Sunday 16 June 2013

मत कुरेदो घाव

आप अपने आपको बुद्धि जीवी मानते हैं
तो ज़ख्म क्यों कुरेदते है????
अभी एक मित्र की पोस्ट पढ़ी ।
सोचा वहाँ कमेंट कब डिलीट हो जाये इसे
कह ही डालूँ ।
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मत कुरेदो सूखते घाव दोस्तो
नफरतों का इतिहास बङा लंबा है
दोस्तो किसने किस तरह के और कैसे घाव
खाये है ये बार बार मत दुहराईये ।
आप हम सब जानते हैं कि कितने फर्क और
नफरतें कहाँ किन लोगों में कैसे कैसे पल
रही है ।
छोटी छोटी घटना मत कुरेदो जो भूल सके
तो भूलने दो चुन्नियाँ अर्थियाँ चीखें
दीवारे पलायन खंज़र बारूद और शरारे ।
न मिलें प्यालों से प्याले दिखावे
को ही सही एक कतार में चलो एक कुँयें से
पानी भरकर तो पी लें!!!!!
खाना पीना क्या ज़रूरी है एक
ही थाली में हो!! ।
एक दीवार के साये में पढ़ तो लें!! ।
न तेरा अल्ला वो माने न तू उसका ईश
मान पर दोस्ती तो तेरी और उसकी है!!!
अल्लाह और ईश्वर दोस्ती करेंगे
या नहीं ये उन पर छोङ दो!!!
वो तेरे घर बङे माल के कबाब
कोरमा बिरयानी पाये हलीम न खाये
तो बुरा मत मान ।
वो
अपने भाई के घर भी तो मच्छी पैटीज
आमलेट शिकार नहीं खाता ।
वो जब नहीं खाता लहसुन प्याज माँस
मछली तो उसे
परेशानी होती होगी दोस्त!!
उसकी बीबी और बेटी भी उसका अंडे
वाला केक नहीं खाती । न ही सिगरेट
पीने देतीं हैं कमरे में बैठकर ।
उसका बेटा उन गिलासों से
कभी पानी नहीं पीता जिनमें वह शाम
को ज़ाम बनाकर पीता है ।
बेटी भूले से भी उस हांडी में आलू
नहीं उबालती जिसमें दादा जी के लिये
मछली पकती है और ताऊजी के लिये झींगे
तले जाते हैं जिन कङाहियों में
उसकी भाभी माँ और दीदी उन
कटोरियों को अलग रख देती है
धो माँजकर जिनमें उसके दोस्त कबाब
बिरयानी माँस के कोफ्ते खाते हैं ।
सहेली के साथ वह हलुआ तो खाती है
लेकिन कबाब नहीं ।शीर और
सिवईयाँ तो खाता है वो । लेकिन जब
हलीम की बात आती है तो वह उसी तरह
दूसरी टेबल पर बैठ जाता है जैसे
पापा बचपन में फ्राईड फिश
खिलाना चाहते और वह दूर भाग
जाता था । वह हर रोज गाय
को पूजता है और वो सोचकर परेशान
हो जाता है कि किस बरतन में गाय
पकाकर खायी गयी होगी ।
परेशानी समझने की कोशिश करो ।
कल ही रसोईये अहसान चाचा ने हलुआ
मांडे बनाये जर्दा बनाया डटकर
खाया तो है उसने । तुम वह सब चीजें खाते
हो जो वह खाता है । लेकिन कुछ चीजें वह
तुमसे परिचय होने से पहले से
भी नहीं खाता ।
इस बात को तूल न दो वो पापा के
गिलास में पानी नहीं पीता लेकिन
पापा को खून दिया था ।
माँ उसका अंडाकेक नहीं खाती पर जान से
प्यारा है वो उसे ।
समझने की कोशिश कर तू मत लगा रंग ।
लेकिन इससे नफरत कब बढ़ती है!!!
दोस्ती और प्यार तो दिल के जज्बात है
। पता है नानी जब हरे चने का बूँट
की निमोना खाती और नाना हिरण
तो कहते चिढ़ा के घासफूसखोर ।
तूल न दो विभेदों को बस समानतायें
तो देखो कितनी हैं!!!
एक नागरिकता एक मुल्क वही अन्न
पानी हवा मिट्टी सङके गाँव
नदी तालाब पेङ कपास रेशम!!!
चल घर चल आज अदरक़ वाली चाय
पीनी है बाजी के हाथ की चाचा खजूर
लाये हैं मुनियाँ बता रही थी ।
चल फिर शतरंज खेलेंगे ।
दोस्ती दिल से जज्बातों से पगले ।
सामान तो बहिन भाई भी बाँट लेते हैं ।
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sudha Raje
सुधा राज

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