सुधा राजे की टिप्पणी:- जाति मजहब के चौसर मॆं हारता लोकतंत्र ।

सारी समस्या ""अपराध और अपराधी को बढ़ने देने की है,,,,
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कहकर सब बात का पटाक्षेप नहीं किया जा सकता

अपराध और अपराधी क्यों और कहाँ कहाँ बढे???
जब मुद्दा उठा है तो डिसेक्शन इस बात का भी जङ तक तल तक हो ही जाना चाहिये ।
बरसों पहले हमारे अनेक मित्र बंधु टिहरी गढ़वाल रहते थे ',
उनका दावा था कि बस से उतरने के बाद रुपये और कीमती सामानों से भरे बैग
वे लोग बस अड्डे या बस या यात्री विश्राम गृह कहीं भी किसी भी पहाङी के
हवाले छोङकर "ऊपर चले जाते पहाङ पर कॉटेज या स्कूल तक ',
संदेह तक न था कि सामान का कुछ हश्र बुरा हो सकता है ।
हम जैसे बहुत लोगों को अपना बचपन याद होगा जब अकसर लोग मेहमान बढ़ने पर
बाहर बरामदों चबूतरों दालानों में ही अतिथियों के बिस्तर लगवा देते
थे!!!!!!
गौवंश तो चारण के लिये रेवङ के रेवङ मात्र दो किशोर ग्वाले ही ले जाते थे!!!!!
बच्चे दिनभर बाहर मैदान में पङौसियों के घर बिना लिंगभेद के खेलते रहते थे!!!!!
महिलाएँ बहिन बेटियाँ भोर से देर रात तक मंदिर पनघट तालाब नदी 'दिशामैदान
शौच 'आदि के लिये घरों से दूर दूर तक जातीं थीं!!!!

क्यों अब न गाय भैंस द्वार पर बाँध कर सो सकते हैं न बाबा दादा तक चबूतरे
दालान में खाट डालकर सो पाते हैं? न महिलायें सरकारी नल तक पर देर सवेर
जल भर पातीं हैं,
न लोग "मैदान "के आदमी औरत पर भरोसा करते हैं?
न पङौस की गाँव की मुहल्ले की लङकी बहिन बेटी बुआ भतीजी लगती है सबकी
बिना जात बिरादरी मजहब के??
क्यों,, लोग घर पर ताला लगाकर भी तीर्थ या शादी रिश्तेदारी में नहीं जा पाते??
क्यों? लोग ळटो बस रेल में बिना सूटकेस जंजीर से बाँधे टॉयलेट तक नहीं जा पाते?
"""""""
आबादी बढ़ी है संसाधन कम हुए हैं ',
राजनीति ने आरक्षण रूपी खाई खोदकर रख दी है सबके बीच ',
अपराध और अपराधी को जाति और मज़हब देखकर पहचाना जाता है ।
जनसंख्या नीति मजहब जाति देखकर तय की जा रही है ।
जो लोग अपराध की गिरफ्त में फटाफट आ रहे हैं "उनकी पहचान पर सवाल क्यों
नहीं उठाये जाते ""
अपराधियों को ढँककर दिखाते हैं और पीङित को जमकर खुलेआम गवाह की पहचान
नहीं छिपाते ।
मीडिया अब
एक दो तीन चार पार्टी का मीडिया है ।
दलित परस्त देश परस्त मजहबपरस्त अलग अलग लोगों ने मिलकर शिक्षा और भिक्षा
सबमें खाई डाल दी है ',
अब लोग भिखारी का भी मजहब देखकर भीख देते हैं ।
अपराधी "चुनाव चक्रव्यूह के भंजक वोटदिलावनहार ""
हो गये
"""'''
फलानेभाई ठिकानेभाई
सब
दरबार हो गये क्यों??
पुलिस वाले की तो इज्जज उतार के रख दी गयी!!!!!!
एक प्रायमरी के टीचर से कम वेतन मिलता है कांस्टेबल को जो दिन भर एक डंडा
लेकर लाखो आते जाते 'अंटी में तमंचा खोंसे "कार बाईक वालों को ""काबू
""में रखने को अधिकृत है ।

