लेख: लव प्रेम स्त्री विवाह और जे हा द

लव जेहाद
को रोकने के लिए तुम बेटियों का कत्ल कर सकते हो ,उनको लंबी दीवारों में बंद कर सकते हो ,उनके कपड़े मोटे बड़े ढीले और कई परतों में बढ़ा सकते हो ,उनको सख्ती से मार पीट हिंसा से त्राहि त्राहि करवा सकते हो ,पेट में क़त्ल कर सकते हो ,
क्योंकि तुम्हारी सारी सच्चाई अच्छाई और चरित्रवादिता का बोझ अब ,केवल "देवी बना दी गयी स्त्री के कंधे पर टिका रह गया है
,
किंतु
,
तुम उसके लिए संरक्षण केयर प्यार सम्मोहन मोहकता प्रेम रोमांस नारीत्व के लिये साज सँवार श्रंगार "मैं हूँ न "का अटल विश्वास ,नहीं बन सकते ,
,
अब
वह जल कर मरे तो सती ,जिंदा जलती रहे जीवन भर तो ,सौभाग्यवती ,अपनी मरजी से वर चुन ले तो मुँहजोर ,परजाति में कर ले विवाह तो चरित्रहीन ,पर धर्म में कर से विवाह तो वासना की अंधी पुंश्चली ,न करे विवाह जीवन भर बाप की देहरी पर बैठी रहे तो छाती का बोझ ,
अकेल3 रहकर अपना जीवन यापन खुद करे तो अभागन ,
,
,
एक ही शर्त पर उसे "हिंदू रहना है "
खुद कमाओ ,परन्तु सेवा जीवन भर पति की पति के परिवार की करो और विवाह के नाम पर जीवन भर के लिए मोटी रकम ,भर भर कर सामान कपड़े धातुएँ सोना चाँदी बर्तन गहने भेंट ,और फिर सारा जीवन सिर नीचा करके सहन करती रहे कि अहसान किया शादी करके ,
क्योंकि हर तीसरे पुरुष को यह कभी न कभी कह ही देने की आदत है कि उसके लिए तो और बड़ी रकम बड़ी गाड़ी बड़े उपहार वाले राजी थे ,
दामाद
बनकर जीवन भर खून पीता रहता है जँवाई पत्नी के परिवार वालों का ,
नहीं पी पाता तो ,
स्त्री का लहू सुखाता रहता है ताने मार मार कर ,
चाहे नामर्द हो या यौन रोगी ,चाहे मानसिक निर्बुद्धि हो या धूर्त ,पति परमेश्वर बनकर वह हक समझता है स्त्री के दिमाग दिल देह ही नहीं मायके वालों तक के खोपड़ों पर हुकूमत चलाना ,
नहीं
चल पाती तो ,
स्त्री सती नहीं ,
अब कलियुग है ,
भाई लड़कियाँ बिगड़ रहीं हैं ,गैर जाति गैर मजहब वालों की तरफ आकर्षित हो रही है कपड़े खराब पहनती है खराब खाने पीने लगी हैं ।
कितने परिवार है जिनमें ,
बेटी वांछित संतान है ?
कितने घर हैं जहाँ स्त्री को शराबी नशेड़ी जुआरी भँगेड़ी गुटखा खाऊ ,बदबूदार गंदे रहन सहन सोच विचार गाली बकते परस्त्री पर चुहलियाते पुरुष नहीं सहने पड़ते ?
बेटियों के सामने अश्लील बोलते ,हरकतें करतें ,गाली बकते शराब पीकर गंदी हालत में उलटियाँ करते बेटी की माँ को पीटते मारते अपमानित करते पुरुष ,
कैसे ,
यह सोच सकते हैं कि उनकी बेटी में,
अपने होने वाले जीवन साथी के रूप में ""बाप जैसा पति ""सपने तक में बर्दाश्त हो सकता है ?
,
संस्कारवान चरित्रवान सती साध्वी स्त्रियों की फ्रेम बनाकर हिंदू स्त्री के भरोसे धर्म पूजा पाठ व्रत उपवास यज्ञ हवन दैनिक पूजा चरित्र के उच्च प्रतिमान छोड़ने वाला ,
हिंदू पुरुष
लव जेहाद
के बारे में केवल लड़कियों पर ही ,कीचड़ डालकर बात समाप्त कर देता है ,
प्रेम
सबको चाहिए ,
तुम मार कर जमीन में दाब दो तो भी ,स्त्री के भीतर से प्रेम को समाप्त नहीं कर सकते ,
जो
प्रेम के लिए जिंदा जल सकने वाली जाति है स्त्री की है ,वह ,प्रेम के लिए बुरका भी पहन लेती है तो दोष केवल स्त्री का ही क्यों ,
तुम नयी पीढ़ी के लड़को !
अपने दिमाग में झाँको "नर "होने मात्र का बेनीफिट चाहते हो ?
पुरुष नहीं बनोगे ?
नर होने भर से तुम्हें सावित्री पत्नी और 50लाख दहेज मिल जाना चाहिये ,फिर वह दिमाग दिल देह से जीवन भर हर दिन करवाचौथ पूजती रहे ?
अरे
बनो तो ऐसे कि ,परंपरा धर्म समाज और संस्कार वश नहीं हृदय के कोर पोर कोश होश से ,लड़की तुम पर मर मिटे ।
नर नहीं पुरुष बनना पड़ेगा ,जो स्त्री को सुरक्षा ,नरमी से हर पल साथ होने का अहसास ,तन केवल कब्जे करना नहीं मन को छूने वाली बात कर सके ,
कहीं नहीं जायेंगी लड़कियाँ ,
अखाड़े जाओ ,जिम जाओ ,दौड़ो कूदो ,दंड लगाओ ,उठक बैठक करो ,कमाओ और स्त्री को यह भरोसा दिलाने लायक बनो कि तुम उसके लायक हो शकल से अकल से घरबार से हृदय से मन से तन से जीवन के हर आयाम से ,
मार तो सकते हो ,जीवन दे पाओगे
?
लव .....के खिलाफ तो खड़े हैं ,
परन्तु लव करने लायक ,
नहीं बन सकते ,
,
सत्य तो यही है बंधु कि ,

