँ है
पृथ'??? पशुनर पिशाच नर न महसूस करें परंतु हर पौरुषवान बङा या छोटा लङका
हो या युवक बुजुर्ग या प्रौढ़, 'सह नहीं सकता स्त्री का दर्द स्त्री के
आँसू स्त्री का अपमान स्त्री की असहाय स्थिति में अनजान भी मदद करने उठ
पङेगा ।
समस्या बढ़ रही है "पहले स्त्री मुक्ति का झंडा लहराने वालीं माने कि
प्राकृतिक कटु सत्य है स्त्री का गर्भाशय, प्रजनन अंग, और देह का डिजायन
ही नहीं मन बुद्धि और भावना तक पुरुष से हर तरह से भिन्न है ।
भारतीय साङी न पहनने पर दुखङा रोते है तो सुदूरपूर्व के लोग बुरके पर
बंदूक ताने खङे हैं ',
यूरोप में स्त्री बिकनी स्कर्ट और मिडी में बतियाती है और पुरुष टाईकोट
में ',तब जाकर अंतर समझ आयेगा "सदियों से दबी घुटी औरतें अचानक हक
माँगेगी तो " जनानी औरतों और व्यक्ति स्त्रियों में ही पहला संघर्ष होगा
''पुरुष तो बिलबिला ही उठता है स्त्री का चाहे घूँघट सरके या रसोई से
बगावत हो "परमानुकूलता दासीपन से मुक्त स्त्री """मर्दवादियों को क्यों
भली लगेगी???
©®सुधा राजे

Email- sudha.raje7@gmail.com

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