Thursday 9 June 2016

सुधा राजे का गद्यचित्र -" मोहांत"

बैठक से तेज तेज आवाजें आ रहीं थीं और मुन्ना छत पर परेशान था घरकी छत
कैसे बने गत्ते तो सारे भीग गये रात की बारिश में बङकी को अखबार में
खोजना था नया कॉलेज और मँझली चुपके से किताब के बीच धरकर कॉमिक्स पढ़ रही
थी मुझे नाराज होना बङबङाना था सब पर ',शेयर मार्केट की नयी पॉलिसी के
निवेश में घाटा हो गया था और पूरा नहीं हुआ था मेरा लेख 'आया आज फिर नहीं
आई और बिजली भी सुबह से गुम थी चार बजे से नींद ही कहाँ
मुनियाँ की अंकसूची खोजते गिर पङी काली डायरी से निकल गिरा एक तरुण चित्र
और एक पैराग्राफ में लिखी सरल इबारत जिसके बाद कुछ शब्द जिन पर प्रथम बार
दृष्टि पङी तो बूँदें टपक पङीं थी अक्षर धुल गये थे दशकों पहले 'इस बार
लगा 'कि सफर तो कट गया रेलगाङी का परंतु हमें एक ही डिब्बे में सीट अलग
अलग कूपे की मिली थी और फिर साथ के भरम में कट गयी पूरी दोपहर पूरी साँझ
पूरी रात ''
आज तुम पर न नाराजगी है न क्रोध न शिकवा '
एक दया सी उठी '
अब कब सीखीगे अपना खयाल रखना कनपटियों के करीब कई सारे बाल पकने लगे हैं '
कल ही तो मँगाकर रखी है नयी हेयर डाई ',और सारे हिसाब चढ़ा तो दिए है
रजिस्टर में ',तब से अब में अंतर बस इतना है पहले तुम गुस्साते थे तो रो
पङती थी अब ',सिर्फ दया आती है '
कब समझोगे कि उस तरुण चित्र से तुम बिलकुल नहीं मिलते और मैं उस पीली पङी
कुरकुरी चिट्ठी की तरह ही बची हूँ जिसे तुम बाँच तो सकते हो पर छू नहीं
सकते और न फेंक सकते हो कहीं ',स्वमेव ही होना है मुझे कायान्तरित और ही
किसी रूप में ढलने रे लिए ',तुम बस अपना भोजन परोसकर कर खाने लगो तो मेरी
'यात्रा शुरू हो ',
तुम्हें नही पता न मैं कहूँगा परंतु 'मुझे अभी जीना है उस वीरान समुद्र
तट के किनारे गीली रेत पर अकेले चलने और गुनगुनाने के लिए वे सब गीत ',
जो मैं कभी सोचती थी तुम्हें सामने बैठाकर गाऊँगी, '
देखनी हैं वे सारी पगडंडियाँ ऊँचे पहाङों की कहानियों के जंगल में खोकर
रहना है उन डाकबंगलों में जहाँ हर बार कल्पनाएँ की थी तुम्हारे साथ गरम
कॉफी और कङक सरदियों की ',
तुम्हें कहाँ बता सकी मैं कि मुझे देखने हैं बहुत सारे गहन रोमांस से भरे
चलचित्र सिनेमाघर में सबसे पीछे कोने वाली सीट पर बैठ कर रोते हुए
तुम्हारे कंधे पर टिककर कथापात्रों की संवेदना से सराबोर 'तुम्हारी जकङन
के साथ, 'अपनी नयी कहानी का प्लॉट सोचते सोचते ',
अभी तो शेष है बैकवाटर पर नौकाविहार में खोना और तुम्हारी पीठ पर नयी
कमीज के कोरेपन की खुशबू के साथ खोकर नये गीत के शब्द पिरोना,,,,
अब वहाँ जाना चाहती हूँ अकेली बिना लिए कोई रिश्ता कोई मित्र बंधु कोई सहेली ',
और बिना आँखे भिगोये डूबना चाहती हूँ नायक नायिका की पीङा विरह मिलन और
कथाके बहाव में ',
अब मैं खुद ही बिलकुल अकेले जाना चाहती हीँ तराई और पहाङ से दूर नौका