हिंदू
ने स्त्री से अनुसुईया पद्मांबा सीता सावित्री सुकन्या ही माँगी ,
,
,
वह तो स्वयं में नर होने भर की कीमत स्त्री से वसूल रहा है ,
,
अपवाद को छोड़ दें तो ,
,
सिवा मौलवियों के ,
हमें मुसलिम लड़कों की नजर कभी गंदी नहीं लगी ,
,
वे लोग जमीन पर देखकर बात करते हैं ,
स्त्री को बोझ नहीं उठाने देते ,
एक लड़की की पैदाईश पर जनम भर ताने नहीं देते ,
लड़की के बाप की जिम्मेदारी कपड़ा दवाई मिठाई खाना पहनाना इलाज ,
आकर्षक ,
लगते रहना मुसलिम स्त्री का शौक ही यूँ है कि ,"औरत "होने का उसको लाभ मिलता है ,
,
हिंदू
विवाहिता को आग में जलाकर सती व्रत की पराकाष्ठा परीक्षा लेता रहता है ,
कुमारी के पाँव भले पूजता हो ,
कन्याजन्म पर बिलबिलाता भी है ,लड़की की माँ को जो सहना पड़ता है बस वही जाने ,
हर पल औरत की जिम्मेदारी मुसलिम समाज आगे बढ़कर उठाता है ,
,
किंतु
प्रेम ,हिंदू स्त्री का हक नहीं समझता हिंदू ,
वह तो
देवी ही चाहता
दे दे दे ,
,
स्त्री को भी कुछ चाहिए ,
यह उसकी जिम्मेदारी नहीं ,
,
लव जेहाद को हमने गौर से करीब से देखा है ,
,
लड़के जिम जाते हैं ,
बाईक पर लगातार रुपया फूँकते हैं तनिक सी ,परिचित लड़की को अपरिचित को भी कोई काम पड़ जाये ,यहाँ तक कि गैर मज़हबी स्त्री की भी ,मदद कर देते हैं ,
स्त्री के लिए ,सीट देना ,बाजार में पहले स्त्री को निकलने देना ,
,
महिला मित्र बनाने के लिए भी बहुत नरम नाजुक कोमल भाव से ,उसके मन को रखते हैं ,
,
इधर हिंदू सोचते हैं बस ,
नारंगी पहना या कोट पैंट हो गए 60लाख के ,
नीलामी को तैयार ,
,
अरे प्रेम तो प्राकृतिक है ,
,
बेल के पास बरगद हो या पीपल वह तो चढ़ेगी सहारे को ,
,
स्त्री को सहारा संरक्षण देना हिंदू अभ्यास नहीं ,
अब
हर स्त्री तो ,
च्यवन की पत्नी बनकर जिंदगी नहीं काट सकती न ,
,
तो कुछ हाल देखना भी होता है ,
हरे पेड़ पर लिपटी बेलऔर
सूखे झाड़ पर पड़ी बेल का हाल देखें ,
,
हिंदू लड़की ,
मोहित हिंदू लड़कों पर हों तो कैसे ,
,
संस्कार की आग में तपी लड़कियाँ हर कोख से तो नहीं निकलेंगी जब बाप ही दारू में टुल्ल आकर माँ को माँ बहिन की लात गाली देकर ,
खटिया पर औँधा पड़ जाये रोज ,
