**बस और नहीं सहा सुना जाता दीदी**

18--06--2013--//6:19Pm//
कहानी **बस और नहीं सहा सुना जाता दीदी**

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क्या हाल कर रखा है कमरे का?
ऐसे ही रखती थी क्या मैं?
आठ बजने को हैं डैडी का दूध नाश्ता और कपङे कुछ भी तैयार नहीं ।ये कल्लू
भी जाने कहाँ मर गया!!!
मेरे जाते ही सब नौकर ही नहीं घर के मेम्बर तक सिर चढ़ गये ।

'नियति' जीजी जब से आयी थी मायके बङबङ ही करती रहती थी। हर छोटी से छोटी
लापरवाही पर । घर की बङी बेटी थी । दो भाई और एक बहिन से बङी ।त्याग और
तपस्या की मूर्ति नियति । तीनों को पढ़ाया लिखाया जॉब दिलायी और जब सब
छोटों की शादी हो गयी सब सैटल हो गये तब अपने इंतजार में प्रौढ़ हो चले
अपने प्यार को विवाह का सादगी से नाम देकर टेक्सास चली गयी थी। वहाँ
चित्रकला की शिक्षा देती थी । जीजाजी वहीं भाषाविज्ञान के शिक्षक थे ।
पूरे सात साल बाद वह भारत आयी थी । अपने गोरे चिट्टे बेटे और सांवली बेटी
के साथ ।

छोटी बहिन पारुल भी बुलवा ली थी कलकत्ते से । हम सब छोटे भाई बहिनों के
बच्चे ज़वान हो चले थे ।क्योंकि सात साल पहले शादी हो गयी थी सबकी । मेरे
पति तो दीदी को जीजीमाँ ही कहते रहते ।
नियति जीजी के बच्चे छोटे थे। हिंदी बहुत कम बोल पाते लेकिन समझते खूब थे।

छोटे भाई ही नहीं बहुयें औऱ भतीजे तक जानते थे बङी बुआ का अर्थ क्या है ।
सब कहानियाँ सुन सुन कर बङे हुये थे कि कैसे माँ को हार्ट अटैक पङा डैडी
का एक्सीडेंट हुआ डैडी सस्पेंड हो गये । घर गिरवी रखकर नौकरी बची । दीदी
ने पढ़ाई छोङकर बीच में ही स्कूल में नौकरी कर ली और चित्रकला की कोचिंग
चलायी । छोटे भाई बहिन पढ़ाये । किचिन से बाजार तक सब माँ के बदले सँभाला
। डैडी शऱाब में डूबे रहते तब बाप बनकर बैंक बाजार बिजलीघऱ डाकघर सब
सँभाला । डैडी को भी राह पर लायी । मकान छुङाया और पूरी तरूणाई निकाल दी
यहाँ तक कि अमेरिका में जॉब करने लगे अपने मंगेतर तक को इनकार कर दिया
विवाह से जबकि दोनों में बचपन का प्यार था। वो तो उनका प्यार सच्चा था जो
कनपटियाँ सफेद होने तक नियति का इंतजार जीजाजी ने किया वरना उनके घऱ की
चौखट पर रोज नये रिश्ते वाले दौलत का अंबार लगाने को तैयार खङे रहते ।
बङी उम्र में शादी और बच्चे होने से नियति की सेहत बिगङ गयी थी । और हवा
पानी बदलने परिवार के बीच भावनात्मक सपोर्ट लेने वह इंडिया चली आयी थी ।
लखनऊ का इंदिरानगर और अवध की नज़ाक़त बहुत बयान करती थी वह टेक्सास में
भी । नियति जीजी की सेहत अच्छी होने लगी
थी । पारुल दीदी हम सबसे छोटी थीं । परंतु सबसे धनाढ्य परिवार में शादी
उन्हीं की हुयी थी । छोटे ननदोई को हूर जैसी बे इंतिहा खूबसूरत पारुल से
बेहद प्यार था हम तो यही देखकर खुश रहते कि ननदें बहुत सुखी थीं । कभी
कभी 'ये'कहते

