सुधा राजे की टिप्पणी:- "चलते चलते".

चलते चलते
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भारत में पुरुष नग्न होकर घूमे तो साधु!!!! और स्त्री यदि मॉडलिंग या
अभिनय के लिये कैमरे पर भी कपङे कम या खुले पहने तो "अश्लीलता?
ये सोच अगर नहीं बदलेगी तो कभी समरस स्वतंत्र समाज नहीं बनेगा ',
हिजाबों में बंद औरतें अगर कभी सुरक्षित हैं की गारंटी हो तो दावे किये
भी जाये, 'जानबूझकर टाँगे दिखाना किसी का व्यवसाय है वैसी ही जैसे पहलवान
या बॉडी बिल्डर अपना कसरती बदन दिखाते हैं । कतई भी नग्नता की हम पैरवी
नहीं कर रहे 'परंतु कोई अभिनय या मॉडलिंग के लिये स्कर्ट या बिकनी पहने
भी तो यह उसका निजी मामला है तब तक जब तक कि वह आपके घर पर न आ जाये बिना
बुलाये ',और जब तक कि उसे देखने के दाम देने और मजदूरी पर वाले मौजूद है

इसका मतलब यह नहीं वह 'सबकी हवस के लिये शिकार है ।
क्या हमारी सोच कपङों के आधार पर चरित्रप्रमाण पत्र बाँटते रहने की ही रहेगी?????
©®सुधा राजे
शुभ रात्रि

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