मजदूरी के दम पर बच्चे पालती स्त्री को देख कर पली लड़कियाँ ,
नरवादी हिंसकों से भीतर ही भीतर जुगुप्सा न कर बैठे तो क्यों नहीं ,
,
कभी विवाहित  मुसलिम स्त्री की केयर
देखी ?विवाहित हिंदू स्त्री तो बस घर में पड़ा सामान रह जाती है ,
,
न हर स्त्री अरुंधती हो सकती है ,
न हर पुरुष यह उम्मीद रख सकता है कि ,
नर होने भर से वह स्त्री के दिल पर राज करता रहेगा ,
,
शकल देखो शऊर देखो ,
,
कौन चाहेगा उस पर रीझना ,
,
न मेहनत न हुनर न योग्यता ,
न कुरबानी का दम ,
बस नर हैं तो दहेज का बाॅण्ड हैं हम ,
सड़क पर पचासेक लड़कियों का बाॅयफ्रैंड बनने का ढोंग करते लड़कों को हकीकत में ,एक बूढ़ी बेवा तक "लाईक नहीं करती ,
बाप
मजबूरी में बेढ़ेगी शादी कर देता है सो ,
धरम निबाह लेतीं हैं स्त्रियाँ हृदय को जलाकर ,
,
लव जेहाद की जड़ में केयर प्यार सुरक्षा सम्मोहन रीझने की वही मानवीय दुर्बल प्रकृति है ,
,
हिंदू स्त्री मात्र के बल पर संस्कार मर्यादा सभ्यता धर्म की ठेकेदारी नहीं चलायी जा सकती ,
हिंदू लड़कियाँ स्वभाव से वीरांगना हैं ,हालात से पुरुषोचित शौर्य से लड़ना जीतना उनकी प्रकृति है और हर क्षेत्र में हिंदू लड़कियाँ सदियों से यह साबित करतीं रहीं हैं
किंतु
कटु सत्य है यह कि विवाह ,टर्निंग पाॅईन्ट साबित होता है उनकी जिंदगी के नकारात्मक सकारात्मक को बदलने में,
जिस निष्ठा समर्पण त्याग एकात्मवादी सतीव्रत की चाहत हिंदू पुरुष करता है ,विवाहिता से ,आज दहेजमंडी का नीलामी पर खड़ा वर उसका हकदार नहीं है कदापि ,
वह प्रेम के लिए बलिदान नहीं दे सकता ,लालच नहीं त्याग सकता अपने भुजबल से अपनी गृहस्थी नहीं चला सकता गर्भवती को भयमुक्त नहीं कर सकता कि संतान उसकी भी है लड़की हो या लड़का ,आराम केयर शांति सम्मान नहीं दे सकता आर्थिक गारंटी कोर्ट ने भले दे दी हो परन्तु हिंदू स्त्री का संस्कार समाज कोई हक देने को तैयार ही नहीं रह गया ना मायके वाले विवाह के बाद जिम्मा समझते हैं न सासरे वाले ,
करेगी तो खायेगी ,नहीं तो कूटी जायेगी यही सच है उसकी जिंदगी का ।
प्रेम तो पशु पक्षी भी चाहता है उसी कपट में जेहादी सुदर्शन लड़के फायदा उठा लेते हैं ।