चलाती स्वयं ही मुक्त एकाकी बिना किसी तनाव में भरभराकर रोने और सुधबुध
खोने के लिए ',,
बस तुम अपना खयाल रखना सीख लो ',
सुबह दूध के साथ फल ले लेना और हाँ चने रखे है मिट्टी के बरतन में भिगोने
के लिए """"""
आज न क्रोध है न रोष न राग है न अनुराग
बहुत दया आ रही है तुम पर ',
तुम अपनी कमीज आँगन में टँगी मत छोङा करो छत से कभी कभी कभी बंदर भी आ
जाते हैं और ',हाँ रात को खिङकी खुली मत छोञ़ा करो बाहर वाली 'बरसात में
अकसर तुमहें सरदी हो जाती है ',
मुझे बहुत सारे काम करने है ',बहुत लंबी यात्रा पर जाना है ',और अब अकेले ही
वहाँ वहाँ जहाँ जहाँ तुम कभी कल्पनाओं में साथ होते थे हम सपने पिरोते थे ',
आज मैं रोई नहीं हू, ये बात और है कि तुम्हें पता ही कब है कि कितनी ही
रातें मैं ठीक से खाना तो दूर सोई नहीं हूँ ',
मैंने सब सोच लिया है क्या छोङना और क्या ले जाना है ',
बस तुम अब तो सँभल भी जाओ ',शाम की चाय खुद बना कर पी लिया करो आया तो
पाँच बजे बाज ही आएगी और अदरक इलायची लौंग कालीमिर्च बेअनुपात दे मिलाएगी
',
ऐसी चाय भला तुम्हें कैसे पसंद आएगी ',
मुझे अब पुकार रहे है 'पुराने महल हवेलिआ पहाङ नदियाँ समंदर और झरने ',
खुद से किए गए कुछ वादे थे जो अब है पूरे करने ',
शब्दों के सैलाब को अब नहीं पी पा रही हूँ सच कहती हूँ मुझे हर जगह
तुम्हारे साथ जाना था
हर कृति को सबसे पहले तुम्हें ही दिखाना था ',पर
अब मैं उमङते वैराग में बहती जा रही हूँ '
बंधा तो थी ही कब परंतु अब यूँ ऐसे अजनबी दीवारों के बीच भी साथ न होकर
भी साथ रहना नहीं जी पा रही हूँ
मुझे तो चला ही जाना था पहले ही
परंतु तुम अपना खयाल रखना सीख ही नहीं पाये, '
पर अब तो तुम्हें सारे हिसाब खुद ही रखने हैं ',
मुझे वे सारे प्रदेश देखने हैं जहाँ तुम मुझे टकटकी लगाये देखते और मैं
कुलाँचती फूल तोङ लाती तुम टाँक देते बालों में ',
खयाल ही तो था जाने दो खयालों में अब सचमुच मैं बाँध चुकी हूँ सारे सामान
कैमरा कलम कागज चंद यादें और बस ',
अपने शब्दों को स्वर देने के अरमान ',
आज से अखबार बंद कर दिया है तुम तो पढ़ते ही नहीं हो ',
टीवी का रिचार्ज खत्म होने को करा लेना और ',
रात को गैस सिलेण्डर से बंद करना मत भूल जाना 'तुम्हारी मल्टीमिनरल
विटामिन की गोलियाँ रखी है तीसरे नंबर के रैक में 'याद से रोज खाने के
बाद दूध के साथ खा लेना ',
मैं तुम्हारा कुछ भी लेकर नहीं जाऊँगी ',
अगर यात्रा पूरी हो सकी इस जीवन में तो शायद एक बार तुम्हें,
भी लौटकर सुनाउँगी सारे वृतांत पर एक बार मुझे जीना है वहाँ वहाँ सब सब
वही वही जोजो कल्पित था साथ तुम्हारे पूरी पीङा के साथ ',एकाकी और एकांत
"""""बस तुम अपना खयाल रखना शुरू कर दो '::::::::::::::""""""""©®सुधा राजे

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