Tuesday 18 June 2013

साँसों का ।

Sudha Raje
बहुत हुआ अब क्या करना है
आनी जानी साँसों का
बोझ बढ़ाती रही ज़िदग़ी यूँ
ही फ़ानी साँसो का।
आना जाना खेल तमाशा
जीवन रेलमपेल
तमाशा।
नापैदा क्या नामरता क्या
झूठा सारा मेल तमाशा।
एक तमाशा रहा बिछुङना
इन बेग़ानी साँसों का।
बोझ बढ़ाती रही ज़िंदग़ी यूँ
ही फ़ानी साँसों का।
मतलब की है दुनिया सारी
रिश्ते नाते उल्फ़त यारी।
मतलब जो ना समझा टूटा
प्यार बिके जैसे ज्यों गहने सारी।
बिकी साँस गिरवी हस्ती पर बोझ
ग़ुमानी साँसों का।
क्या है एक खिलौना दिल है
दौलत ही सबकी मंज़िल है।

कौन दिलों का दर्द पियेगा
जिसने पिया ज़िया मुश्किल है
"बा-ज़मीर दिल
हो ना पाया "सुधा "विरानी साँसों का
©®¶©®¶Sudha Raje
June 13 at

No comments:

Post a Comment