Tuesday 18 June 2013

कैसे इतनी व्यथा सँभालेबिटिया हरखू बाई की

कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखूबाई की
अम्माँ मर गई परसों आ
गयी जिम्मेदारी भाई
की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की
आठ बरस की उमर
अठासी के
बाबा
अंधी दादी
दो बहिनों की पर के
करदी बापू ने जबरन शादी
गोदी धर के भाई हिलक के
रोये याद में माई की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की
चाचा पीके दारू करते
हंगामा चाची रोबै
न्यारे हो गये ताऊ चचा सें
बापू बोलन नईं देबे
छोटी बहिना चार साल
की
उससे छोटी ढाई की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखूबाई की
भोर उठे अँगना बुहार कै
बाबा कहे बरौसी भर
पानी लातन नल से तके
परौसी देबे लालिच कर
समझ गयी औकात
लौंडिया जात ये पाई
पाई की
कैसे इतनी व्यथा सॅभाले
बिटिया हरखू बाई की
गोबर धऱ के घेर में
रोटी करती चूल्हे पे रोती
नन्ही बहिन उठा रई
बाशन
रगङ राख से वो धोती
बापू गये मजूरी कह गये
सिल दै खोब
रजाई की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की
भैया के काजैं अम्माँ ने
कित्ती ताबीजें बाँधी
बाबा बंगाली की बूटी
दादी की पुङियाँ राँधी
सुनते ही खुश हो गयी
मरतन ""बेटा ""बोली दाई
की
कैसे इतनी व्यथा सँभाले
बिटिया हरखू बाई की
जा रई थी इसकूल रोक दई
पाटिक्का रस्सी छूटे
दिन भर घिसे बुरूश
की डंडी
बहिनों सँग मूँजी कूटे
दारू पी पी बापू रोबै
कोली भरैं दुताई की
बाबा टटो टटो के माँगे
नरम चपाती दादी गुङ
झल्ला बापू चार सुनाबै
चाची चुपके कहती पढ़
छोटी बहिन
पूछती काँ गई
माई रोये हिलकाई की
©®¶¶©®¶Sudha Raje
Datia --Bij

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