गद्यचित्र संस्मरण~:माँ से सुनी गुनी

देखा जाये तो चरित्र
की मारक पाकीजगी
की धारणा
मध्यवर्गीय अहंकार
की देन है
क्योंकि टोटम और
परंपरा में गरीबों में चादर
डालना
कराव करना
और छूट
जाना दूसरा करना
पुनर्विवाह
कोई नयी बात नही
किसी का घर बिना बैल
और बिना घरनी के
नही चलता
ये धारणा रहने के कारण
त्यक्ता और
विधवा दोनो
गरीब वर्गो में ग्राह्य
रहीं
इसीलिये उनमे कठोर
तीजा
करवा चौथ
गणगौर
वटसावित्री
सौभाग्य सुंदरी
और तमाम प्राण दाँव पर
लगाने वाले व्रत
भी प्रचलित नही रहे
ज्यों ज्यो उनमे
सवर्णों की नकल बढी धन
पद हैसियत बढी
ये चोंचले भी होने लगे
लेकिन
आज भी सार परंपरा नही

गणगौर पर
कही जाने वाली एक कथा
शिव पार्वती धरती भ्रमण को निकले
जाकर गाँव के चौरे पर बैठ जाते
देखते कि गाँव के गङरिये पास के सब गाँवो में खबर कर रहे है
नान्ही जात ने सुनी धूरे पाँवन जो जहाँ थी दौङ लगा दी
बेर मकोर महुआ जो बन पङा ले आये
गौर ने खुशी खुशी खूब सुहाग बरसाया
सब हमेशा सुहागिन रहने का आँचल भर भर
वरदान ले गयी
मोटी जात ने सुनी
गहने कपङे साजे
पिटारू भर पकवान पकाये
हाथी घोङे साजे थाल ले ले साँझ  तक आ पायीं
गौरा के मन संकोच हुआ कि भूखी प्यासी महिलाओं के लिये सुहाग रंग  तो बचे ही नही
बस
अपनी कनिष्ठिका चीरकर  लगीं सब पर छिङकने
अँधेरा हो गया था किसी पर पङा किसी पर नही
लेकिन जिस पर पङा चोखा पङा
गौरा का रक्त जो था
गौरा बोली
फिर आऊँगी इसी दिन
जो जो
रह गयी उनको देने
गणगौर पूजियो
कहकर महुये के पेङ पर से
अंतर्ध्यान हो गयी
बङा कठोर तप है मोटी जात की बेटी  का

ये अमीर
झूठी शान के लिये हमेशा सच का खून करते है
©®माँ की गोदी में सुनी लोरी और कहानियाँ
©®SUDHA  RAJE

Comments

Popular Posts