पहले अपराध ""घृणा की दृष्टि से देखा जाता था ""
लङकियाँ छेङने वाला पापी कहाता था
आज 'महिमामंडित है!!!!!
ये माईंडयैट रातों रात नहीं बदले
बदलवाये गये हैं "नियोजित तकरीरें कर करके ""
याद कीजिये पकङे गये हर कट्टरपंथी के बयान ''
लोग यूपी बिहार में सिवा जात मजहब खेलने के और किसी बात पर वोट नहीं माँगते ।
विकास के लिए ""पहले जात मजहब ""
नौकरी के लिए पहले जात मजहब ""
इलाज के लिए पहले जात मजहब,,
आपदा पर संकट पर मदद के लिए पहले जात मजहब!!!!!
स्कॉलरशिप और प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए "पहले जात मजहब!!!!
अरे
इन
दुष्ट वोटडकैत नेताओं ने ""लोकतंत्र को """ठगतंत्र में बदलकर रख दिया है ।
यूपी बिहार सिर्फ समस्या नहीं है पश्चिम बंगाल और जम्मूकश्मीर भी धधकचुको हैं
'''''''''
रिसर्च कीजिये
सबसे घिनौने अपराध आजादी के दस साल पहले से अब तक भारत में """"""किस
जाति किस मजहब और किन किन जिलों के लोगों ने किये हैं ""उठाईये AIR, और
सब के सब थानों अदालतों के ""बाईज्जत बरी और सजापाये लोगों की
सूची,,,,,,,
कहाँ कहाँ
अपराध कम है या नहीं है तौलिये इस बात से
कि स्त्रियाँ कितनी समान हक रखती है??
बच्चे कितने स्वतंत्र है गली कूचे में खेलवे को किन किन जाति मजहब के??
जॉब और पढ़ाई के अलावा स्वावलंबी आर्थिक और निर्णायक भूमिका में कितनी है
महिलाएँ कहाँ कहाँ किस जाति किस मजहब से???
किन जिलों में """बलात्कार दंगे बच्चों के साथ कुकर्म गौवध तस्करी ड्रग्स
जाली मुद्रा जुआ सट्टा और मानव बेच खरीद """"
कम है और
कहाँ कहाँ
ये घिनौने अपराध अधिक है लङकों से कुकर्म लङकियों के अपहरण बलात्कार
छेङछाङ महिला जॉब में कमी महिला साक्षरता में कमी लिंगानुपात में कमी और
नशा ड्रग्स शराब राजनीतिक दंगे,,,,,,,,, वोटिंग के समय झगङे ""
कहाँ कहाँ अधिक है
,,,,,
आपको जवाब मिल जायेगा ।
जब मिल जाये उत्तर तो ""सार्वजविक जरूर कीजियेगा "'''विश्वव्याप्त समस्या
का समाधान भी मिल जायेगा """"अपराध कहाँ कहाँ और क्यों बढ़े???
कहाँ कहाँ स्त्रियों की स्वतंत्रता छिनती जा रही है या उनपर यौन हमले या
छेङछाङ लिंगभेद बढ़ रहा है???
""""'''"'''''
उपाय किया है????
हमारा ठोस सुझाव है """सारे आरक्षण खत्म कर दो ""एक ही रहे गरीब महागरीब,
मध्यमनिम्न वर्ग "मध्यम उच्चवर्ग ""धनिकसामान्य वर्ग महाधनिक वर्ग """
सरकारी मदद के यही पैमाने """धर्मनिर्पेक्ष गुटनिर्पेक्ष ""
लोकतंत्र की निशानी है ।
मजहब जात परस्ती नेता, """""वोट """""के लिए करेगा और
वोटर """क्यों नहीं अपने मजहब जात पर गोलबंद होगा???????
दूसरा उपाय है ।
जिसके सिर्फ दो बच्चे हों वही सरकारी सेवा कर सके वही ''चुनाव लङ सके
वही, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में जॉब पा सके वही सरकारी सबसिडी
पा सके """"
""""""
किसी भी प्रवेश परीक्षा में सफलता का आधार मैरिट समान अंकों की कट ऑफ
लिस्ट सबके लिये हो ताकि मेधावी """ही देश की स्किल्ड कमांडिंग बॉडी बने
"""
""""""
किसी भी निकाय के चुनाव के लिए नयूनतम शैक्षणिक योग्यता इंटरमीडिएट उतीर्ण हो """""
""""
जन्म मृत्यु विवाह का पंजीकरण अनिवार्य बनाया जाये ।
सब संस्थानों में चालीस प्रतिशत स्थान स्त्रियों और दस प्रतिशत तीसरे
लिंग वालों के लिए पहले रखे जायें ''''जब वे न मिले तब दूसरों को """आय
वर्ग केहिसाब से जगह मिले ""
जाति और मजहब ""को न लिखना पङे किसी कागज में सिवा """थाने के ""सिवा कचहरी के ""
ताकि अगले दशक तक स्पष्ट हो सके कि ""अपराध और अपराधी '''
आखिर किस किस कार्य में किसन किस जाति मजहब के अधिक हैं ।
और वहाँ अभियान चलाया जाये """मानसिक शारीरिक आर्थिक सब सुधारों का ।
कठोरता से एक देश एक नागरिकता एक ही समान स्त्रियाँ सब एक ही समान पुरुष
सब ',और योग्यता ही प्रतियोगिता हो ""ताकि देश को अच्छे सैनिक वैज्ञानिक
इंजीनियर डॉक्टर और शिक्षक मिले ।
ये रोज आज फलाँ जाति ने आरक्षण माँगने को हंगामा किया कल अमुक ने हङताल
की बंद हो जाये """""
""""
अफसोस परंतु हम जानते है
लालू
नीतिश
पासवान
मुलायम
अखिलेश
ममता
और मायावती आजम जैसे """देश को चिंदियामँ
बनाकर लूटना तो चाहते हैं
ताकि उमकी सत्ता बनी रहे
परंतु संप्रभु स्वतंत्र अखंड शांति समृद्ध भारत उनकी प्राथमिकता नहीं ।
और जिनकी है
उनको इस लूटो वजीफा इमदाद फ्री के सामान आरक्षण की ठगहोङ में सुनता समझता कौन है ।
©सुधा राजे
विद्वान मित्रों की निष्पक्ष राय के लिए एक अपील सादर
सुप्रभात
"""


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