लेखमाला: पद्मावत के बहाने, भारत के घाव पिराने

बंधु भारत में निन्यानबे प्रतिशत कुरीतियाँ इसलामिक साम्राज्यवादी आक्रमण के बाद स्थापिक काले अंध युग की ही देन हैं
सती कर दो सती हो जाओ सती जबरन कर दो ये सब वैदिक युग में कहीं नहीं दिखता ,,त्रेता में भी नहीं ,,न दहेज था ,नवदंपत्ति को उपहार नयी गृहस्थी बसाने को सब देते थे ,
मुसलिम अपहर्ताओं से अपनी मान मर्यादा बचाने के लिये सिन्ध के राजा "दाहर के राज्य की स्त्रियों ने पहले पहल युद्ध भी लड़ा और बाद में आत्माभिमान की रक्षा के लिये जौहर कर लिया ,,अब्दाली से भी पहले लोग ,अरब से आये औरतें और भोजन कपड़े जेवर ले गये लूट कर ,और एक तरह से इस लूट को धार्मिक संरक्षदण प्राप्त था खलीफा को लूट का बड़ा हिस्सा देते जाओ जो मर्जी चाहे दूसरे धर्म  के लोगों पर अत्याचार करो ,,,,..बलात्कार गैंग रेप जैसी कल्पना तक नहीं थी वैदिक भारत में ,,और इस तरह के अपहरण बलात्कार और लड़कियाँ चुराने के डर से लोग बाल विवाह पर विवश हो गये ,,,.,.,विधवायें सती होने लगीं ,,,,,और स्त्रियों ने हर बड़े युद्ध से पूर्व स्वेच्छा से जौहर किये ,,ताकि पुरुष जी तोड़ कर लड़ें मोह माया न करें ,,,,इसे समझने के लिये योद्धा की बहिन बेटी संगिनी का हृदय चाहिये ...,भारत की स्त्री के लिये मान उसके प्राणों से सदैव बड़ा था सो ,,,अब ऐसे मुल्क के लोगों को चकित तो होना ही था कि कमाल है मर गये शौहर के बाद दूसरा करती निकाह ,,,ये तो उसी के साथ जलमरी !!!!!अरे अरे अरे औरत तो नायाब चीज है क्यों मारते जलाते हो हमें दे दो हम हरम में ले जाकर रखेंगे ,,खूब सुख से ,,,,,,,,,वन वन भटकती कुन्ती द्रोपदी सीता अनुसुईया और आज भी लाखों स्त्रियाँ जो हर तरह से सक्षम हैं परंतु अपने सतीव्रत के लिये स्वेच्छा से सब सह लेतीं हैं ,अरबी ईरानी मंगोल लोगों के लिये बहुत अचंभे की बात थी ,,,जो कौम लाभ के लिये लड़की देकर जान माल कारवां बचाना सस्ता समझती थी वह कैसे समझती कि ,,यहाँ तो हजारों वीर कड़ियल छैल छबीले रण बाँकुरे एक बेटी एक बहिन की मान मर्यादा बचाने के लिये युद्ध में बलिदान होने या लाशें की लाशें बिछा देने से पीछे नहीं हटते ,,,,,,,,,कमाल है न
इसलिये अब तक हमें अगर समझ नहीं आया तो समझो कि बुराईयाँ अगर पड़ौसी के घर में हैं तो आपका घर भी संक्रमित होगा ही ,,,,,परस्त्री के पाँव पूजकर माँ कहने वाला भारतीय मन ,,,बाप की लुगाई के अर्थों में किसी को गाली की तरह  माँ यदि कहने लगा है तो ,,,घाव कहीं गहरे हैं ,

उत्तरवैदिक काल में वही संक्रमण प्रारंभ हुये जो बाहरी आक्रमण से बचाने और अत्यधिक शक्तिशाली राष्ट्र ग्रामराज से जलने कुढ़ने वाले मठाधीशों ने नियम थेपने प्रारंभ किये ,,उत्तरवैदिक काल भी आज के आधुनिक युग से शक्तिशाली था कारण है कि अभ्यास पड़ चुका हो जब लोगों को जिन बातों का वे जल्दी जातीं नहीं ,यथा प्राचीन सभ्यता बृज और महाराष्ट्र में आज भी प्रायः परिवार स्त्री का सम्मान करते हैं और बराबरी के बल्कि अधिक विशेषाधिकार प्राप्त है बहिन भांजी बेटी बुआ के पांव छूनावउनको उपहार देना हर त्यौहार पर पहला कार्य उनसे प्रारंभ कराना और विवाह या यज्ञ में आगे मानदान को लेकर चलना ,,,,,,कानून या संहितायें न लोग इतना पढ़ते रहे न ही गुनते रहे ,,
दंड की बहुत कम ही आवश्यकता पड़ती थी ,,..जहाँ जहाँ विदेशी आक्रमणकारी बसते गये वहाँ वहाँ उनके रीति रिवाज जनमानस में मिलते गये
चंद्रगुप्त तक के शासनकाल में लोगों ने वह मुक्त निडर काल खंड जिया है ,,,,,विदेशी यात्री जब आये तो लिखना पड़ा कि देर रात तक या पूरी रात भी स्त्रियाँ नृत्य गीत सभा उत्सव में मगन रहतीं थीं उनको कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता था ,,,,,,.
बाबू याद करो गाँव आज भी स्त्रियाँ जोगिया नकटा फगुआ में कहीं कहीं पूरी पूरी रात गाँव भर पहरा देतीं हैं ,,,
परंतु जहाँ जहाँ ग्रामीणता मिश्रित हो गयी वहीं वहीं शाम तो चार बजे ही हो जाती है
हमें बचपन याद है रात्रि को तीन बजे स्त्रियाँ कार्तिक स्नान के लिये जलाशयों पर जातीं थीं गाती बजातीं
और लोग अपनी अपनी गली बुहारते थे कि कतिकारियों के कहीं कंकड़ न चुभ जायें
अफ्तार नहीं पता था परंतु कतिकारियों के लिये फलाहार और शीतल पिआऊ अवश्य देखे थे ,,
हमें अपने ही देश में सारे उदाहरण मिल जायेंगे पतन और उत्थान दोनों के

®©®™सुधा राजे Sudha Raje

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