Wednesday 15 June 2016

सुधा राजे का लघु लेख :- एलियन होने की वेदना

बङी अभागी है वह लङकी जो जन्मी हो गढ़वाल कुमाऊँ जयपुर मुंबई केरल भोपाल
"""""कहीं और विवाह हो जाये कमनसीबी से 'मेरठ अलीगढ़ मुरादाबाद
मुजफ्फरनगर अमरोहा बिजनौर नगीना शेरकोट चाँदपुर अफजलगढ़ रामपुर कांधला
कैराना कोतवाली स्योहारा नजीबाबाद """या आसपास "।
आप पूरी उम्र मिठाईयाँ भेजिये इफ्तार कराईये ईद मिलिए और सिवईयाँ खाईये
'देश देश कीजिये ।परंतु सांस्कृतिक खाई नहीं पाट सकते न ही उस सबको अपना
सकते हैं न अपने मुताबिक रह सकते हैं ।"""""ये एक "वे ऑफ लिविंग का ही
अंतर नहीं है बंधु ये है दर्द डिफरेंस ऑफ एटीकेट्स एंड थॉट्स का । जिस
क्षेत्र में बहिन बेटी माँ भाभी को बराबरी से अधिक पूजनीय अधिकार मिले
हों जहाँ देर रात तक भी स्त्रियाँ निडर होकर जॉब करती हों पढ़ती हो
बराबरी दावत पार्टी पर्यटन और खेलकूद का हिस्सा हो मेला बाजार पूजा
त्यौहार सब में बढ़चढ़कर शामिल हो ',
वहाँ ',की लङकी ',
जब केवल स्त्री होने के नाते दिन में भी बाजार जाना धीरे धीरे स्वयं ही
त्याग देती है "क्योंकि लोग घूरते हैं 'बुरी तरह घूरते हैं ',बिना
जानपहचान के भी पहनावे रहनसहन और कार्य शिक्षा आदि पर टोक देते हैं ।
',तीन सवारी की सीट पर ऑटो में चार मोटे तगङे वयस्क बिठाकर गोद में और
बाहर द्वार पर जबरन बच्चे अनेक ठूँस दिये जाते हैं ""।
दूध दही मावा दवा मसाले सब मिलावटी मिलते है ""
"घी पर शाकाहारी का निशान लगाकर पशुचर्बी पकङी जाती है, '
मिठाईयाँ दीवाली पर मिलावटी मिलती है ""दवाई और पढ़ाई ब्हद घटिया और मँहगी है ।
"जॉब पर आते जाते रोज की अपडाऊन में ""तुम अलग हो हम जैसी नहीं ""की
शिकायत हर आँख में उठती है तो जॉब छोङकर घर बिठा दी जाती हैं स्त्रियाँ ।
और "सिर्फ काली कैबिन में घूमती तमाम नकली गहने मेकअप इत्र मेंहदी सुरमा
से सराबोर हर पल लङने को तैयार, ब्रैनवॉश्ड कठपुतलियों से वास्ता पङता है
और तमाम सफेद कपङों में लिपटी मैली निगाहें घूरती है मैत्री करने के सारे
प्रयास विफल हो जाते हैं । हर तरफ से अपने देश ईश्वर पुरखों और संस्कारों
की निंदा सुनाई पङती है । न घर में सुरक्षा महसूस होती है न नगर में ।
शुकायतें किससे करे कोई हाक़िम से ही शह मिलती हो तब?
सैकङों नगरपालिकायें ऐसी हैं जहाँ सत्तर साल से एक ही मजहब के लोग जीतते है ।
जब सहन नहीं होती घुटन तो पब्लिक वाहन से आना जाना छोङना पङ ही जाता है
। इन जगहों और आसपास "बिना पुरुष को साथ लिये या झुंड बनाये बिना जाने पर
भी घूरना और टोकना फिकरे कसना टहोकना बराबर जारी रहता है ।
विधवा कुँवारी अनाथ अकेली स्त्री को तो डर लगता ही है लगे भाई बहिन भी
साथ जाते डर जाते हैं । कोई नाबालिग लङका स्टंटबाईकिंग करने या रेस लगाने
में जाने कब ठोक दे ',शिकायत करने पर बाद में न जाने क्या बदला ले बैठे
""।
लोग शाम से घरों में बंद होने लगते है ""बिजली तो दस बारह घंटे ही आती है
',कभी बाढ़ कभी ओला तो कभी जेबकट चोर ठग जहरखुरान जीवन को खतरों की डोर
पर टाँगे रखते है ''गंदगी गलियाँ कबङे के ढेर ,'बङे बङे गैरकानूनी कांड
होते रहते है कोई कारगर कदम उठाया नहीं जाता गौकशी और खुलेआम मांस लटकाकर
बेचना कच्ची शराब बेचना और भाँग शराब गाँजा गुटखा तंबाकू पान से माहौल
गंदा रखना आम मामूली बात है । स्कूल ट्यूशन कोचिंग अकेली लङकी भेजते डर
लगता है ',हर हफ्ते कोई कांड, 'सङक बेकाबू ट्रैफिक और रोडएक्सीडेंट
"महिलाओं के साछ घर घर मारपीट अपमान ',,'इस इलाके में जिनकी शादी नहीं
होती दस बीस हजार की मोल की बहू लो आते है "पहाङन पुरबिनी बंगालन "यही
नाम है खरीदी गयी बहुओं को ',,',,लङकियाँ घास काट सकती है गन्ना बो सकती
है, गोबर उठा सकती है लेकिन ""बाईक या साईकिल नहीं चला सकतीं '
मुशायरे और शेरी नशिस्त तमाम किंतु कविगोष्ठी कवि सम्मेलन एक नहीं "तीज
त्यौहार दुर्गापूजा गणपति कब आते जाते हैं पता ही नहीं ',रामलीला में
अश्लील नाच और गणगोर करवाचौथ वटसावित्री सब घर में बंद मनालो????
