Tuesday 18 June 2013

बस मैं क्यों।

अज़नबी ग़ैबी शहर में अब
तलक बस मैं ही क्यों
आज तक इस रहगुजर पै बेशज़र
बस मैं ही क्यों
मैं ही क्यों बेज़ार सबसे बे
नज़र बे दार गुम
रंज़ो ग़म खुशियाँ मुरव्वत बे
असर बस मैं ही क्यों
हर तरफ निस्बत
शनासा लोग कितने
आशना
फिर
यग़ाना यक़ता तन्हा उम्रभर
बस मैं ही क्यों
दिल ये क़ाफिर
जां नमाज़ी रूह ये
आतशपरस्त
अक़्ले अज हद ये किताबी
बे ख़बर बस मैं ही क्यों
क्या रखा है मेरे पहलू में बरफ़ आतश
ज़हर
जलता जमता मरता साक़िन
घर बदर बस मैं ही क्यों
काँच के वे ख़वाब लगते थे कभी ना खोयेंगे
हाथ में टूटे चुभे ख़ूने ज़िग़र बस मैं ही क्यों
क्या कोई मेरे
सवालों का ज़वाबी भी कहीं
है सुधा शायर वले
बाग़ी मुहाज़िर मैं
ही क्यों
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Sudha Raje
Dta ★Bjnr
Mar 10

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