संस्मरण: सुधा विषपायिनी

हमारा एक कुत्ता है "बेहद काला और पतला लंबा सुन्दर कुत्ता ,बड़ी कठिनाई से बचाकर पाला ,अब इतना स्मार्ट हो गया है कि परिवार का मूड तक भाँप लेता है ,एक दिन गायब हो गया हम सब उदास रुआँसे और दुखी फिर भी रात में आवाज लगाते नाम लेकर कहीं सुन ले ,तीन दिन बाद ढेर सारे विजय चिह्न लेकर हाजिर ,एक गोरी कुतिया साथ में और चूंकि एक बड़ा पूरा कक्ष ही हमारे कलूटे के लिये निर्धारित है बगीचे में सो भूरी को गड्ढा खोदकर नरम मिट्टी में बिठाकर कलूटा खुश हमें बुलाकर दिखाने ले गया भाव एकदम समझ आता है कि वह कह रहा है ""ये मेरी भूरी है इसे यहीं रहने दो ""भूरी तो नहीं रहने दी परंतु रोटी जरूर द्वार पर डाल दी गयी भूरी फिर चबूतरा छोड़कर कहीं नहीं गयी ,कलूटा बगीचे की चौड़ी बरसाती नाली में मुँह डालकर भूरी से बतियाता और भूरी बाहर कहीं भी घूमे रात को वहीं बाहर नाली पर आ टिकती ,आज तक ये मैत्री बदस्तूर जारी है ,कलूटे को कभी दूसरी के साथ नहीं देखा भूरी को तंग करने वाले कई काट चींथ डाले दरवाजे पर अब भूरी का राज है ,हम लोग कहीं आते जाते भूरी बड़ी दूर तक पीछे जाती ,समझ नहीं आता बिन पाले पल रहे इस जीव का करें क्या और मन नहीं करता कि हटाने को मारे पीटें ,बहुत दुत्कारा कई दिन रोटी नहीं दी परंतु घूम फिर कर भूरी चबूतरे पर ,,,,भूरी

घर में कभी आ जाती है फिर धकेलने हटाने पर भी नहीं जाती और कलूटा तो अगर उसे कोई पीट ले पिट लेता है भूरी के लिये डांट देखते ही उँआने रोने जैसी आवाजें निकालता है

ये शब्दशः सच है ,पहली बार हमारे सामने जब भूरी को लाया तो पैरों के चक्कर काटता रहा पूँछ हिलाकर फिर आगे भागा यह उसका इशारा होता है पीछे आओ ,गये तो भूरी पूरी तरह साष्टांग मुद्रा में लोटने लगी ,नरम मिट्टी का गड्ढा बना कलूटे ने ,
और समझा दिया कि लो इससे मिलो ये भूरी है मैं इसे लिवाने गया था
,,,,एक लंबी कहानी सत्य कथा वैसे कलूटे का नाम यूरो है ©®सुधा राजे

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