'बङी कहानी पता करनी हो तो देखे जाकर कि "सपाई बाँट गये लङकियों को
साईकिल परंतु चलाते बाप भाई है या बेच दी ।
कागज पर सब है आँगनबाङी, आशा 'अस्पताल, सस्ते गल्ले की दुकाने परंतु कहाँ
और कब चलती हैं ये बङी खोज का विषय है 'बच्चों को गाली देते, बङे बङे
श्रम करते और वयस्कों वाले गुनाह करते पाया जाना रोज मर्रा की बात है
लोग राशन की सामग्री खरीदकर ब्लैक करते हैं और सङे गेहूँ के बोरों पर
राजनीति होती है ', '',,,औरतें सिनेमा नहीं जातीं, काली कैबिन में बंद
औरतें सब जगह ढेर सारे बच्चे लेकर चली जाती हैं ठेलमठेल हंगामा मचातीं,
किंतु किसी शालीन संस्कार वान स्त्री का सलवार कमीज साङी या पैन्टशर्ट
में आना जाना सूक्ष्मदर्शी एक्सरे से देखने गिनने पहचानने और कुरेदकर
पूरी कुंडली तक खँगालने की कोशिश दिल दिमाग सपने सबको जलाने लगती है '।
खेलकूद में लङकियाँ भाग नहीं लेती । चाहे आपकी बेटी पत्नी बहिन कितनी भी
इंटेलीजेंट क्यों न हो आप जब भी उसके कैरियर की बात करेंगे बाहर किसी
दूसरे ही नगर प्रांत या देश भेजने की सोच विवश कर देगी ',रात तो रात दिन
में भी आती जाती स्त्रियाँ समूह बनाकर''निकलती हैं अकेली तो जैसे कोई पाप
कर रही हो नंदिर जाते भी ।
शादियों के अलावा पार्टी नहीं होती ।''कानफोङू हो जाती है, इबादतगाहों की
आवाजें पूरे रामदान और शबे ब बरात बारा बफात को जमकर बल प्रदर्शन
स्टंटबाजी होती है ",,खुलेआम तकरीरों में इज्तमा के बहाने सरकारी महकमे
तक के सामने अमेरिका भारत सरकार की निंदा, और हर अविष्कार का श्रेय
अंग्रेजों को दिया जाता है । उर्दूस्कूलों में से पढ़े लोग अंग्रेजी तो
बोलना पढ़ना सीखना चाहते हैं और हर जगह जहाँ उचित शब्द नहीं मिलता उर्दू
अरबी फारसी का वहाँ अंग्रेजी शब्द रखते हैं परंतु हिंदी या संस्कृत नहीं
लेते । जमातों की माईक पर बयानबाजी के बाद का ऐसा हाल होता है कि कच्चे
मन सङकों पर जुलूसों में चीखने निकलपङते हैं '। वोट की गुटबंदी वजीफे की
गुटबंदी मुआवजे की गुटबंदी पट्टे और इमदाद की गुटबंदी । आरक्षण तो है ही
तमाम गैर सरकारी एन जी ओ भी सरकारी मदद से ऐसे ही गुट बनाये हुये हैं ।
लोग अरब ईरान ईराक़ आदि देशों में मजदूर कारीगर बनकर जाते हैं और फटाफट
करोङपति बन जाता है सारा कुनबा!!!!