इस पर आठ साल पहले लंबा खर्रा लिखा था कि .......शकल तो देखो कौन फिदा होगी !!!पसलियाँ निकलती हुयीं ,गाल पिचके ,मुख में गुटखा पेट में दारू दिमाग पर हावी नरवादी अहंकार ,नुक्कड़ों पर फटी पैंट खाली जेब खड़े लड़की देखते ही लार टपकाते ........घिनौनी शकल के नाटे कमजोर अर्दधपुरुष या ......मोटे फूहड़ बेढंगे लालसा से भरे घमंडी ,
,
,
नगर में लौंडिया पटाने को आतुर ,
घर में दहेज को लपलपाते ,
स्त्री को बाँधना तो चाहते हैं ,
परन्तु मारपीट कर ,गरियाकर ,कुरूप करके ,
उसके बाप से धन वसूल करके ,
उसको जीवन भर गुलाम बनाकर ,
उसकी कमाई खाकर ,
बेटी बहिन बुआ बीबी माँ सबको रौंदकर मर्द बनने का रौब दिखाकर ,
,
,जबकि
दूसरी ओर लाख शरीयती बंदिशें हों हमने देखा है ,
नाजुक नरम भावना से हर छोटी से छोटी फरमाईश के लिये कड़ी मेहनत करता पुरुष ,हर तरह से आराम श्रंगार ,खाना पहनना ,तरह तरह के उपहार और ,
हर
बात पर साथ खड़ा ,
अपवाद ही हैं जिनमें क्रूरता है ,
,
बंद रखते हैं तो कूलर पंखा एसी टीवी पानदान मेकअप मनोरंजन ,तनिक सी आह उह पर ही चिकित्सा ,
,
कभी मजदूरनी मुसलिम औरतें देखीं हैं खेतों में ?
,
या तो बड़ी पक्की जाॅब पर होंगी या परदे में घर पर
परदा कराते हैं ,तो हर तरफ से पूरा ध्यान भी रखते हैं ,
एक भी लड़की व्यर्थ का बोझ नहीं समझते ,
सात बेटीं हों तो भी ,
कमाकर पुरुष हर तरह से क्रीम लिप्सटिक कपड़े जेवर पैसा ईदी दस्तूरी से भरा रखते हैं ,
ससुराल में बार बार भेंट करने जाते हैं तनिक कष्ट हो तो चढ़ बैठते हैं शौहर पर बाप भाई ,
,
हमने तो इस बात पर लड़ने आई औरत देखी कि उसका शौहर बालों को पसंदीदा तेल बदन के बढ़िया साबुन और जुमे को बढ़िया इत्र पकाने को बढ़िया किचिन नहीं दे रहा था,
,
हाय हाय मेरी लौंडिया के सूखे बाल ,पुराना बुरका बूढ़ियों की तरह सूखे होंठ खाली पर्स ,..........सुबूत हैं हमारे पास ,
,
लड़के कैसे नरमी से पेश आते हैं कभी गौर करना ,उस तरफ सोच है खरचो मैं  हूँ न कमाने को ,इसतरफ सोच है ,"क्या तेरा बाप धर गया था "
हर दुख में मायके को निहारती हिंदू स्त्री से बाप के बूढ़ा होते माँ के मरते मायका भी किनारा कर लेता है ,
प्रेम न देखे जात और पाँत
भूख न जाने जूठा भात ,प्यास न जाने धोबी घाट ,
कभी सोचना कि ,द जूलियस सीजर नामक उपन्यास में जब ब्रूटस कहता है
"हे ईश्वर मुझे मेरी पत्नी के लायक बनाना "
तो उसका मतलब क्या है ,
जिन आदर्श के अंगारों पर पत्नी को चलाना चाहते हो उन पर अपनी हथेली भी कभी उन नारीवाले पैरों के नीचे रखने का साहस पैदा कर सकते हो ??
प्रेम पर बस तुम्हारा ही हक होगा ~

.....प्रेम बिक रहा है "वर"के रूप में पहले दहेज दो ,,,,,तो प्यार मिलेगा !!!!!यदि कहीं लड़की वालों को धन देकर विवाह किया हो तो ,,,,,,मोल की लुगाई का अपमान हर दिन ,
,
,
प्रेम की कीमत हिंदू समाज ने "स्त्री "पर रख दी है ,
बाप में दम हो तो योग्यवर खरीदे ,
वरना
लड़की के पासंग भी न हो उस "नराधम "के पल्ले बाँध दे ,
,
हिंसा से दो चार परिवारों की बेटी का मन "पुरुष"पर भरोसा ही नहीं करता ,
,
वह स्वयं ही पुरुष बन जाती है ,

पुरुष ,
का पुरुषत्व नर देह होकर स्त्री देह को गुलाम बना लेने भर में नहीं है ,
यह युवा पीढ़ी नहीं समझ पा रही है ,
स्त्री हो या हिरनी ,
सुरक्षा की गारंटी पहली तलाश होती है

©®सुधा राजे

©®सुधा राजे

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