गाँव में पीपल तले।

Sudha Raje
गाँव में पीपल तले फिर खाँप बैठी
काँप ऐंठी प्रीति
ऐंठी मूछ वाले पंच काले
और गोरे मुँह मरोरे
गुङागुङाते एक हुक्का
कुच उचक्का और छक्का उस तरफ कुछ
बीङियों के मुख सुलगते और लगते धूल में है
लोट आये चोट खाये कई पँखेरू चहचहाते कुछ
अहाते में बँधे डंगर मवेशी शुद्ध
देशी घी लगाकर थम थमाकर
रोटियाँ खाते बुलाते भाग दौङै हाथ
जोङे
सिर झुकाये मार खाये नौजवानों में कई
खीसें निपोरें डाल बैठे खाट तकते बाट अब
मुखिया पधारे
शॉल डारै
गाँव के उङके दुआरे
फुसफुसाते
मान खाते
दमदमाते नूर चेहरे
भाव गहरे
प्राणबक्शी
गिन अपीले सुन दलीलें मौत माँगें प्रश्न
टाँगे
बाँध मुश्कें
जंगलों तक खींच टाँगे
डोर माँगे
और दूजे दिन खबर भी
इचभर भी
एक जोङा गाँव छोङा
खुदकुशी की
मर गया
आतंक ऐसे डर गया
खाँप बैठी आज फिर पीपल तले
हर दिल हिले
©®¶©®¶SudhaRAJE
DATIA--BIJNOR
Jan 28

Comments