""-ये सब नियति जीजी की तपस्या पुण्य और त्याग का प्रताप है । हम सबने
जरूर कुछ पुण्य किये होंगे जो ऐसी माँ से बढ़कर हमें मिली । बीमार माँ तो
पारूल की शादी के दो साल बाद ही चल बसी थी । जीजी न होती तो हम न पढ़
पाते न खा पाते । बिगङने लगे थे डैडी तो बस पैसा फेंककर पलटकर भी नहीं
देखते । सच जीजी न होतीं तो हम ही नहीं डैडी भी बरबादी के रास्ते पर चल
पङे थे । """

नियति जीजी डैडी को बहुत प्यार करतीं । या यूँ कहें छोटे बच्चे की तरह
खयाल रखतीं । छोटी उमर से ही माँ की सेहत अच्छी नहीं रहती तो जीजी ने ही
कपङे धोने बटन सिलाई प्रेस पॉलिश खाना नाश्ता दवा और हिसाब किताब पैसे
रखना शॉपिंग सब सँभाल लिया था । चार बजे से रात दस बजे तक जीजी सबसे पहले
जागतीं सबसे बाद में सोतीं । हम सबके बच्चे भी बङी बुआ के कमरे में ही
सोते । प्रारंभिक पढ़ाई भी बङी जीजी ने ही करायी भतीजों की । परदेश गयीं
जीजी तो सब महसूस करते माँ दुबारा छोङ गयीं । परंतु जीजी ऑन लाईन संपर्क
में रहतीं सबके ।
नियति जीजी जितनी त्यागी उतनी सख्त गुस्सैल और अनुशासन प्रिय । डैडी
बूढ़े हो चले थे । उनका हम सब भरसक खयाल रखते । लेकिन नियति जीजी की कमी
तो पूरी हम दोनों देवरानी जेठानी ही क्या पारूल सहित हम सबके छह बच्चे भी
और छह प्राणी हम मिलकर भी नहीं कर सकते । डैडी अब भी बनठन कर रहते और
पूजापाठ के बाद क्लब चले जाते या टी वी देखते रहते ।
कल्लू उनकी सेवा में हम सब हों या नहीं हाज़िर रहता ।
फिर भी जिस दिन से जीजी आयीं तब से ही कभी आरती कभी तुलसी तो कभी सुबह की
सैर कभी लंगर का चंदा तो आज कभी डैडी की सेवा की कमियों पर टोका टाकी ।
बङे भाई साहब को कल ही तोंद बढ़ने पर डाँट लगायी थी ।
पारुल दीदी कम ही आतीं हैं हमारे यहाँ अब । बहुत आलीशान कोठी और सुख
सुविधा कलकत्ते की रौनक । हम सब ही घूम आते हैं बारी बारी राखी दूज के
बहाने । जितना देते हैं उससे ज्यादा विदाई में लौटा देती हैं भतीजों को ।
"अरे तू यहाँ क्या कर रहा है बहुओं के कमरे में चल जरा गाङी निकाल सबको
हज़रत गंज और चिङिया घर होते हुये पार्क घुमाकर लायें वहीं आज सब डिनर कर
लेंगे । डैडी का पैक करा लेंगे । ""
नियति जीजी ने अपने छोटे भाई के कान खीचें ।
"""पारू" चल बहिना डैडी को बोल के आ कि चलना है तो तैयार हो जायें या
यहीं टिफिन ले आयेंगे और हाँ जरा रिवाईटल कैप्सूल देती आना दूध मैंने
ठंडा होने वहीं टेबल पर रखा है ।"

जीजी ने प्यार से पारूल को थपका ।
पारुल जीजी के कंधे पर ढहती हुयी बोली । आप ही जाओ जीजी आपके लिये ही
महान् हैं आपके पिता । मैं तो शक्ल भी नहीं देखना चाहती । मुझे निठल्लों
की सेवा का कोई शौक़ नहीं ।

पारू """""""""""
ज़ुबान सँभाल कर बोल """""!!!!!
ख़बरदार जो डैडी के लिये अपमान का एक भी लफ्ज़ कहा तो!!!

