लेख:दोनों ही मजदूर
पति पत्नी दोनों मजदूर
लेकिन पति को महीने में कभी पंद्रह कभी बीस दिन ही काम मिलता है 'सो सुबह आठ से शाम चार तक '
और अगर मनरेगा का है या नरेगा का तो सुबह आठ से दोपहर एक या दो बजे तक बस
फिर बीच बीच में "सुस्ताने के इंटरवल और बीङी पानी रोटी कमर सीधी करने की लोट लगाई ।और घर आते ही रोटी खाकर यार दोस्तों के साथ 'हट्टी पर या पान की दुकान या पीपल तले ताश चौपङ की चौपाल पर '
देर रात घर आकर चार गाली चार सौ चालीस ताने और दस बीस थप्पङ जूते लाठी फजीहत कभी पत्नी कभी बच्चे
सहमे और डरे
चीख पुकार में ऊँची आवाज में रह जाती है रोती हुयी लङकियाँ और खुद को कोसती हुयी सास बहू ।
दोनो ही मजदूर
किंतु
स्त्री उठती है भोर कभी चार कभी तीन बजे ही
नित्यकर्म के लिये मुँह अँधेरे जाना और फिर आकर झाङू गोबर ढोर बच्चे और बरतन करना राख मिट्टी रोटी चटनी साग अचार कुछ बनाकर सबके लिये रखकर '
दरांती पल्ला बोरी लेकर निकलना
घऱ से दूर चारा घास लेने गन्ना छीलने और बेलें निराई रोपाई करने दोपहर में एक घंटे की विराम में ',बीन लेना कंडिया लकङियाँ फलियाँ और बेर सरसों चौलाई के पत्ते बच्चों के लिये "
फिर लग जाना काम पर
और मजदूरी बराबर कहाँ?
बच्चों और स्त्रियों को पौना ही मिलता है न!!
साँझ घर आते सिर पर गट्ठर
कमर में चार पैसे और छाती में हुमकता दूध
बङकी के पास छोङ गये छुटके के लिये
और तीन खिलंदङों के लिये बेर मकोर जामुन जंगल जलेबी
सास के सरसों का साग और बूढ़े ससुर के लिये दर्द सेंकने को आक अरंडी महुये के पत्ते ।
धुँधाता चूल्हा भरी आँखें रीते घङे और सरकारी नल या कुँये से जल
प्यासे ढोरों को पानी
दूध दुहकर बेचना
और कुट्टी काटते पङी ठेठों की निशानी
रोटियाँ कम है इसलिये वह लेगी दो और माँड पियेगी जादा
पेट की भूख से बङा है पेट के फलों की जरूरत का तक़ादा
'देर रात फिर वही बदबू और मजदूरी छीनने की बात
,कब तक डरती
अब बोलने लगी है चूङियों से छिली पङी काँटों में खेलती दराँत चलाने वाली कलाई
मुहल्ले वाले बुराई करें तो करें
बालकों के साथ अब बेखौफ है,
मजदूरनी
जुबानज़ोर लुगाई
बेशक घर मरद का और रोज कुछ नहीं उसका
बेवजह रोज जाती है मारी पीटी गरियाई .......
जी 'जब दोनों ही अध्यापक या दोनों ही डॉक्टर या दोनों ही इंजीनियर या 'नेता 'या दुकानदार 'यथा पार्लर बुटीक आदि के हैं तो भी """""""हश्र अकसर यही ''''''काम में हाथ बँटा भी लें तो भी ""भावना तो यह तेरे पर अहसान ''की ही रहती है '''और मानसिक अटेंशन वह तो "स्त्री पर ही '
भोर से देर रात तक हाङतोङ मेहनत करती है फिर भी लोग सच कहते हैं दबती नहीं
'भूरे की लुगाई
©®सुधा राजे
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