और भी तो लोग जाते है दूसरे पंथ मजहब समुदाय के हुनर कला मजदूरी के लिए
परंतु उनको घर का दरिद्र निकालने में बरसों लग जाते हैं ।
भू स्वामी सङक किनारे और कीमती मौके की ज़मीनों के गरीब किसान विवश हो
जाते हैं जब गरीबी के चक्रव्यूह से परिवार को कैद मेम रखकर अकेले जूझते
पुरुष तब पूँजी भरकर लाए अरबदेशों की कमाई वाले परिवार ही सबसे अधिक दाम
देकर जमून खरीद लेते हैं । जिनके पाँच साल पहले झोपङी थी उनके महल हो गये
दुकान हो गयी होटल या स्कूल खुल गये ।
अनेक हकीम झोलाछाप हर गली में बैठे प्रशासन की नाक के नीचे 'भीङ लगी रहती
है । काली पोशाक वालियों को सर्वोत्तम सद्व्यवहार मिलता है और बाकी
स्त्रियों को तगङी फीस चुकानी पङती है जाने कब ऑटोचालक किसी परदानशीन को
जगह देने के लिए किसी पढ़ने या जॉब करने वाली लङकी से आगे ड्राईवर सीट के
बगल में बैठने को कह दे ।
,खेतों से मोटरपंप चोरी हो जाते हैं,' घर के दरवाजे से खिलौने पौधे वल्ब
। 'घर के सामने से बच्चों को उठाने की भी कोशिश, 'साईकिल बाईक कार चोरी
या कहीं जाने पर गाय बैल भैंस या बरतन भाँडे चोरी कोई बङी बात नहीं "।
""आँधी आते ही लोग सङक के आसपास के पेङ काटने चल पङते है और दूर टर्की
कुवैत इराक अफगान कही भी कोई ''काररवाही होती है "असर यहाँ सबसे अधिक
होता है ।
सोशल साईट पर तमाम आपत्तिजनक बातें की जाती है और, 'क्या क्या घुटन है एक
मुंबई जयपुर कुमाऊँ मणिपुर केरल आसाम टीकमगढ़ जोधपुर की ही बेटी समझती
है,,,।
, या फिर समझे वो जो कुछ पढ़ गुन ले बाहरकी दुनियाँ जान समझ ले ""कितने
ही कसबे,, अपना देश नहीं लगते """"""

समस्या पर खास उँगली नहीं रख सकते परंतु ये घुटन सब अरमान पी जाती है
""मॉर्निंग वॉक पर नहीं जाती महिलाएँ, शाम को पार्क मंदिर या पास पङौस के
मेल मिलाप बंद हैं ',अश्लील फिल्मों के तमाम पोस्टर यात्री विश्राम ग्रह
स्कूल कॉलेज अस्पताल और लङकियों के आने जाने की जगह के आसपास शराब के
अड्डे ",,अमूमन लङके लङकियाँ हाईस्कूल से पहले ही पढ़ना छोङ देते हैं और
""सिपारा "सब जगह पढ़ाने की व्यवस्था है परंतु एक पंडित कथा कराने को
मृतात्मा का गरुङपुराण बाचन कराने या विधिविधान से विवाह कराने को नहीं
मिलेगा 'पितामह की त्रयोदशी पर तेरह ब्राह्मण अनेक गाँव से खोज कर लाने
पङे अन्यथा एक ही ब्राह्मण को तेरह बार सामग्री सौंप कर पूजा करली
",,श्मशानों की दुर्दशा है और कब्रिस्तानों की जगह बढ़ती जाती है
बाउंड्री पियाऊ हैंडपंप सब 'हाईवे किनारे अनाचक 'मजारे नजर आने लगती है
और अगरबत्ती चादर शुरू ''
अपराध और अपराधी हावी हैं हर जगह तमाम छोटे बच्चे बैंक्विट हॉल में
बाराती या घराती बनकर आ जाते है दावत खाते खाना चुराते और पकङना किसी
फसाद की वजह ''अलवियों को लोग गरीब समझते होंगे 'घर जाकर देखा तो टीवी
फ्रिज कूलर पंखे बङे बङे मकान और बाईक सब है । अमीर और अमीरी का प्रदर्शन
हावी है 'कोई भी कांड हो जाये गिरफ्तारी को जल्दी हिलती नहीं पुलिस ',उस
पर भी पत्थर फिंक जाते है दविश के लिये जाने पर 'बिजली की धङल्ले से चोरी
होती है लोग हीटर पर मांस के हंडे चढ़ाये रहते है "शरीफ आदमी कानून को
मानकर बिल भरभर कर परेशान और बेखौफ तंग गलिओं में कटुआ बाँस से खंबे पर
लगाकर बिजली चोरी, 'सरकारी नल में निजी सबमर्सिबल का कनेक्शन ठोकर पानी
भरा जाता है ',रजाईकंबल बँटते है ''जरूररतमंद जा नहीं पाते और ठेलमठेल
मचानेवाले झपटकर पुनः बेच लेते हैं ',हर सरकारी राशन की दुकान ब्लैक करती
है चीनी गेहूँ कैरोसिन

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