जीजी का हाथ हवा में उठ गया ।

रुक क्यों गयीं जिज्जी!!!
मारो मुझे कि मेरी माँ हो तुम मेरा बाप हो तुम मेरा भाई हो तुम ।

मारो जिज्जी ये चाँटे खाने को तरस तरस जाती है तेरी पारु ।

लेकिन मैं उस शराबी कबाबी निकम्मे बेटियों की खुशियाँ चर जाने वाले जानवर
से कोई वास्ता नहीं रखना चाहती ।
पारुल चीखी । चेहरा ही नहीं आँखें भी लाल । नियति जीजी से किसी की भी
इतनी ऊँची आवाज़ में बात करने की पहली बार हिम्मत हुयी थी । वरना घर ही
नहीं पङौस और दफ़्तर तक में जीजी का बहुत सम्मान था।

तङाक् तङाक् तङाक्

जीजी का हाथ पारुल दीदी के दोनों गालों पर बारी बारी से तीन बार इतनी जोर
से पङा कि कद काठी में नियति दीदी से दोगुनी हृष्ट पुष्ट पारूल दीदी बुरी
तरह लहराती हुयीं दीवार से जा टकरायीं ।

लेकिन ये क्या । रोना पारुल दीदी को था रोने नियति जीजी लगीं ।

पारुल दीदी आगे बढ़ी और चेहरा जीजी के सामने कर दिया । जीजी मारो मुझे पर
जो कहने जा रही हूँ सुन लो । बहुत पुत्रवत् श्रवण कुमार बनने का शौक था न
आपको । बनी भी आप । श्रवण ने तो सिर्फ अंधे माँ बाप को ढोया था । परंतु
आपने तो
जीजी हम सबको भी इन अंधों के साथ ढोया ।
हाँ जीजी तुम रक्षक थीं हमारी तुम न होतीं तो हम सब कीङों की तरह खाये जाते ।
याद है जब मैं टी वी देखने की लत में फेल हो गयी तब आपने हमारा प्रायवेट
फॉर्म वहाँ से भरा दिया था जहाँ डैडी की पोस्टिंग थी?

हाँ तो वहाँ तो तुम सिर्फ एक महीने रूकीं वो भी इम्तिहान देने । वो भी
छोटे मामा को साथ भेजा था मैनें रोटी बनाने ।माँ भी वहीं गयीं थीं ।
""हाँ जीजी तभी तो परीक्षा देने के बाद मामा हर वक्त मुझे साथ रखते ।माँ
तो होना ना होना बराबर था । काश वे पहले मर गयीं होतीं ।

पारु!!!!!!

सुन लो जीजी बरसों से पक रहा मवाद है ।

जब रात को माँ को हार्ट की दवाई देते तो माँ बेहोश सो जातीं । मामा आऊट
हाऊस में और डैडी मुझे अपने साथ सुला लेते । मुझे पता नहीं था जीजी वो सब
क्या करते मगर मैं जब रोकती तो बुरी तरह मार खाती । फिर रोज जबरदस्ती
गोली खिलाते । और माँ सहित जान से मारने की धमकी देते । मैंने एक दिन
मामा से कहा तो मामा को नौकरी से निकाल दिया और मुझे पीटा । माँ से कहा
तो माँ मुझे लेके यहाँ तो चलीं आयीं लेकिन मुझे ही मारपीट कर धमकाकर चुप
रखती रहीं । कि डैडी खरचा नहीं देंगे तो सब भूखों मर जायेगे नियति कितना
कमायेगी । चुप कर सबको पल जाने दे । आपको याद है जीजी एक बार यहीं जब माँ
का हाथ टूटा था?? तो माँ चीखीं थी आपको बुलातीं बचाओ । जब माँ गिरी नहीं
थीं फिसल कर डैडी ने दीवार पर पटक दिया था । नशे मैं मुझे दुबारा कई साल
बाद नींद से घसीटने लगे थे जबकि तबसे मैं आपके कमरे में सोती थी । उस दिन
माँ के पास आपके इंतजार में सो गयी थी । क्योंकि आप सहेली के जन्मदिन की
पार्टी देर से आने वालीं थीं । तब अचानक आप आयीं और डैडी को नशे में
समझकर ले गयीं पकङ कर बंद कर दिया बैठक में । वो माँ को नहीं कुछ कह रहे
थे । माँ ने जो कहा था उसे मेरा झूठा इल्जाम कह कर सचमुच ऐसा कर डालूगा
कहकर मुझे सोते में झिंझोङने चले थे । तब मैंने आपसे कहा था । जीजी आप
ससुराल चली जाओगी तो मुझे भी ले चलना। जब आपने कहा
मैंने तो पहले ही ठान लिया था पहले तुझे ससुराल भेजूँगी । औऱ मैंने कहा
जीजी बस अब नहीं पढ़ना तब एड देकर आपने घर वर खोजा और मेरी शादी कर दी?
तब मैंने कहा था मेरा गठजोङा जीजी बाँधेगी!!! जब मैं माँ बाप के गले लगे
बिना चल दी तब सबने बातें बनायी कि दौलतवाला मिल गया तो मिज़ाज आ गये!!
जीजी नरक की तरह गुजरे ये पंद्रह साल सुख औऱ संपत्ति है । लेकिन जब भी
नमन हाथ लगाते हैं मुझे वे आठ दिन गिजगिजे नाग और चीखें दम घुटना याद आ
जाता है । तेरह साल की ही तो थी मैं । और कुछ ज़्यादा ही मूर्ख । नमन् की
जगह कोई और होता तो नहीं निभा पाता जीजी । यहाँ मैं सिर्फ तेरी सूरत
देखने आय़ी हूँ मेरी धाय माँ । तू दकियानूसी है न बेटी मानकर ब्याह किया
मेरा तो मेरे घर का अन्न नहीं खाती ।
पर जीजी अब तेरी मजबूरियाँ दूर हो गयीं माँ मर गयी । भाई कमाते हैं पारू
की शादी हो गयी देख मैं सचमुच महलों की रानी हूँ । अब ये श्रवण कुमार
बनना बंद कर । आपकी ये असुर पूजा हमसे नहीं देखी जाती । जीजी अब या तो
मेरे घर आना या मुझे बुला लेना । अब नही सुना सहा जाता ""
पारु पारु मेरी बच्ची मेरी लाल
ओहहहह माई गॉड ओहह माई गॉड । मैं विफल हो गयी पारु मैं तेरी रक्षा नहीं
कर सकी । पारु मैं तेरा बङा भाई साबित होने चली थी ।"""
बस करो जीजी । तुम नहीं हुयी विफल । मैं तुमसे कह नहीं पायी । माँ हर बार
रोक देती थीं ।
ये तीस साल से इतना बङा घाव पाल रहीं थीं!!!!
अब क्या करूँ मैं? किसे दंड दूँ? नब्बे साल के बूढ़े को? जो कब मर जाये पता नहीं?
या घुटती रहूँ ये घाव पालकर कि एक बहिन का फ़र्ज़ नहीं निभा पायी ।
ओफ्फ!!!!
मैं तो सोचती थी मेरे सब फ़र्ज पूरे हुये ।
जीजी बिलख रहीं थीं । पारुल दीदी जीजी की गोद में सिर रखे रो रो कर सो
चुकीं थीं ।सुबह दोनों बहिनों के सामान पारुल दीदी की गाङी में रखवा कर
जीजी डैडी के कमरे में गयीं हाथ जोङे और बोलीं -""मैं शायद ही अब दुबारा
मिलूँ । जाने अंजाने सबसे होश या बेहोशी में पाप हो जाते हैं । अंत समय
है भजन करो । बिना गले लगे जीजी चल दीं।
©®sudha raje

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